भारत दुनिया भर में अपनी विविधता के लिए पहचाना जाता है। दुनिया के किसी भी कोने में जाकर हम क्यों न देख लें। भारत जैसी विविधता कहीं और नहीं दिखती, ऐसे में भारत में कई धर्म भी पनपते हैं। जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी के सभी-सभी धर्म अपने आप में एक अलग ही पहचान रखते हैं। उन्हीं में से एक धर्म है, सिख धर्म।
पूरी दुनिया में शायद ही कोई ऐसा धर्म होगा। जिसके अनुयायी अपने सेवा भाव, आदर सत्कार के लिए जानें जाते हों, हालांकि सिख धर्म में ऐसा नहीं हैं, सिखों की पहचान ही सेवा भाव के लिए की जाती है, क्योंकि परिस्थिति कैसी भी क्यों न हो, एक सच्चा सिख हमेशा अपना समय निकालकर लोगों की सेवा जरूर करता है।

सिख धर्म और सिखों का अमृत छकना
सिखों की अगर विशेषताओं की बात करें तो, सिख धर्म हमेशा से ‘सीखने’ के लिए जाना जाता है। क्योंकि एक सच्चा सिख, हमेशा लोगों को सम्मान देने के साथ-साथ जमीन से जुड़ा रहता है और दुनिया में सिख धर्म के उपदेश भी फैलाता है। सिखों के दस धर्म गुरुओं की मानें तो गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिंद सिहं तक, हर एक गुरु ने लोगों को मानवता एवं एकेश्वरवाद का ही पाठ पढ़ाया है। यहीं नहीं, सिखों के ग्यारहवें स्वरूप ‘गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में भी गुरुओं के साथ-साथ हिंदू, मुस्लिम संतों और कवियों के उपदेश भी शामिल किए गए हैं। सिखों के आखिरी गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के आदेशों के अनुसार सभी सिख गुरु ग्रंथ साहिब जी को अपना गुरु मानते हैं। यही नहीं, सिख धर्म की एक और चीज है, जो इसे बेहद खास बनाती है। जिसे अमृत छकना कहते हैं। अधिकतर लोग इसे पांच ककार के तौर पर भी जानते हैं।
अमृत छकना और पांच ककार सिखों की खासियत
सिखों के आखिरी गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने जागती ज्योति गुरु ग्रंथ साहिब जी के साथ, सिखों को एक और चीज दी थी। जिसे लोग ‘पांच ककार’ के तौर पर जानते हैं। मान्यता है कि, पांच ककार धारण करने वाला ही पूर्ण सिख होता है। एक ऐसा सिख जिसने गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिए गए ‘खंडे बाटे’ का अमृत पान किया हो और नियमों के अनुसार सिख धर्म की मान्यताओं का पालन करता हो।
साथ ही अमृतधारी सिख हमेशा पांच ककार धारण करता है, जोकि कंघा, कड़ा, कच्छहरा (कच्छा), किरपान (कृपाण), केस (बाल) है। ऐसा माना जाता है कि, गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था कि, एक सच्चे अमृतधारी सिख को इन सभी ककारों को धारण करना चाहिए। लेकिन क्या आपको मालूम है कि, ये पांच ककार किस बात के सूचक हैं। अगर नहीं तो चलिए हम आपको बतातें हैं, आस्था के साथ-साथ इन सभी ककारों के वैज्ञानिक कारण भी-

कंघा
सिखों में कंघे की कीमत काफी ऊपर होती है, हालांकि ये कोई साधारण कंघा नहीं होता है, ये कंघा लकड़ी का बना हुआ होता है। जोकि अलग-अलग रंगों के साथ अलग-अलग आकार में उपलब्ध होता है। जिस समय एक सिख को ‘अमृतधारी सिख’ बनाया जाता है, उस समय उस सिख को ये कंघा अर्पण किया जाता है।
ऐसा माना जाता है, जिस समय बालों में शैम्पू का चलन नहीं था। उस समय सिख बालों को पानी और तेल की सहायता से साफ किया करते थे। यही वजह थी कि, सिख कम से कम दो बार लकड़ी के बने कंघे से बालों को साफ करते थे। यही चलन आज भी है, एक अमृतधारी सिख दिन में दो बार सुबह और शाम लकड़ी के कंघे से अपने केश साफ करता है। साथ ही लकड़ी के कंघे को सिख हमेशा अपनी पगड़ी के नीचे या फिर बालों के बने जूड़े के बीच में रखते हैं। इस लकड़ी के कंघे से बालों के साथ-साथ सिर की त्वचा भी हरदम साफ रहती है और रक्त का प्रवाह भी सही ढंग से होता है।

कड़ा
बात अगर कड़े की करें, तो पांच ककार में कड़ा एक अहम रोल रखता है। आम लोगों की नजरों से अगर देखें तो, ये कड़ा भले ही लोहे की धातु का बना चूड़ी नुमा होता है। हालांकि सिख धर्म के अनुयायियों के लिए ये किसी मान-सम्मान से कम नहीं होता। अधिकतर सिखों के दाहिने हाथ में हम एक कड़ा जरूर देखते हैं। इसको धारण करने का नियम ये है कि, ये कड़ा दाहिने हाथ में ही पहना जाना चाहिए और इसे केवल एक ही पहनना चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि, ये कड़ा सिख धर्म के प्रतीक के साथ-साथ सिखों की सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। कहा ये भी जाता है कि, ये कड़ा सिखों को कठिनाईयों के वक्त में हिम्मत देता है।
कच्छहरा (कच्छा)
जिस तरह से हर एक आम इंसान को अपना अंदरूनी तन धकने के लिए वस्त्र की जरूरत पड़ती है। ठीक उसी तरह सिखों में भी एक परंपरा है कि सिख कच्छहा धारण करते हैं। ये कच्छहरा सूती कपड़े का बना होता है। उस समय में कच्छरे को एक खास उद्देश्य के साथ बनाया गया था। क्योंकि पहले के समय में जब सिख योद्धा युद्ध के मैदान में जाया करते थे तो उन्हें घुड़सवारी करनी होती थी। उस समय उन्हें एक ऐसे वस्त्र की जरूरत होती थी जिससे तन को ढ़कने के साथ-साथ उन्हें परेशानी न हो, और कच्छरा पहनने में बेहद आरामदायक होता है यही वजह है कि, तब सिखों के लिए कच्छरा बनाया गया था, जोकि एक अमृतधारी सिख के लिए पांच ककार में से एक है।

केश (बाल)
सिखों के अगर पहचान की बात की जाए, तो केश उनमें सबसे अहम खासियत रखते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी की मानें तो, केश ‘अकाल पुरख’ द्वारा दी गई सिखों को एक देन है साथ ही एक सम्मान भी. यही वजह है कि, एक अमृतधारी सिख या कायदे से कोई भी सिख अपने बाल कभी नहीं कटवाता। सिर के बाल ही नहीं, एक अमृतधारी सिख सिर के बाल के साथ साथ पूरे शरीर के बाल नहीं कटवाता।
किरपान
अक्सर जब भी हम किसी अमृतधारी सिख को देखते हैं तो हम ये भी देखते हैं कि, उनकी कमर की बाईं ओर एक छोटी सी किरपान या कटार लगी रहती है। ये किरपान उन पांच ककारों में से एक होती है, जिसे एक सिख 24 घंटे पहन कर रखता है, यानि की सोते वक्त भी एक अमृतधारी सिख अपनी किरपान अपने पास ही रखता है।
यही नहीं, जिस समय सिख स्नान करने के लिए जाता है, तो उस समय इस किरपान को वो अपने सिर की पगड़ी पर बांध लेता है. हालांकि वो उसे अपने तन से अलग नहीं करता है. क्योंकि गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था कि, हर एक सिख को हमेशा हिंसा से लड़ने के लिए तैयार रखना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा था कि, ये किरपान सिर्फ अपनी रक्षा के लिए ही निकाली जानी चाहिए। इस किरपान को कभी किसी गलत कारणों से उपयोग नहीं किया जा सकता।
हालांकि अगर पहले के समय की बात करें तो, लोग बड़ी तलवारें पहना करते थे. उन तलवारों को लोग एक कपड़े की बनी बेल्ट में डालकर, कमर की बाईं ओर लटका कर पहनते थे. हालांकि आज के समय में लोग उसी तरह छोटी किरपान पहनते हैं और इस किरपान को प्रसाद में भोग लगाने के लिए भी निकाली जाती है। किरपान से ही प्रसाद को स्पर्श कराकर, गुरु ग्रंथ साहिब जी को प्रसाद चढ़ाया जाता है।