वैसे तो हर इंसान जानता है कि, कोरोना जैसा समय किसी भी देश के लिए सबसे बुरे समय में से एक है. जहां इस बीमारी के दौर में लोगों ने कई अपने खो दिए. वहीं अभी भी न जानें कितने हैं. जो इस बीमारी से जंग लड़ रहे हैं. जिसमें कुछ लोग जंग हार जाते हैं तो कुछ जीत कर फिर अपनों के बीच लौट आते हैं. क्योंकि अपनों के बीच रहना हर इंसान का ख्वाब और सपना होता है. खासकर जब वो मुसीबत के दौर में हो, लेकिन हम आज आपको जिस परिवार के बारे में बताने जा रहे हैं. वो परिवार इन सबसे बिल्कुल अलग है. क्योंकि वो कोई भारतीय परिवार नहीं है.
जिस समय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में लॉकडाउन की घोषणा की थी. उस समय ऐसे न जानें कितने ही लोग थे. जो अपनों से कहीं दूर फंस गए और अपने परिवार के पास नहीं पहुंच पाए. क्योंकि लॉकडाउन में जो जहां था. वहीं रुका रहा. इस बीच उत्तर प्रदेश के महाराजगंज के पुरंदरपुर थाना क्षेत्र के एक गांव कोल्हुआ जिसे लोग सिहोंरवा के नाम से जानते हैं. उसके शिव मंदिर पर एक परिवार लॉकडाउन के दौरान आकर बस गया. ये परिवार किसी गांव के आस-पास से विस्थापित नहीं था. बल्कि लॉकडाउन के चलते मजबूर होकर यहां फंसा था. बाद में जब उस परिवार के बारे में लोगों को पता चला तो, उन्होंने बताया कि, वो फ्रांस के रहने वाले हैं. जोकि फ्रांस के टूलूज शहर में रहते हैं.

लेकिन देश में शुरू हुए लॉकडाउन के चलते करीब दो महीने ये परिवार इस गांव में रहने लगा. इस परिवार के मेन मेंबर पैट्रीस पैलेरस और उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ टूरिस्ट वीजा के जरिए 1 मार्च 2020 को पाकिस्तान पहुंचे थे. जहां से बाघा बॉर्डर के जरिए ये परिवार भारत में दाखिल हुआ था. यही नहीं ये परिवार भारत के बाद नेपाल जाकर घूमना चाहता था. लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था. क्योंकि भारत में इसी समय कोरोना की दस्तक बढ़ने से, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संपूर्ण लॉकडाउन का ऐलान कर दिया.
जिसके बाद मजबूरन इस परिवार ने पुंरदरपुर थाना क्षेत्र के गांव कोल्हुआ में एक शिव मंदिर के पास अपना आशियाना बनाया. दिलचस्प बात ये रही कि, इस लॉकडाउन में जहां इस परिवार ने अपने आस पास पौधे लगाए तो अपना पूरा लॉकडाउन बेहतर बनाने के लिए आस-पास से मेलजोल भी बढ़ाया.
भोजपुरी और गांव से जुड़ गया अपनापन
पैट्रीस पैलेरस और उनकी पत्नी ओपैला मार्गीटाइड कहते हैं कि, जिस समय हम भारत आए थे. उस समय हमें बस फ्रैंच और इंग्लिश आती थी. लेकिन आज इस गांव में दो महीने गुजारने के बाद हमारा परिवार टूटी फूटी भोजपुरी बोलना भी सीख गया है. यही वजह है कि, आज हमें इन सबके बीच अपनापन महसूस होता है.

इसके आगे पैट्रीस पैलेरस कहते हैं कि, मेरी पत्नी स्वास्थ्य विभाग में काम करती है. हम सभी पर्यावरण संरक्षण को अहम मानते हैं. यही वजह है कि, हमने मिलकर मंदिर के आस-पास पेड़ लगा ड़ाले. इस लॉकडाउन के चलते जहां नेपाल जाना संभव नहीं था. यही वजह रही कि, हमने यहां रूक कर यहां के लोगों से यहां की सभ्यता और संस्कृति सीखी. वहीं यहां के बारे में हमें बहुत कुछ मालूम चला.
गांव के लोगों ने भी अपनाया इस परिवार को

दो महीने से ज्यादा का वक्त गुज़ार चुका ये परिवार आज गांव वालों के बीच काफी मशहूर है. इस फ्रांसीसी परिवार के सबसे छोटे सदस्य टॉम पैलेरस आज जहां गांव के बच्चों के साथ उनकी साइकिल पर घूमते है. वहीं गांव के लोग उसे टॉम न बुलाकर कृष्णा कहते हैं. यही वजह है कि, कृष्णा भी बच्चों के साथ साइकिल पर पूरा गांव घूमता है. हमारी सभ्यता और संस्कृति की अनूठी छाप हमेशा से ही ऐसी रही है की जो चाहे जहां से भी आता है. वो यहीं का होकर रह जाता है. यही हमारा अनूठा भारत है. यही हमारी अनूठी सभ्यता