अगर आप दिल्ली के रहने वाले हैं तो यकीनन अरुणा आसफ अली रोड का नाम सुना ही होगा। लेकिन जिस शख्सियत के नाम से दिल्ली की इस रोड को जाना जाता है, क्या आप उनसे परिचित हैं। या आपने कभी ये जानना चाहा नहीं तो आइए आज हम आपका आईक्यू बढ़ाते हैं और आपको बताते हैं कि कौन थीं अरुणा आसफ अलीं ?
16 जुलाई 1909 में बंगाली परिवार में जन्मी अरुणा जी हरियाणा के कालका नामक स्थान की रहने वाली थीं। जाति से अरुणा ब्राह्मण परिवार से थीं। अरुणा ने नैनीताल से अपनी पढ़ाई पूरी की। ये वो वक़्त था जब भारत को अंग्रेजों से आजाद करने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान दी थी उन लोगों में अरुणा आसफ अली भी एक थी।
Aruna Asaf Ali – सार्वजनिक सभाओं को सम्बोधित कर जूलूस निकाला करती थीं अरूणा
उन दिनों महात्मा गांधी और मौलाना अबुल कमाल की सभाओं में भाग लेने के लिए भारी संख्या में लोग आया करते थे। जिसमें अरुणा की भी दिलचस्पी धीरे-धीरे बढ़ने लगी। 1930 में जब महात्मा गांधी दांडी यात्रा कर अंग्रेजो से लोहा ले रहे थे तब अरुणा जी स्वतंत्र रुप से सार्वजनिक सभाओं को सम्बोधित कर जूलूस निकाला करती थीं।
1942 की बात है जब पूरे देश में भारत छोड़ो आदोंलन चल रहा था उस वक्त अरुणा जी ने मुंबई के गोवालीया मैदान में कांग्रेस का झंडा फहराया था। इस वजह से अंग्रेजों ने उनपर आवारा होने का आरोप लगाया और 1 साल जेल की सजा सुनाई। 8 अगस्त 1942 में बॉम्बे में कांग्रेस अधिवेशन की ओर से अंग्रेजों भारत छोड़ो नाम से एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया गया था। जिसमें अरुणा जी अपने पति के साथ भाग लेने पहुंची थीं। लेकिन अगले ही दिन सभी राजनेताओं को विदेशी सरकार गिरफ्तार कर रही थी। उस दौरान अरुणा जी बॉम्बे गौलिया टैंक मैदान में ध्वजारोहण करके इस आदोलन की अध्यक्षता बन गई।
अरुणा के इस कदम को देख सभी के अंदर एक नया जोश आ गया। आंदोलन में सक्रिए रुप से काम करने वाली अरुणा ने खुद को गिरफ्तारी से बचाने के लिए भूमिगत होने का फैसला किया। लेकिन इस बीच अरुणा जी काफी बीमार भी रहीं । अरुणा की हालत देखकर गांधी जी ने उन्हें समपर्ण की सलाह दी। अंग्रेज सरकार यही नही थमी अरुणा की संपत्ति और जायदात को जब्त कर बेच दिया गया। और उन्हे पकड़ने के लिए सरकार ने 5000 रुपये की इनाम राशि की घोषणा भी की। अरुणा जी को अपने जीवन काल में कई बार विदेशी सरकार द्वारा जेल की सजा सुनाई जा चुकी थी।
Aruna Asaf Ali – 1958 में दिल्ली की पहली महिला मेयर बनी थी अरूणा
जब गांधी जी और सभी राजनेताओं की गिरफ्तारी की ख़बर अरुणा को मिली तो उन्होंने मुंबई में विरोध सभा को आयोजित कर अंग्रेजो को खुली चुनौती देने का फैसला किया ऐसा करने वाली वो पहली प्रमुख महिला भी बनीं। बड़ी हिम्मत और साहस से अरुणा जी ने मुंबई, कोलकाता और दिल्ली में 1942 से 1946 तक पुलिस और विदेशी सरकार से बचते बचाते सभी राजनीतिक सभाओं का पद प्रदर्शन किया।
अरुणा आसफ़ अली की सारी संपत्ति ज़ब्त होने के बावजूद भी वो अंग्रेजो के सामने आत्मसमर्पण के लिए तैयार नहीं हुई। भारत की आजादी में उनके मनोबल और त्याग को देखते हुए उन्हें 1958 में दिल्ली की पहली महिला मेयर बनाया गया। साहसी और निडर महिला अरुणा आसफ अली अपनी वृद्धावस्था में काफी शांत औऱ गंभीर स्वभाव की रहीं। आखिर 87 साल की सच्ची देशभक्त ने 29 जुलाई 1996 में हम सब को अलविदा कहा। उनका बलिदान और त्याग कभी भुलाया नही जा सकता। पूरा भारतवर्ष सदैव उन्हें महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हमेशा याद रखेगा।