2 अप्रैल 2011, एक अमिट अध्याय

48वां ओवर और नुवान कुलासेकरा के हाथ में गेंद, चलिए हम आपको आज से ठीक दस साल पीछे ले चलते हैं. जहाँ मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत और श्रीलंका के बीच World Cup Finale का मुकाबला हो रहा है.

48वां ओवर नुवान कुलासेकरा फेंक रहे हैं. भारत को 12 गेंदों पर महज़ पाँच रनों की जरूरत है. पिछले 28 साल का सूखा खत्म करने के लिए. पहली गेंद पर युवराज सिंह का एक रन….और स्ट्राईक पर हैं, भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी.

नुवान कुलासेकरा ने भागना शुरू किया. और फुल लेंथ बॉल, और…और…और Dhoni finishes off in style, भला इस पल को कौन भूलना चाहेगा. कौन चाहेगा कि, उस पल को अपनी नज़रों से हटा दिया जाए.

कहने को महज़ क्रिकेट एक खेल है. लेकिन उस खेल के अंदर हर भारतीय की भावना बसती है. हर भारतीय क्रिकेट को खेलता या देखता ही नहीं, उसे जीता है. ऐसा की मानों उसके लिए वही सब कुछ हो….

2011 World Cup के दौरान मैं स्कूल में हुआ करता था. 10वीं क्लास में, एक ओर बोर्ड की टेंशन तो एक ओर मैच छूट न जाए उसकी टेंशन.

2011 World Cup

न जानें कौन थे, वो लोग जिन्होंने बोर्ड एक्जाम की डेटशीट बनाते वक्त इतना भी ध्यान नहीं रखा था कि, बच्चों को मैच देखने की मोहलत मिल जाए.

हालांकि हम भी तो जिद्दी थे. पढ़ाई भले ही बाद में हो सकती थी. लेकिन मैच की अगर एक गेंद भी छूट जाती तो मानों गुनाह हो जाता.

भला होता भी क्यों न, वो वीरेंद्र सहवाग की पहली ही बॉल पर चौका मारने की ख्वाहिश, पहली ही बॉल पर हवा में उठती गेंद से, ऊपर उठ-उठती तशरीफ़ें. अब इतना पढ़कर समझ चुके होंगे कि, मैं अकेला मैच नहीं देखता था. क्योंकि उस वक्त तक हमारे गाँव में लाईट नहीं हुआ करती थी.

गाँव के लोग पूरे गाँव के ट्रैक्टरों की बैटरी इकट्ठा करते, उन्हें पूरी तरह चार्ज करते. उस वक्त भी हमारे गाँव में एंटीना होता था. उसे गाँव के बीचों-बीच बने एक चौपाल जैसे छप्पर के अंदर रखा जाता…और फिर टिक-टिक-टिक, इंतजार-इंतजार और इंतजार.

मुझे याद है, जिस समय फाइनल मैच में वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेदुंलकर जल्दी आउट हो गए थे तो, मैं और हमारे गाँव के कुछ बच्चे हमारे गाँव के दूसरी छोर पर बने मंदिर में रात के करीब 10 बजे गए थे. ताकि हम उनसे मिन्नतें कर सकें और हमारा देश भारत इस मैच को जीत सके.

भले ही मैं आज तक कभी क्रिकेट ग्राउंड में किसी अंन्तर्राष्ट्रीय मैच के दौरान नहीं गया हूँ. हाँ मगर उस रात मेरी पढ़ाई से ज्यादा भारत की जीत जरूरी थी. मेरी पढ़ाई से काफी ज्यादा वो मैच जरूरी था. वरना मैं मिस कर देता 48वें ओवर की दूसरी गेंद.

जैसे हमारे कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने बाउंडी के बाहर फेंक दिया था. मैं आज भी जब कभी उसे याद करता हूँ तो मानों, यूँ लगता है की गाँव की पूरी भीड़ के बीच मैं आज भी वहीं मौजूद हूँ. जिसे आज से कई साल पहले में छोड़ आया हूँ.

2011 World Cup

जोकि मैं कभी नहीं चाहता था. Thank You Mahindra Singh Dhoni, Thank You Indian Team वो खूबसूरत याद देने के लिए. जिसे मैं आने वाली अपनी पीढ़ी दर पीढ़ी को बताऊंगा. और इसके किस्से सुनाऊंगा….की कितना खूबसूरत था वो छक्का…जिसे 48वें ओवर की दूसरी गेंद पर Mahindra Singh Dhoni ने मारा था.

और रवि शास्त्री की वो आखिरी लाईन की कमेंट्री- “Dhoni finishes off in style. A magnificent strike into the crowd! India lift the World Cup after 28 years!”

Indian

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