कोरोना का कहर हर तरफ है, यही वजह है कि, अब तक इस बीमारी के चलते दुनिया भर में 1 लाख 90 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गवां चुके हैं. जबकि कुछ ही दिनों में ये आंकड़ा 2 लाख को भी पार कर जाएगा. भारत में भी इस समय हालात कुछ ऐसे ही बनते नजर आ रहे हैं. हालांकि फिर भी स्थिति अब हाथ में हैं. लेकिन जहाँ एक तरफ भारत कोरोना वायरस को मात देने के लिए अपने घरों में कैद है. वहीं हर रोज देश के कई कोनों से आने वाली खबर सभी को परेशान कर रही है. जिसमें कभी कोरोना चेक करने गए डॉक्टरों पर पथराव की खबर आ रही है तो कभी कोई नेता, राजनेता या भी धर्म प्रचारक इन सबके बीच सबको भड़काने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन एक महीने से जारी लॉकडाउन के बीच में कई ऐसी खबरें भी आ रही है जो लोगों का दिल जीत ले रही हैं. उन्हीं खबरों में से एक खबर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद की है. जहाँ पिछले एक महीने से एक दंपति पिछले एक महीने से असम में एक मुस्लिम परिवार के साथ रह रहा है.
लॉकडाउन में दंपति की मदद को आगे आया मुस्लिम परिवार
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस समय लॉकडाउन का ऐलान किया. उस समय असम के ग्वालपाड़ा में रहने वाले दंपति मिथुन दास अपने इलाज के लिए अपनी पत्नी मौमिता के साथ सड़क के हास्ते कोलकाता जा रहे थे. लेकिन ये दोनों ही लॉकडाउन में फंस गए. इस मुसीबत की घड़ी में जिसके बाद बेलडांगा इलाके के रहने वाले फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने इस दंपति को शरण दी. वहीं इसकी खबर पाने के बाद यहाँ के बीडीओ और स्थानीय थाने के ओसी ने भी इस गांव में जाकर इन दोनों को खाने पीने की चीज़े मुहैया कराई तोकि दोनों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े.
दिल की बीमारी के इलाज को जा रहे थे कोलकाता मिथुन दास

मिथुन दास जोकि, असम के ग्वालपाड़ा जिले के रहने वाले हैं. वो दिल की बीमारी का इलाज करा रहे हैं. इसी वजह है कि, लॉकडाउन वाली रात वो अपनी पत्नी के साथ सड़क के रास्ते होते हुए कोलकाता जा रहे थे. लेकिन लॉकडाउन का ऐलान हो गया. इस समय न तो दोनों के पास इतना पैसा था कि, वो किसी होटल में रूक सके. और न ही कोई जानने वाला या कोई रिश्तेदार यहाँ रहता था. जिसके चलते दोनों ही असमंजस में पड़ गए. इस बीच इस दंपति के बारे में यहां गांव में रहने वाले एक युवक का इस बारे में पता चला. इसी युवक के सहारे ये दोनों बेलडांगा के मिर्ज़ापुर मौल्लापाड़ा गांव में पहुंचे थे. जिसके बाद वहां रहने वाले फ़ारूक अब्दुल्लाह नाम के एक युवक ने इन दोनों दंपति को अपने घर में रहने की इज़ाजत दी. यही नहीं अब्दुल्लाह ने पिछले एक महीने में इन दोनों के आतिथ्य सत्कार में कोई कोर कसर तक नहीं छोड़ी. चाहे मिथुन दास की दवाइंयों की बात हो या फिर इनके खाने पीने के इंतजाम की बात सभी इन्होंने पूरी तरह से की है.
वहीं मिथुन दास की पत्नी मौमिता की मानें तो वो कहती हैं कि, मेरे पति को दिल की बीमारी है. इन्हीं के इलाज के लिए हम अपने दो छोटे बच्चों को अपने रिश्तेदारों के यहां छोड़ कर आए थे. लेकिन रास्ते में ही लॉकडाउन हो गया. जिसके चलते हम दोनों यहां फंस गए. जहाँ हम किसी को नहीं पहंचानते, और न ही हमें कोई पहचानता है. लेकिन मेरे गांव में किसी ने मुझे बताया कि, फ़ारूक़ नामक एक व्यक्ति बेलडांगा में ही रहता है. वो फेरी का काम करता है. जिसके सिलसिल में असम आना जाना लगा रहता था. उसी गांव वाले ने ही हमें फ़ारूक़ अब्दुल्लाह का नंबर दिया. फिर मैं और मेरे पति दोनों इनके बारे में पूछते पूछते यहां पहुंचे.
घर पर पहुंचे हिंदू दंपति की मदद को आगे आया Farooq Abdullah
जिस समय दोनों दंपति फ़ारूक़ का पता पूछते पूछते उनके घर पहुंते तो फ़ारूक़ ने इनको अपने घर में रहने की इज़ाजत बिना शर्त दे दी. मिथुन बताते हैं कि, पिछले एक महीने में फ़ारूक़ ने जितना हमारे लिए किया है. इतना तो हमारे अपने लोग भी नहीं करतें. हम दोनों पति पत्नी फ़ारूक़ के पूरी उम्र अहमसान मंद रहकर भी ये बोझ नहीं उतार सकते.
वहीं फ़ारूक़ इस इलाके की पंचायत प्रमुख आशिया बीबी का भतीजा है. लेकिन इसके बारे में इस दंपति को बाद में पता चला.

फ़ारूक़ कहते हैं कि, “मैं पहले असम के ग्लावापाड़ा में फेरी का सामान बेचने जाया करता था. जहां मैं शायद इनके भी गांव में गया हूँ. आज लॉकडाउन के समय में ये दोनों मुसबीत में हैं. इसलिए मैंने अपनी मानवता के धर्म को समझते हुए इनकी मदद की है.” इसके साथ मेरी मदद हमारे यहां की ग्राम पंचायत की प्रमुख आशिया बीबी ने भी की है. इसके साथ वो कहते हैं कि, ये दोनों एक महीने नहीं एक साल भी यहां रहे तो हमें कोई दिक्कत या परेशानी नहीं है.
वहीं हमने इन दोनों को अपने घर भेजने के लिए कोशिशें की हैं ताकि वो अपने बच्चों के पास लौट सके. जिसके लिए हमने ब्लाक डेवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) से बात की है. ताकि इन्हें जल्द से जल्द घर पहुंचाया जा सके. लेकिन उन्होंने कहा कि, अभी ये संभव नहीं है. लेकिन लॉकडाउन खुलते ही इन्हें घर पहुंचा दिया जाएगा.
हाल ही में यहां की बीडीओ और स्थानिय थाने के ओसी भी गांव में आए थे. जिन्होंने इनसे मुलाकात की और इन्हें राहत सामग्री दी. साथ ही इनकी हर संभव मदद का भरोसा भी दिया है.
ज़ाहिर है, जहाँ नफरत की आंधी और उसका शोर जिस तरह इस समय देश के कई इलाकों में चल रही है. इस बीच लोगों के अंदर की मानवता और भारतीयता अभी भी जिंदा है. बस वक्त है तो, उसे जानने और पहचानने की.