‘पापी पेट इंसान से क्या—क्या नहीं करवाता’। ये कहावत मैला ढ़ोने वालों के लिए लोगों की जुबान से निकलते हमने और आपने जरूर सुना होगा। लेकिन क्या यह सच में सिर्फ पेट की बात है या इसका कुछ अलग भी कारण है। भारत में इंसानों के ‘मैला ढ़ोने’ या उनसे मैला साफ करवाने पर पाबंदी 1993 में ही कानून के जरिए लगा दी गई थी, लेकिन जमीनी स्तर पर इसमें कितनी कमी आई है इस बात का पता देश की राजधानी दिल्ली में मैला साफ करने के लिए गटर में उतरने वाले मजदूरों की मौत से ही लग जाती है। नेशनल कमीशन फॉर सफाई कर्मचारी की रिपोर्ट की मानें तो हमारे देश में हर पांचवे दिन एक व्यक्ति की मौत ‘मैनुअल स्केवेंजिंग’ के कारण होती हैं।
ऐसी बात नहीं है कि मैनुअल स्केवेंजिंग दुनिया में किसी और देश में नहीं होती। लेकिन भारत में यह काम एक जाति से जुड़ा हुआ हैं। भारत का समाज जो जाति प्रथा में जकड़ा हुआ है उसके चलते एक समाज के लोगों को बचपन से सिर पर मैला ढ़ोने, हाथों से मैला साफ करने, गटर में उतरने जैसा काम करना पड़ता है। यह काम वे ‘बाई च्वाईस’ नहीं करते, बल्कि पीढ़ियों से आ रही परंपरा को ढ़ोने के दबाव के कारण करते हैं। लेकिन बावजूद इसके समाज अपने स्तर पर इन जातियों के लोगों से मैला साफ करवाने का काम कराता है या करने पर मजबूर करता है।

कानून बनते हैं लेकिन धरातल पर इसका पालन तब ही होता है जब लोग उस कानून को लेकर जागरूक होते हैं। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है उस आदमी या समाज का जागरूक होना जिसके आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए कानून बना है। लेकिन मैला ढ़ोने को जागरूक करें कौन? इस सवाल का जवाब ढ़ूंढ़ेंगे तो जवाब यहीं है कि यह जिम्मेदारी हम सबकी है। शायद इसी जिम्मेदारी को समझते हुए मध्यप्रदेश के देवास के रहने वाले ‘आसिफ शेख’ ने ‘मैनुअल स्केवेंजिंग’ के काम में लगे लोगों को इससे बाहर निकालने और उन्हें जागरूक करने की मुहिम शुरू की। साथ ही ‘बंधुआ मजदूर की प्रथाओं में अभी भी जकड़े लोगों को भी मुक्ति दिलाई।
Ashif Shaikh ने दोस्तों के साथ मिलकर किया साहसी एकता ग्रुप का गठन
आसिफ को खुद भी जाति और धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव का शिकार होना पड़ा था। ऐसे में उन्होनें गलत राह चुनने के बजाए समाज में बदलाव लाने की मुहिम चलाई। अपने कुछ दोस्तों संग मिलकर आसिफ ने 1999 में ‘साहसी एकता ग्रुप’ का गठन किया। इस ग्रुप का काम समाजिक विकास के काम में स्टूडेंट की भागीदारी को बढ़ाना था। अपने इसी संगठन को एक कदम आगे बढ़ाते हुए आसिफ ने साल 2000 में जन साहस ऑर्गनाइजेशन की नींव रखी जिसका काम मैनुअल स्केवेंजिंग और बंधुआ मजदूरी का काम कर रहे लोगों को वहां से निकालकर एक अल्टरनेटिव वर्क देना था।
मैला ढ़ोने का काम करने वालों में ज्यादातर महिलाएं हैं। आसिफ की संस्था ने शुरूआत मध्यप्रदेश के बहुरसा से की। जहां आसिफ ने इस काम में लगी 26 महिलाओं को जागरूक किया। इन महिलाओं ने इस काम को छोड़ने और इसके प्रति अपने विरोध को जताने के लिए अपने उन टोकरियों को जला दिया जिसमें वे मैला ढ़ोया करती थीं। इन सभी महिलाओं को आसिफ ने टेलरिंग का काम दिलवाया ताकि वे सम्मान की एक जिंदगी को जी सकें
आसिफ और उनकी संस्था यहीं नहीं रूकी साल 2013 में इस संस्था ने जब अपने जागरूकता कार्यक्रम के जरिए देश के 264 जिलों को कवर किया तब इसने खुद को एक एनजीओ के रूप में रजिस्टर्ड करा लिया। पिछले 16 सालों में इस संस्था ने करीब 41 हजार से ज्यादा लोगों को इस काम से मुक्ति दिलाई है। आसिफ की संस्था इन महिलाओं को लेकर एक और कार्यक्रम भी चला रही है जिसका नाम है बेयरफूट पारा लीगल। इस कार्यक्रम के जरिए मैला ढ़ोने के काम से मुक्ति पाने वाली महिलाओं को संस्था की ओर से वकालत की पढ़ाई करवाई जाती है। ताकि ये लोग अपने समाज के अन्य लोगों की मदद कर सकें।
Ashif Shaikh– साल 2013 में मैनुअल स्केवेंजिंग पर सरकार ने लगाया प्रतिबंध
आसिफ को उनके सामाजिक काम के लिए सद्भावना अवार्ड 2005, एम.ए थॉमर्स ह्यूमन राइट अवार्ड 2012, सोनी टीवी के द्वारा 2013 में Social Breviary Award, 2014 में Jio Dil Se Award जैसे कई सम्मान उन्हें मिल चुके हैं। इसके साथ ही उन्हें Human Rights Tulip Award 2014 के लिए भी नॉमिनेट किया गया था। वहीं उन्हें Bill Clinton अवार्ड भी मिल चुका है।
आपको बता दें कि मैनुअल स्केवेंजिंग को सरकार ने 2013 में एक कानून लाकर खत्म कर दिया था। लेकिन बावजूद इसके यह काम आज भी जारी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017 के बाद 127 से ज्यादा लोग जो बहुत ही खराब तरह के मैनुअल स्केवेंजिंग के काम में लगे थे उनकी मौत हुई है। इसके अलावा इस काम में जातियता आज भी ऐसी है कि कई नौकरियों में भी ऐसे कामों के लिए एक खास वर्ग के नाम से ही ऐड निकलते हैं। यह सभी देश के कानून के खिलाफ ही है। इसका सबसे बड़ा कारण है जागरूकता की कमी। ऐसे में आसिफ शेख समाज इस वर्ग के लोगों के लिए जात के समान हैं जो इनमें जागरूकता का प्रकाश फैला रहे हैं। साथ ही वे इस बात के भी उदहारण हैं कि समाज में परिवर्तन एक आदमी के प्रयासों से कैसे लाया जा सकता है।