कहते हैं न मन में अगर उड़ने की चाहत हो तो, कुछ भी नामुमकिन नहीं होता. आज भले ही अंग्रेजी हमारे देश में बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा हो गई है…वहीं अभी भी ऐसे न जानें कितने लोग हैं जिनकी इंग्लिश बोलने तो छोड़िए बस सोचने में ही सिट्टी पिट्टी गुल हो जाती है, वहीं दूसरी तरफ एक लेड़ी हैं जोकि आज के समय में इंग्लिश के लिए पहचानी ही नहीं जाती, बल्कि आज इंग्लिश ही उनकी सफलता का मंत्र बन गया है. हम बात कर रहे हैं भारत की बेटी आशा खेमका डेम की….ये वो नाम है जो कभी आज के समय में ब्रिटिश कॉलेज में हजारों विदेश बच्चों को इंग्लिश सिखा रही हैं.
आज हम आपको बताने जा रहे हैं बिहार की ही रहने वाली एक सूपर लेडी…आशा खेमका के बारे में, जिन्होनें अपने जीवन के शुरुवाती समय यानि की 25 सालों तक इंग्लिश बोलना तो दूर इंग्लिश की कभी ठीक से पढ़ाई तक नहीं की थी. लेकिन अपनी इच्छा और मेहनत के दम पर आज आशा ब्रिटेन के फेमस वेस्ट नाटिंघमशायर कॉलेज की सीईओ और प्रिंसिपल तक बन चुकी हैं. इतना ही नहीं आशा खेमका को एशियन बिजनेस वूमन ऑफ द ईयर के अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.
Asha Khemka – रीति रिवाज़ों के चलते छोड़ना पड़ा था, स्कूल
बिहार के सीतामढ़ी जिले में जन्मी आशा खेमका का जन्म 21 अक्तूबर 1951 में हुआ था और वहीं आशा के पिता की बात करें तो, उनके पिता एक अपने समय के सफल बिजनैसमैन रह चुके थे. आशा के घर में पैसे की कभी कोई तंगी नहीं रही लेकिन उनके घर की औरतों को घर के बाहर कदम रखने की भी इजाजत नहीं थी और न ही लड़कियों को पढ़ाने का रिवाज, यही वजह रही है कि, मात्र 13 साल की उम्र में आशा का स्कूल जाना बंद कर दिया गया. फिर 1966 में जब आशा 15 साल की हुई तो उनको देखने के लिए लड़के वाले आ गए और आशा के लाख मना करने के बाद भी उनकी मां ने उन्हें हाथ में साड़ी थमा कर तैयार होने को बोल दिया और उसी दिन आशा की सगाई हो गई और फिर रिश्ता पक्का हो गया.
तीन साल बाद 18 साल की उम्र में आशा की शादी मेडिकल की पढ़ाई कर रहे पति शंकर लाल खेमका के साथ हो गई और ये शादी आशा खेमका के लिए नई आशा की किरण लेकर आई. आशा की ही तरह उनके पति को भी पढ़ने का बहुत शौक था. वो चाहते थे कि उनकी पत्नी भी उनकी तरह पढ़ी-लिखी हो और यहीं से शुरु हुआ आशा का सफर, आशा के पति ने आशा की हर बात में उनका साथ देते हुए उनकी दोबारा से पढ़ने की इच्छा को पूरा किया. वहीं इस बीच 21 से 24 साल की उम्र में आशा तीन बच्चों की मां बन गई.
1978 में आशा के पति को डॉक्टर बनने के बाद इंग्लैड के एक बड़े हॉस्पिटल में ऑर्थोपेडिक सर्जन के रूप में भेजा गया. जिसके बाद आशा अपने पति और बच्चों के साथ ब्रिटेन आ गई. आशा इंग्लैंड तो पहुंच गई लेकिन मुश्किल से 12 वीं पास होने के कारण आशा को न तो इंग्लिश बोलनी आती थी और न ही लिखनी, अब बच्चो के बड़े होने पर आशा ने ब्रिटेन में ही पढ़ाई के साथ इंग्लिश सीखने का फैसला कर लिया. उन्होनें कार्डिफ यूनिवर्सिटी से हिंदी मिडियम में बिजनेस डिग्री हासिल की, अपनी पढ़ाई के बीच ही आशा ने सिर्फ टीवी और इंटरनैट की मदद से ही इंगलिश बोलना और लिखना सीख लिया. डिग्री लेने के बाद ही आशा ऑसवेस्ट्री कॉलेज में इंग्लिश में बच्चों को पढ़ाने लगी.
Asha Khemka – The Inspire and Achive Foundation के जरिए गरीब बच्चों को रोजगार दे रही आशा
और वहीं 2006 में आशा वेस्ट नॉटिंघम कॉलेज की प्रिंसीपल बन गईं. आपको बता दें कि ये कॉलेज इंग्लैंड के सबसे बड़े कॉलेजों में से एक माना जाता है. आशा का सफर यहीं पर नहीं रूका, प्रिंसीपल बनने के बाद आशा खेमका को असोसिएशन ऑफ कॉलेजेज इन इंडिया की चेयरपर्सन चुना गया. शिक्षा को सबसे ऊपर मानने वाली आशा खेमका ने द इंस्पायर एंड अचीव फाउंडेशन नाम का चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया. ये ट्रस्ट 16 से 24 साल के उन युवाओं को शिक्षा और रोजगार देता है जो गरीबी के कारण पढ़ नहीं पाते.
उनके शिक्षा के फील्ड में अतुल्नीय योगदान के लिए आशा को बहुत सारे पुरस्कार और सम्मानों के साथ नवाजा जा चुका है. 2013 में आशा को ब्रिटेन के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक डेम कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर से भी सम्मानित किया गया. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डेम की पदवी को महिलाओं के लिए नाइटहुड पदवी यानी सर की पदवी के समान माना जाता है, और इस सम्मान को पाने वाली आशा दूसरी भारतीय महिला हैं. ये पदवी आशा से पहले 1931 में मध्य प्रदेश की महारानी लक्ष्मी देवी को मिली थी.