कोविड—19 यानि की कोरोना वायरस, दुनियाभर में इस वायरस ने फिलहाल तबाही मचा रखी है। यूएन ने इसे महामारी घोषित कर दिया और पूरी दुनिया के 140 से ज्यादा देश इस वायरस को रोकने में ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। भारत में भी कोरोना से पीड़ित मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पूरी दुनिया में जहां इससे पीड़ित लोगों की संख्या 2 लाख 19 हजार के पार जा चुकी है तो वहीं भारत में इसके मरीज़ों की संख्या 170 पहुंच गई है। लेकिन कोरोना वायरस भारत और भारतीयों के लिए एक अलग ही संदेश लेकर आया है। जिसे जानकर भारत के लोग खुश तो बहुत हो रहे हैं और अपनी पीठ खुद ही थपथपा रहे हैं। लेकिन असल में वे खुद इससे बहुत दूर हैं।
आपको याद होगा कि, जब कोरोना वायरस अपने पैर चीन से बाहर पसार रहा था तो एक वीडियो सामने आया था, यह वीडियो इज़राइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू का था, जिसमें वे लोगों को कोरोना वायरस से बचने के लिए एहतियात के तौर पर एक दूसरे से हाथ मिलाकर ग्रीट करने की बजाए नमस्ते करने को कह रहे थे। यह वीडियो बहुत वायरल हुआ। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी यही बात दोहराई और इसके बाद तो पूरी दुनिया में नमस्ते का दौर शुरू हो गया। दरअसल, कोरोना वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है, जो दोनों के बीच किसी भी तरह के कॉन्टेक्ट से हो सकता है। हाथ मिलाना दुनियाभर के लोगों के बीच एक आम बात है ऐसे में कोरोना और तेजी से फैल सकता है। तो दुनिया ने नमस्ते करना बेहतर समझा।

Copper के सरफेस पर सबसे कम समय तक जिंदा रहता है कोरोना
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जब कोरोना वायरस को लेकर वीडियो कांफ्रेंसिंग की तो लोगों से हाथ मिलाने की परंपरा को छोड़ नमस्ते करने की अपनी पुरानी परंपरा को अपनाने की बात कही। अब एक बार फिर से कोरोना ने एक और पुरानी भारतीय दिनचर्या को बेस्ट और हेल्दी साबित किया है। आपने ताम्रपात्र के बारे में तो सुना ही होगा, मतलब तांबे का बर्तन या कोई पात्र। कोविड—19 को लेकर एक नए रिसर्च में इसी से जुड़ी एक और बात सामने आई है। इस रिसर्च की मानें तो कोविड—19 वायरस, जो सरफेस पर तेजी से फैलता है, वो सबसे कम समय के लिए तांबे के सरफेस पर जिंदा रह सकता है।
पिछले कुछ दिनों में अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शन डिजीज ने अपने एक नए शोध में पाया है कि, कोविड—19 एरोसोल और सरफेस पर कई घंटों से लेकर कई दिनों तक स्थिर रह सकता है और तेजी से बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि, एक्यूट सीवियर रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस 2 (SARS-CoV-2) हवा में तीन घंटे तक, तांबे पर चार घंटे तक, कार्डबोर्ड पर 24 घंटे तक और प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर 2 से तीन दिनों तक स्थिर रह सकता है।
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ (NIH) के एक वायरोलॉजिस्ट नीलजे वैन डोरमेलेन और उनके सहयोगी मोंटाना ने इस बात पर रिसर्च था। उनके अध्ययन से पता चलता है कि “तांबे की सतहों में इस वायरस को चार घंटे में खत्म करने की क्षमता है। जबकि बाकी चीजों की सतहों पर यह वायरस लंबे समय तक जीवित रह सकता है।
अब ऐसा क्यों है? यह भी जान लीजिए। दरअसल जैसे ही ये वायरस कॉपर के सरफेस पर आते हैं कॉपर आयन्स माइक्रोब की झिल्ली के संपर्क में आकर इसे फोड़ देते हैं। एक बार जब इन माइक्रोब्स की झिल्ली फट जाती है, तो इनका सुरक्षा सिस्टम खत्म हो जाता है। ऐसे में कॉपर आयन्स इनके अंदर घुस इन्हें नष्ट कर देता है।
भारतीय परंपरा में Copper का महत्व
यह बात तो हम सब जानते हैं कि, हमारी परंपरा में कॉपर यानि की तांबे का कितना महत्व है। पहले के ऋषि और महर्षि लोग तांबे के जग या कमंडल में पानी पिया करते थे। उनकी बात छोड़िए आज भी कई पारंपरिक भारतीय घरों में तांबे के जग में ही लोग पानी पीते हैं। आयुर्वेद के अनुसार कॉपर इंसान के त्रिदोष यानि वात, पित्त और कफ को ठीक कर देता है। हमारी परंपरा में तांबे के अलावा तांबे और जिंक के एलॉय से बने पीतल के भी बर्तनों के यूज करने की परंपरा रही है। यह सबकुछ हेल्दी लाइफस्टाइल से जुड़ा हुआ था।

प्राचीन भारतीय लोगों के अंदर यह कला थी कि, वे उन धातुओं की पहचान कर सकते थे जो जिंदगी को बेहतर बना सकती हैं। इसी तरह योग के बारे में हम और आप जानते ही हैं जो आज योगा बन गया है, पूरी दुनिया योगा को हेल्दी लाइफ का मूल मंत्र मान चुकी है। इसी तरह कई ऐसी चीजें हैं जो भारतीय ज्ञान के भंडार से निकली हैं लेकिन उनका नोमेनक्लेचर हो गया वेस्टर्न देशों की भाषा में… तो वे अब अंग्रेज सी ही दिखती हैं। जैसे सन बाथ को ले लीजिए, कभी भारत में आम बात थी लेकिन आज यह विदेशों में ज्यादा पॉपुलर है। सूर्य स्नान को धूप स्नान भी कहते हैं। धूप से विटमिन डी मिलता है जिससे हड्डी मजबूत होती है और सूरज की किरणे नाड़ी तंत्र बेहतर करती हैं।
ऐसे ही आप तुलसी को ले लीजिए आज यह हर घर से गायब हो गई है! नहीं तो पहले घर के खाने में दो पत्ते तुलसी के जरूर दिखते थे। अब जब साइंस ने इसके बारे में कुछ अच्छी बातें कह दी हैं तो इसे लोग हर नर्सरी में ढूंढ़ते फिरते हैं। मतलब कहने का साफ है कि, जब तक हमारे प्राचीन भारतीय ज्ञान पर वेस्ट का ठप्पा नहीं लगता है, हम उस पर विश्वास ही नहीं करते। हमें अपने देश के किसी शोध, रिसर्च और खोज पर विश्वास ही नहीं होता और जब कोई इसके बारे में बताता है तो हम हंस कर उसका मजाक उड़ा देते हैं जो हमने 200 सालों की अंग्रेजी गुलामी में सीखी है। यह दुर्भाग्य की बात है और हमे अपनी पीठ—थपथपाने की बजाय इसपर थोड़ा गंभीरता से सोचना चाहिए।