‘भारत का संविधान’ जो 2 साल 11 महीने 18 दिनों के बाद 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार तो हो गया, लेकिन इसे लागू अगले साल यानि साल 1950 में जनवरी महीने की 26 तारीख को किया गया। इस दिन को हमारा देश गण्तंत्र हो गया और तब से हमारे देश में 26 जनवरी के दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में हर साल मनाया जाने लगा। इस दिन क्या होता है? तो इस दिन स्वतंत्रता दिवस की तरह ही इंडिया गेट पर परेड होता है, झंडा फहराया जाता है, देश भर में हर जगह तिरंगा ही तिरंगा देखने को मिलता है। सुबह में हर गली हर चौराहे पर आपको लोग जलेबियां तलते और खरीदते दिखेंगे। मतलब फुल टू मस्ती टाइम वाला दिन होता है। दिल्ली में अगर आप रहते हैं तो, यह दिन घूमने के लिहाज से काफी खास हो जाता है।
लेकिन… लेकिन… लेकिन, इस सब के बीच गणतंत्र यानि अंग्रेजी में रिपब्लिक कहे जाने वाले शब्द के मायने आम लोगों के लिए क्या होते हैं? शायद ज्यादात्तर लोग इससे कोई इत्तेफाक ही नहीं रखते और इसका सिर्फ एक ही कारण है। वो है अपने संविधान के बारे में कोई जानकारी न होना। कहने को हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में रहते हैं। हमारा संविधान दुनिया भर के देशों के संविधानों से भी ज्यादा मोटी किताब है। मतलब इसमें बहुत कुछ है लेकिन यह सब बस है। शायद ही कोई देश का आम इंसान संविधान को पढ़ता होगा। अब सवाल उठता है कि, आखिर क्यों नहीं पढ़ता? क्या संविधान पढ़ना और इसे समझना इतना मुश्किल है?

क्यों नहीं पढ़ना चाहता कोई अपना संविधान?
तो इसका एक ही जवाब है, जो हमारे संविधान के सबसे ज्यादा लंबे होने में छिपा है। भारत का मूल संविधान जिसे अभी फिल्हाल हिलियम गैस वाले एक चेंबर में सुरक्षित रखा गया है, उसमें 395 आर्टिकल 22 पार्ट और 8 शिडयूल हैं। जो कुल 145,000 शब्दों से भरी एक किताब है। उस समय यह किसी रिपब्लिक देश का सबसे बड़ा लिखित संविधान था। आज इसमें कई सारे संशोधन हो चुके हैं, जिसके बाद यह पहले से भी ज्यादा लेंदी हो गया है। ऐसे में कोई कैसे संविधान की किताब को पढ़ सकता है। इस ग्रंथ को आज तक किसी ने आसान बनाने की शायद ही कोशिश की होगी। ज्यादात्तर इसकी कॉपियां आपको मार्केट में अंग्रेजी में मिलेंगी जिसे आम भारतीय समझ या पढ़ नहीं सकता और अगर हिंदी में भी मिलेगी तो उसमें शुद्ध हिंदी और उर्दू के कुछ ऐसे शब्द धारा प्रवाह ढ़ंग से यूज किए गए होंगे कि, आम आदमी तो उस धारा में डूब के बह जाए। मतलब कुछ भी पल्ले नहीं पड़ने वाली बात है।
लेकिन अगर आपको संविधान थोड़ा रोमांचक तरीके से पढ़ने को मिले तो? जैसे कि, कबीर और रहीम के दोहें टाइप और वो भी लोकल लैग्वेज़ में तो आपको भी लगेगा कि, हां इस तरह से इसे समझा जा सकता है। क्योंकि दोहे संगीत के रूप में होते हैं और संगीत और गाने हमें जल्दी याद होते हैं। अब कबीर के दोहे को ही ले लीजिए कभी बचपन में सुना होगा। लेकिन याद आजतक होगी। शायद इसी बात को आईपीएस अधिकारी एस. के. गौतम ने भी सोचा होगा और फिर इसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने भारत के संविधान को दोहे के रूप में गढ़ दिया। ताकी लोग इसे असानी से समझ सकें और इसे याद भी रख सकें। अपनी इस संविधान के दोहे वाली किताब को गौतम जी ने नाम दिया है ‘संविधान काव्य’।
क्या है संविधान काव्य? कैसे मिली लिखने की प्रेरणा
संविधान काव्य के बारे में सीधे तौर पर एक लाइन में समझना हो तो आप इसे भारतीय संविधान का नया रूप कह सकते हैं जिसे लिखने की शैली सीधी सपाट बोरिंग न होकर अलग दोहे की शैली में है। बीबीसी के एक आर्टिकल में इस बारे में उनके एक बयान का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि, गौतम कहते हैं — असल में संविधान हमारे देश की नीतियों का मार्गदर्शक है। इसलिए यह हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। लेकिन आम आदमी इसे नहीं समझ पाता क्योंकि इसकी भाषा थोड़ी जटिल है। मैंने यही सोचा कि, संविधान को कैसे सरल बनाया जाए। जिसके लिए मैंने यही कोशिश की और इसे पदों में रच दिया. इस तरह से यह आसान हो गया।”
जब गौतम पुलिस में कार्यरत थे, तो उसी दौरान उन्हें यह महसूस हुआ कि, देश के ज्यादात्तर लोग संविधान के बारे में जानते ही नहीं, वे नहीं जानते कि, इसमें लिखा क्या है। इसमें उनके हितों की रक्षा के लिए क्या प्रावधान किए गए हैं। ज्यादात्तर लोगों को इसकी जरूरत तब महसूस होती है जब कोई कागजी कार्रवाई करनी हो या फिर अदालत का मुंह देखना पड़ जाए। ऐसे में मीडिल क्लास वाले तो जैसे तैसे कुछ कर भी लेते हैं… लेकिन गरीब आदमी के लिए यह संविधान कोई दूर का जलता दिया सा लगता है। जिसकी रोशनी तो है उसके लिए लेकिन वो उसे इस्तेमाल करना नहीं जानता। ऐसे में उन्होंने आम लोगों तक संविधान को पहुंचाने के लिए आसान भाषा में एकदम सरल तरीके से ‘संविधान काव्य’ की रचना की। जिसमें उन्होंने दोहो की शक्ल में 25 भागों में बंटे 12 अनुसूची और 448 अनुच्छेदों वाले हमारे संविधा को ढ़ाला। उन्होंने कुल 394 दोहो में संविधान की धाराओं में संजोया है।

इस किताब में गौतम ने हर अनुच्छेद को दो लाइनों में उसके अर्थ के साथ समाहित किया है। साथ ही हर दोहे के नीचे अनुच्छेद का नंबर भी लिखा है ताकि इसे पढ़ने वाला दोनों को एक साथ जोड़ सके। वहीं सरल भाषा और एनिमेशन के जरिए भी इसे बच्चों के लिए भी तैयार कराया गया है ताकि उनका भी इंट्रेस्ट संविधान को पढ़ने में और इसके प्रति जानकारी रखने के प्रति बढ़ाया जा सके। यह किताब 77 पन्नों की है। इस किताब की सबसे बड़ी खासियत यह है कि, आप इससे न सिर्फ संविधान को जान सकेंगे बल्कि आप इसे याद भी रख सकते हैं। इतना ही नहीं, आप इसे अपनी जेब में भी लेकर घूम सकते हैं क्योंकि यह पॉकेट बैंक के फॉर्म में भी है। ऐसे में अगर कोई अनुच्छेद भूल गए तो झट से पॉकेट में हाथ लगाइये, किताब खोलिए और पढ़ लीजिए। इस किताब में संविधान की प्रस्तावना कुछ ऐसे लिखी हुई है।
हम भारत के लोग, आज यह संविधान अपनाते हैं
समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को गले लगाते हैं
मिलेगा हर तरीके का न्याय, बोलने की आजादी,
मिलेगी समानता सबको, देश की जो आबादी।
बंधुता बढ़े हर एक से, हर व्यक्ति इज्जत पाए,
राष्ट्र हमारा रहे अखंड, एकता बढ़ती जाए।
26 नवंबर 1949,दृढनिश्चय हम करते हैं,
संविधान को अंगीकृत, आत्मार्पित करते हैं।
गौतम को उनके इस अनोखे काम के लिए पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो दिल्ली के 49वें स्थापना दिवस पर देश के गृह मंत्री अमित शाह ने सम्मानित किया था। एस.के. गौतम देश के शायद पहले आईपीएस अधिकारी हैं, जिन्होंने भारतीय संविधान को एक ‘काव्य’ के रूप मे दिया है। बताते चलें कि, संविधान की कठिन भाषा उसकी जरूरत भी है। लेकिन आम लोग जो इस भाषा को नहीं समझ सकते उनके लिए गौतम जी की यह किताब सच में एक शानदार जरिया है अपने देश के संविधान को जानने समझने का।