अभी तक आपने माचो मैन सुना हो गया, सुपर मैन सुना हो यहां तक की पैडमैन भी सुना होगा….लेकिन अगर आपको पता चले की एक टॉयलेट मैन भी है. आज के समय में सबसे हटके काम कर रहा है. चलिए बताता हूं टॉयलेट मैन के नाम से फेमस इंसान करता क्य़ा है..?
टॉयलेट मैन का असली नाम डॉ अरिजीत बनर्जी है, जो बंगाल के रहने वाले हैं. डॉ अरिजीत सिंह ने भारत सरकार के स्वस्छ भारत राष्ट्रीय अभियान को अपने कौशल के चलते नया रंग दिया और अभी तक अरिजीत बनर्जी लगभग 500 टॉयलेट्स का निर्माण कर चुके हैं. यहां तक की उनका मॉडल पं. बंगाल के गांवों में इस समय काफी लोकप्रिय हो रहा है.
हर जगह का हो सकारात्मक इस्तेमाल- Arijit Banerjee
टॉयलेट मैन ऑफ बंगाल यानि की अरिजीत बनर्जी की मानें तो, उनका उद्देश्य गलियों, सड़कों के साथ गंदे पानी का भी सकारात्मक इस्तेमाल करना है, जहां एक तरफ स्वच्छ भारत मिशन का शौचालयों का निर्माण कराना है ताकि कोई भी इंसान खुले में शौच न जाए. वहीं अरिजीत का भी उद्देश्य इस मिशन से काफी मिलता जुलता है. जिसके चलते डॉ अरिजीत बनर्जी ने अब तक लगभग 500 से ज्यादा मोबाइल बायो टॉयलेट वैन बनाकर लोगों के बीच टॉयलेट मैन ऑफ बंगाल और अरिजीत दादा का मानों खिताब हासिल किया है. क्योंकि इस समय लोग इन्हें इन्हीं नामों से जानते हैं.
कहीं भी ले जा सकते हैं टॉयलेट- Arijit Dada
अरिजीत बनर्जी ने आधुनिक टॉयलेट मेकिंग की पारंपरिक तकनीक को भी बदल दिया है. जिसके चलते नए टॉयलेट को आसानी से कहीं भी स्थापित किया जा सकता है. यानि की इन टॉयलेट का इस्तेमाल मेलों, दुर्गा पूजा समारोहों के साथ-साथ किसी भी स्थान पर तुरंत इस्तेमाल किया जा सकता है. इस मिशन को पूरा करने में डॉ अरिजीत के साथ उनकी सहकर्मी अर्पिता रॉय उनका हाथ बटां रही हैं.
सभी लोगों को ध्यान में रखकर बनाया टॉयलेट- Arijit Banerjee
डॉ अरिजीत की मानें तो, वो कहते हैं की शौच में इस्तेमाल होने वाला पानी भूमिगत जल में जाकर मिलता है. जिससे वो नीचे के पानी को दूषित करता है. गाँव-देहात के लोग इसी भूमिगत जल का इस्तेमाल करते हैं. जिससे लोगों में डायरिया, हैजा जैसी बीमारियां पैदा होती हैं. इन्हीं सबके चलते मैनें स्थाई शौचालयों और मोबाइल टॉयलेट का आविष्कार किया है, जिससे भूमिगत जल प्रदूषित न हो.
‘टॉयलेट मैन ऑफ बंगाल’ का मिला खिताब
आपकों बता दें कि, डॉ बनर्जी द्वारा निर्मित शौचालयों में इस्तेमाल होने वाले जल का इस्तेमाल बागवानी में किया जा सकता है. क्योंकि इसमें यूरिया भरपूर होता है. बंगाल के बीरभूम को निर्मल जिला बनाने में डॉ. बनर्जी ने बड़ी भूमिका निभाई है. जिसके चलते इंडियन चैम्बर ऑफ कामर्स की ओर से साल 2017 में अरिजीत को टॉयलेट मैन ऑफ बंगाल के खिताब से नवाजा जा चुका है. वहीं दूसरी ओर डॉ . बनर्जी की सहयोगी एवं आर्टेमिस फाउंटेन फाउंडेशन से जुड़ीं अर्पिता रॉय इसके साथ उन महिलाओं के लिए भी काम करती हैं. जोकि सामाजिक रूप से पिछड़ी हों.
यही वजह है की आज डॉ. बनर्जी के बनाए टॉयलेट की उन घरों में मांग काफी तेजी से बढ़ रही है, जोकि साधन संपन्न नहीं हैं.
यहां से शुरू हुई टॉयलेट मैन बनने की कहानी
चलिए अब हम आपको वो वाक्या बताते हैं, जहां से डॉ. बनर्जी ने टॉयलेट मैन बनने की अपने अंदर ठान ली थी. दरअसल डॉ बनर्जी एक बार उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के एक गांव में गए थे. जहां उन्होंने वहां के सरपंच को महंगी गाड़ी से खेतों में शौचलय जाते देखा और उस समय डॉ बनर्जी ने सरपंच को घर में शौचालय बनाने की सलाह दे दी. जिसके बाद सरपंच इस तरह उन पर भड़के की उन्हें गांव से चले जानें की नसीहत दे दी. साथ ही सरपंच ने कहा की घर में शौचालय होने से गन्दगी फैलती है और उस समय गांव से निकलने के बाद डॉ. बनर्जी ने रैमेसिस आरपीएल नाम की एक संस्था के साथ जुड़कर शौचालय की ऐसी तकनीक बनाने का काम शुरू किया. जिससे शौचालय का वेस्टेज जमीन के अंदर न जाए और अभी तक डॉ बनर्जी लगभग 500 से ज्यादा ऐसे शौचालयों का निर्माण कर चुके हैं. कहते हैं ना आज के दौर में ज्ञानी तो सब हैं. मगर ज्ञान का इस्तेमाल सबके बस की बात नहीं होती है.