आज के वक्त में लड़कियाँ वो हर काम कर सकती हैं, जो लड़के कर रहे हैं, यानी कि लड़कियाँ अब किसी से पीछे नहीं हैं और जरूरत पड़ने पर वो लड़कों को मात भी दे रही हैं। इसी तरह राजस्थान के जयपुर की रहने वाली अरीना खान उर्फ पारो की साहस की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसको पढ़ने के बाद शायद आप भी उन्हें सैल्यूट करेंगे।
अरीना, 9 साल की छोटी सी उम्र से ही जयपुर के अलग-अलग शहरों में अख़बार बांटने का काम कर रही हैं। और इसी वजह से वो देश की पहली महिला हॉकर भी बन गयी हैं।
Areena Khan- जब घर की मजबूरियों के चलते अरीना बेचने लगी अखबार

आपको बता दें कि, पारो के पिता सलीम खान एक अखबार हॉकर थे, लेकिन टायफाइड की जकड़ में आने की वजह से वो बीमार हो गए। शुरुआती दौर में तो पारो सिर्फ उनकी मदद के लिए उनके साथ आती-जाती थी और कभी साइकिल को धक्का लगाने का काम किया करती थी। तो कभी अखबार बांटने में पिताजी की मदद कर दिया करती थीं।
इसी बीच उनके पिता का देहांत हो गया और सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां उन पर ही आ गईं। इसके बाद वो अपने भाई के साथ सुबह 5 बजे से 8 बजे तक अखबार बांटने का काम करने लगीं।
कहते हैं कि मुसीबतें आती हैं तो छप्पर फाड़ कर आती हैं। अरीना खान को भी मुसीबतों ने कुछ ऐसे ही धर दबोचा। पिता की मौत के बाद उन्होंने लोगों के घरों में अखबार बांटना शुरू किया। अखबार बांटने के चलते वो अक्सर स्कूल देर से पहुंचतीं। ऐसे में उनकी क्लासेस का छूटना और टीचर्स का उन पर चिल्लाना आम बात हो चुकी थी।
इस दिक्कत से लड़ने और पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने रहमानी सीनियर सेकंडरी स्कूल ज्वाइन किया। यहां वो पेपर बांटने के बाद 1 बजे स्कूल पहुंचा करती थीं।
वैसे तो लड़कियों के लिए हर दौर में ही घर से बाहर निकलना मुश्किल रहा है, लेकिन अगर लड़की अखबार हॉकर हो तो फिर मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। अरीना जब सुबह-सुबह साइकिल से अखबार बांटने निकलतीं तो कुछ मनचले लड़के उन पर कमेंट भी करते हैं, लेकिन कुछ मनचलों की वजह से अरीना ने अपना साहस कभी नहीं खोया.. उन्होंने हमेशा डटकर उनका सामना किया और अपने काम में कोई बाधा नहीं आने दी।
Areena Khan- अखबार बेचने के साथ-साथ प्राइवेट कंपनी में काम भी करती हैं अरीना

सुबह-सुबह अखबार बांटने के अलावा वो एक नर्सिंग होम में शाम 6 से 10 बजे तक पार्ट टाइम काम भी किया करती थीं। उन्होंने इन्हीं कंटीले रास्तों से होते हुए बारहवीं और ग्रेजुएशन भी किया। साथ ही खुद को जॉब के अनुरूप तैयार करने के लिए कंप्यूटर कोर्स भी किया। वो अब 24 साल की हैं और सुबह के वक्त अखबार बांटने के बाद प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी करती हैं।
अपने संघर्ष और जद्दोजहद के दम पर आज उन्होनें अपने समाज व शहर में एक सम्मानित नाम कमाया है। उन्हें कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी मिले हैं। साथ ही उन्हें राष्ट्रपति भी सम्मानित कर चुके हैं। अरीना कहती हैं कि उनकी मजबूरी ही आज उनकी व्यापक पहचान का हिस्सा बन गई है।
कितनी अजीब बात है ना, कभी-कभी जो काम हमें मजबूरी में करने पड़ते हैं आगे चलकर वही काम हमें नाम और पहचान दिला देते हैं। ऐसा ही कुछ अरीना के साथ भी हुआ, जिस काम को उसने मजबूरी के चलते करना शुरू किया था, उसी काम से आज अरीना का नाम देशभर में जाना जाने लगा है।
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