जब कभी हम अपने सुंदर सुनहरे भविष्य की कल्पना करते हैं तो हम अपने परिवार और अपने बेहतर भविष्य की कल्पना के आगे नहीं सोच पाते. क्योंकि हमें परिवार के आगे इसकी फिक्र नहीं होती. हालांकि परिवार के अलावा भी एक प्रकृति का परिवार होता है. जिसे प्रकृति ने बेहतर तरीके से बसाया है। हालांकि हम इंसानों ने इस बर्बाद करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
समुद्र भी उन्हीं में से एक है. जहां आज के समय में प्लास्टिक के उत्पाद, प्लास्टिक का कबाड़ कितना कुछ इसके बीच पाया जाता है. 2017 की एक फोटो शायद पूरी दुनिया ने देखी थी. जिसमें नार्वे के बर्गन शहर में एक त्रासदी जैसी घटना घटी थी. जनवरी 2017 में हुई इस घटना में, नार्वे के तट पर एक व्हेल मछली तैर कर आ गई थी. अक्सर व्हेल और शार्क जैसी मछलियां समुद्र की तलहटी में पाई जाती हैं. हालांकि वो व्हेल मछली समुद्री तट पर आ गई. जिसको फिर वापस समुद्र में भेजने को लेकर कई प्रयास किए गए.
लेकिन उसके बावजूद भी वो वापस नहीं गई और आखिरकार थक हार करके, नार्वे की सरकार ने व्हेल को मारने का पैगाम दे दिया और व्हेल मछली को मार दिया गया. उसके बाद उस व्हेल मछली की चीर फाड़ शुरू की गई और जो निकल कर आया. उससे दुनिया में रह रहे लोगों के नीचे से जमीन खिसक गई.
ऐसा इसलिए क्यों इन्सान ने आज के समय में दुनिया का कोई भी छोर नहीं छोड़ा जहां अपने होने के निशां नहीं छोड़े हैं. क्योंकि इंसान अपना अधिपत्य दुनिया के ऊपर हमेशा से रखता आया है. हालांकि पिछले कुछ दशकों में समुद्र में कई बड़ी समस्याऐं पैदा हो चली हैं.

समुद्र पर बढ़ता खतरा
पिछले कुछ सालों से समुद्र में जिस हिसाब से प्लास्टिक फैली है. ठीक उसी तरह से समुद्र की तलहटी से ऑक्सीजन भी खत्म हुई है. सोचने वाली बात है न, आखिर ये ऑक्सीजन किसी भी इंसान के फेफड़े में तो नहीं जा रही तो आखिर जा कहां रही है.
इस हिसाब को समझने के लिए हमें लगभग 6 दशक पहले वैज्ञानिकों के उस दावे को जानना चाहिए. 1960 के दशक में वैज्ञानिकों के एक समूह ने कहा था कि, समुद्र के लगभग 45 जगहों से इस समय ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम हो गई है. ये वो दौर था. जिस समय कई देशों ने इस पर गौर नहीं किया. हालांकि कुछ देशों ने मिलकर आनन-फानन में कई नियम कानून बनाए, समुद्र में जाती गंदगी को कैसे कम किया जाए. इस पर सभाऐं की गई.
हालांकि उसके बावजूद भी समुद्र में ऑक्सीजन की कमी को रोका नहीं जा सका. नतीजा ये रहा कि, 1960 के दशक में जहां 45 जगहों से ऑक्सीजन खत्म हो चुकी थी. वहीं इस समय तक 700 ऐसे स्थान हैं. जहां से ऑक्सीजन खत्म हो गई है.
ऑक्सीजन खत्म हुई जगहों में वो जगहें सबसे ज्यादा हैं. जहां तेल उत्पादन हो रहा है या फिर जहाजों की आवाजाही ज्यादा है. उस समय वैज्ञानिकों का ऐसा दावा था कि, कारखानों से लेकर हर जगह नाइट्रोजन और रसायनों का इस्तेमाल इसकी मुख्य वजह थी. जबकि आज के समय की मानें तो, प्रकृति में कॉर्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) की मात्रा काफी बढ़ी है. यही वजह है कि, समुद्रों में भी गर्मी का असर दिखाई देने लगा है. नतीजा ये है कि, अब के समय में ग्लेशियर काफी तेजी से पिघल रहे हैं.. समुद्र का पानी तेजी से गर्म हो रहा है और साथ ही बढ़ रहा है. जिसके चलते यहां से ऑक्सीजन कम हो रही है.
तथ्यों की मानें तो, 1960 से लेकर 2010 के बीच में समुद्र की गहराई में दो फीसदी से ज्यादा ऑक्सीजन की कमी दर्ज की गई है. जबकि, 2010 से 2020 के बीच में लगभग 40 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
यही वजह है कि, इन दिनों समुद्र की गहराई में रहने वाले जीव जैसे के ट्यूना, शार्क और व्हेल जैसी मछलियों पर खतरा मंडराने लगा है.

समुद्र से खत्म होने लगेंगे जीव
आईयूसीएन की एक रिपोर्ट की मानें तो, ऐसा दावा किया गया है कि, वैज्ञानिकों को डी-ऑक्सीजनेशन होने के बारे में पहले से ही अंदाजा था. हालांकि उन्होंने भी ऐसा नहीं सोचा था कि, ये सब इतनी जल्दी हो जाएगा यही वजह है कि, ये खतरा जो कुछ वर्ष बाद होना था. वो आज ही मानव जाति के साथ-साथ समुद्री जीवों के लिए परेशानी का सबब बन गया है.
आईयूसीन की मिन्ना एप्स की मानें तो पिछले 50 साल में समुद्र से ऑक्सीजन की मात्रा में 4 गुना से ज्यादा की कमी दर्ज की गई है. यही वजह है कि, जो जीव समुद्र के जीवों में रह रहे थे. वो जीव अब समुद्र के उथले स्थान पर आ गए हैं. पहले ये जीव जहां समुद्री तटों पर नहीं होते थे. वहीं आज के समय में ये तटों तक पहुंचने लगे हैं.
समुद्रों को बचाया जा सकता है
समुद्रों में इस तरह का बढ़ता खतरा निश्चित ही, मनुष्यों की देन है. लेकिन पर अगर जल्द ही रोक नहीं लगाया गया तो, पूरी दुनिया को बचाना असंभव हो जाएगा. अगर इसी तरह देशों का उत्सर्जन पर रोक लगाने का इस समय का रवैया अगर आगे भी रहा तो, आने वाले 70 से 80 सालों में ऑक्सीजन तीन से चार प्रतिशत घट जाएगी.
यही वजह है कि, इन सभी बातों को सीओपी 25 तक पहुंचा दिया गया है, ताकि दुनियाभर के सभी देश मिलकर इस पर एक सहमति से फैसला ले सकें और खत्म होती ऑक्सीजन को और समुद्री जीवों को बचाने पर बात बन सके.