दिल्ली… एक ऐसा शहर, जिसमें अपना भविष्य तलाशते हर साल ना जाने कितने ही लोग अपने गांव की कच्ची गलियां छोड़कर यहां की सड़कों पर भटकने चले आते हैं। एक ऐसा शहर, जहां हर दिन कई सपनें लिए युवा कलाकार नुक्कड़ नाटकों के जरिए बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं का संदेश देते हैं। एक ऐसा शहर, जहां औरत और पुरूष के बीच शायद ही कोई भेद अब बाकी बचा है। मगर इतनी तेजी से आगे बढ़ती दिल्ली का एक इलाका आज भी मानों सदियों पीछे चल रहा है। और ये पिछड़ापन सुविधाओं से नहीं है बल्कि, यहां रह रहे पेरना समुदाय की परंपराओं से है।
दरअसल, हम बात कर रहे है, दिल्ली के नजफगढ़ इलाके में बसे प्रेमनगर और धर्मपुरा क्षेत्रों की। जहां साल 1964 में राजस्थान से पेरना समुदाय की एक बड़ी आबादी आकर बस गई थी। पेरना समुदाय एक ऐसी घुमंतू प्रजाति है, जो इधर से उधर घूमकर अपने रहने-खाने का इंतजाम करते हैं।
मगर इनकी एक परंपरा को सुनकर शायद आपके भी कान खड़े हो जाएं, पेरना समुदाय के एक रिवाज के अनुसार, घर की बहुओं को पहला बच्चा पैदा होने के बाद बाजार में बेंच दिया जाता है। और इससे भी ज्यादा हैरानी ये जानकर होती है कि, इन महिलाओं को बेचने के लिए ग्राहक खुद इनके पति ही ढूंढ़ कर लाते हैं। क्योंकि, इस समुदाय के आदमियों को बेकार पड़े रहने की आदत पड़ चुकी है। कभी इन बस्तियों में जाकर देखेंगे तो आपको यहां का हर आदमी नशे में चूर, या तो कहीं पड़ा मिलेगा, या फिर ताश खेलता नजर आएगा।

पेरना समुदाय- पति करवाते हैं अपनी पत्नियों से सेक्स वर्क
कुछ सालों पहले रिसर्च साइट पैसिफिक स्टैंडर्ड ने इस समुदाय को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमे ये खुलकर सामने आया कि, पेरना समुदाय में पति अपनी पत्नियों से सेक्स वर्क करवाते हैं। और पैसे अपने पास रखते हैं। इस समुदाय में अक्सर लड़कियों की 17 से 18 साल की उम्र में शादी कर दी जाती है। और शादी के तकरीबन एक साल के भीतर ही जब वो एक बच्चे की मां बन जाती है, उसके बाद लगाई जाती हैं उनकी रातों की कीमत.. हालांकि, इस दौरान कई बार पुलिस के छापे भी पड़ते हैं, मगर अक्सर ये वर्दी वाले रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं। और पकड़े जाने के बाद ये औरतों को पुलिस की वासना का भी शिकार होना पड़ता हैं।
हालांकि, अब एक ओर रिवाज और दूसरी ओर आर्थिक तंगी के चलते कई महिलाओं ने इस काम को अपना भी लिया है। मगर सवाल ये है कि, आखिर कब तक हमारे देश में कभी परंपरा तो कभी मजबूरी की आड़ में महिलाओं के साथ ऐसा ही सुलूक होता रहेगा।
जहां हमारे ही देश के कई लोग वेश्यावृत्ति को कानूनी रूप दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ कोई इस बात की तरफ ध्यान नहीं देना चाहता कि, वाकई जो लड़कियां या महिलाएं इस दलदल में फंसी हुई हैं, वो इस काम को करना चाहती भी हैं या नहीं..

पेरना समुदाय- ‘अपने आप’ संस्था लेकर आई इन महिलाओं की जिंदगी में रौशनी
देश की राजधानी दिल्ली में अब तक ना जाने कितनी ही सरकारें बदली हैं, दिल्ली भी अब कहां से कहां पहुंच चुकी हैं, मगर इसके बावजूद भी अभी तक किसी भी सरकार, किसी भी प्रशासन ने इस समुदाय की महिलाओं की सुध तक लेना जरूरी नहीं समझा। दिल्ली में घर-घर बिजली जरूर मिली लेकिन नजफगढ़ के इन दो इलाकों में आजादी की रोशनी लिए कोई सरकार नहीं बल्कि ‘अपने आप’ नाम की एक संस्था पहुंची है।
पिछले 4 सालों से ये संस्था इन महिलाओं की जिंदगियों को रौशन करने के लिए हर मुमकिन प्रयास कर रहा है। आपको बता दें कि, इस संस्था की कोशिश है कि वो अनपढ़ गरीब और लाचार महिलाओं को पढ़ा लिखा कर आत्मनिर्भर बना सके, और साथ ही समाज में शादी के नाम पर बिकती हर लड़की को बचा सकें।
आपको बता दें कि, शुरूआती दौर में इस संस्था के लिए सबसे मुश्किल काम था, इन महिलाओं को खुदसे जोड़ना, मगर धीर-धीरे अपनी कोशिशों के दम पर संस्था के कार्यकर्ताओं ने ना सिर्फ ऐसी महिलाओं को बल्कि उनकी बेटियों को भी अपने सेंटर आने के लिए मना लिया। अपने आप संस्था के इस सेंटर पर महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, और कटिंग जैसे काम सिखाए जाते हैं। जिसके जरिए इन महिलाओं को स्वयंरोजगार के लिए प्रेरित किया जाता है। ये संस्था इन लड़कियों को तीन समूहों में बांटकर शिक्षा का इंतजाम करती हैं, जिनमें महिला वर्ग, किशोरी वर्ग और बाल मण्डल शामिल है। इसके हर समूह में 10 लड़कियां होती हैं।
इतना ही नहीं, संस्था के कार्यकर्ता इन महिलाओं को समय-समय पर काउंसलिंग भी देते रहते हैं। जिसके चलते अब जाकर इस समुदाय की कई लड़कियों में ना सिर्फ इस दलदल से बाहर आने की उम्मीद जगी है बल्कि, कई महिलाएं खुदका काम भी शुरू करना चाहती हैं, अब ये महिलाएं एक नया मुकाम हासिल करने रोज सेंटर में आती हैं। वेश्यावृत्ति के दलदल से बाहर आकर इन महिलाओं के भविष्य को सुधारने के लिए ये संस्था हर मुमकिन कोशिश कर रही है।