दुनिया इस वक्त कोरोना वायरस से पीड़ित है, हालात यह है कि दुनिया के 150 से ज्यादा देशों में कोरोना पैर पसार चुका है और 18 हजार लोगों की जान ले चुका है। वहीं अभी भी दुनियाभर में करीब 12 हजार से ज्यादा मरीज ऐसे हैं, जो कोरोना के कारण काफी गंभीर स्थिति में हैं। इस वायरस को लेकर अभी तक कोई एंटीडोड हमारे पास नहीं है। जिसके कारण इससे बचने और दूर रहने के अलावा हमारे पास कोई उपाय नहीं है। दुनियाभर के देशों में लॉकडाउन की स्थिति है। हमारे देश भारत में भी 21 दिनों का लॉकडाउन लगा दिया गया है, मतलब कि देश के सारे लोग अब 21 दिनों तक अपने घरों में ही रहेंगे। इस दौरान इन्हें डॉक्टरों की ओर से सुझाय गए उपायों को करते रहना होगा, जैसे सोशल डिस्टेंट मेंटेन करना, हाथों को बार-बार धोना आदि। लेकिन इसी बीच एक बात की भी चर्चा है और वो चर्चा है, हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत रखने की। डॉक्टरों को भी आपने कहते हुए सुना होगा कि इस वायरस का असर उनपर नहीं होगा जिनका इम्यून सिस्टम मजबूत है।
लेकिन यह इम्यून सिस्टम होता क्या हे और इसे बेहतर बनाकर कैसे रखा जा सकता है? यह सवाल आपका भी होगा। तो बता दें कि हमारे शरीर के अंदर होने वाली बिमारियों से बचाने वाली शरीर की शक्ति ही हमारी इम्यूनिटी कहलाती है। यानि की हमारा शरीर लगातार कई तरह के जीवाणुओं के हमले झेलता रहता है जैसे अभी कोरोना वायरस, ये हमले नाकाम तभी हो सकते हैं जब हमारे शरीर का किला यानी हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो। हमारे शरीर के अंदर का यही किला हमारा इम्यून सिस्टम कहलाता है। लेकिन इस किले को मजबूत रखने के लिए जरूरी है कि हम इस किले की मरम्मत करते रहे, यानि की इम्यूनिटी को मजबूत बनाए रखें और इसके लिए जरूरी है कि हम अपने खान-पान को सही रखें।

ऐसे में अब जब हम अपने घरों में लॉक हैं तो यह और भी जरूरी है कि हम अपने शरीर के अंदर के घर को भी एक मजबूत ताले से लॉक कर दें ताकि कोरोना जैसा वायरस इसमें न घुस सके। लेकिन हमारी इम्यूनिटी मजबूत कैसे होगी? इस सवाल का जवाब हमें मिलता है हमारे आयुर्वेद में, जहां हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के बारे में विस्तार से बताया गया है और कई ऐसे सुझाव दिए गए हैं जिसके जरिए हम अपने शरीर की इम्यूनिटी को और ज्यादा स्ट्रॉग बना सकते हैं।
इम्यूनिटी की बात आते ही हमारा ख्याल हमारे पेट की ओर जाता है और कहा भी जाता है कि पेट सफा तो हर रोग दफा। आयुर्वेद में इंसानी शरीर के अंदर की प्रतिरोधक क्षमता के बारे में बताते हुए त्रिदोष का जिक्र किया गया है। यह हैं वात, पित और कफ। दरअसर आयुर्वेद की माने तो यह तीनों धातु हैं, जिनकी मात्रा बढ़ने और घटने से शरीर की इम्यूनिटी का किला कमजोर हो जाता है। ऐसे में जरूरी है कि इन तीनों धातुओं का संतुलन शरीर के अंदर बना रहे। ‘रोगस्तु दोष वैषम्यम्’ । अत: रोग हो जाने पर अस्वस्थ शरीर को पुन: स्वस्थ बनाने के लिए त्रिदोष का संतुलन जरूरी है।
Lockdown – पहले समझिए कि ये तीनों हैं क्या?
जब शरीर में वात, पित्त और कफ तीनों समावस्था में रहते हैं तो शरीर का परिचालन, संरक्षण तथा संवर्धन सही होता है। हम स्वस्थ्य रहते हैं और हमारी आयु भी बढ़ जाती है। अगर यह सही नही हो तो हमारा लीवर, फेफड़ा, गुर्दा आदि खराब हो जाते हैं और डाइजेशन सिस्टम भी ठीक से काम नहीं करता। जिसके कारण हमारा इम्यूनिटी कमजोर होता है और कोई वायरस या वैक्टिरिया हमे बीमार कर जाता है और बीमारी लाती है कई तरह की और सारी प्रॉब्लम्स। ऐसे में जरूरी यही है कि बीमारियों से बचने के लिए इस त्रिसिद्धांत को फॉलो किया जाए।

इस सिद्धांत को लागू करने के लिए यह देखना जरूरी है कि इंसान की प्रकृति यानि की उसका नेचर कैसा है। वात को बादी यानि वायु वाले नेचर का, पित्त को गर्म नेचर का और कफ को कोल्ड नेचर का माना गया है। वात, पित और कफ को सही करने के लिए आयु, मानसिक स्थिति, शारीरिक बल, रोग की अवस्था, देश, मौसम, जैसे कई ओर पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाता है। आयुर्वेद बताता है कि जिस धातु को लेकर शरीर के अंदर प्रॉब्लम होता है हमे उसी के अनुसार खान-पान करना चाहिए। जैसे कि अगर प्रॉब्लम कफ से जुड़ी हो यानि की ठंड से तो ठंडी चीजों से परहेज करना चाहिए।
त्रिदोष को मेंटेन करने के लिए जीभ का भी बहुत ख्याल रखना होता है, यानि की स्वाद का। आयुर्वेद की माने तो स्वाद 6 तरीके के हैं अम्ल (खट्टा), मधुर (मीठा), लवण (नमकीन), कटु (कड़वा), तिक्त (चरपरा,तीखाया खट्टा), कषाय (कसैला)। हमें इन सभी स्वादों का आनंद संतुलित रुप से ज्यादा लेना चाहिए यानि की न ज्यादा खट्टा न ज्यादा मीठा, ताकि त्रिदोष को समान रखा जा सके। आयुर्वेद की मानें तो वात, पित्त और कफ को बढ़ाने और मेंटेन करने में तीन-तीन स्वादों का हाथ होता है।
कफ बढ़ाने वाले — वर्धक-मीठे, खट्टे, नमकीन।
कफ मेंटेन करने वाले — कडवा, चरपरा, कसैला।
पित्त बढ़ाने वाले – कडवा, नमकीन, खट्टा।
पित्त मेंटेन करने वाले – मीठा, चरपरा, कसैला।
वात बढ़ाने वाला – कड़वा, चरपरा, कसैला।
वात मेंटेन करने वाला – मीठा, खट्टा, नमकीन।
मीठे, खट्टे, और नमकीन चीजें वे कफ को बढ़ाती हैं, नमकीन, मीठी और खट्टी चीजें पित्त को बढ़ाती हैं, कड़वी, चरपरी और कसैली चीजें वायु को बढ़ाती हैं। यहां आप थोड़ा कन्फयूज होंगे क्योंकि जो चीज एक को बढ़ाती है वो ही दूसरे को समान्य भी करती है। इसलिए हमें इन चीजों को बॉडी के नेचर के अनुसार ही खाना चाहिए ताकि डिसबैलेंस न हो। यह डिसबैलेंस न हो इसके लिए हमें मौसम का ख्याल रखना चाहिए। दरअसल बारिश के समय वात का, ठंड में पित्त और वसंत या गर्मी में कफ सामन्य रहते हैं। वहीं इस दौरान इंसान की उम्र का भी ध्यान रखना जरूरी है।
जैसे कि बच्चों में कफ का दोष होता है, युवाओं में पित्त का और बुजुर्गो में वात का। इसी तरह दिन के पहरों पर भी जोर देना जरूरी है। दिन के प्रथम प्रहर में वात, दोपहर में पित्त का और रात्रि में कफ का जोर रहता है। आयुर्वेद में यह भी कहा गया है कि खाने के तुरंत बाद कफ बढ़ता है, भोजन पचते समय पित्त का और भोजन के पाचन के बाद वायु। इसीलिए भोजन के तुरन्त बाद पान खाने की परंपरा भारत में रही है।

Lockdown- शरीर की बनावट और स्वभाव भी त्रिदोष पर आधारित
आयुर्वेद बताता है कि हमारे शरीर की बनावट ओर हमारा स्वभाव भी त्रिदोष सिद्धांत पर आधारित है। इसके अनुसार हम सभी का शरीर इन तीनों तत्वों में से किसी एक प्रवृत्ति का होता है, जिसके अनुसार उसकी बनावट, दोष, मानसिक अवस्था और स्वभाव तय होती है। अगर आप अपने शरीर के बारे में इतना कुछ जान लेंगे तो यकीनन अपनी सेहत से जुड़ी समस्याओं को हल कर सकते हैं और फिट रह सकते है।
वात युक्त शरीर
आयुर्वेद के अनुसार, वात युक्त शरीर यानि की वायु वाला शरीर का वजन तेजी से नहीं बढ़ता और ये अधिकतर छरहरे होते हैं। इनका मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है लेकिन इन्हें सर्दी लगने की आशंका अधिक रहती है। आमतौर पर इनकी त्वचा ड्राइ होती है और नब्ज तेज चलती है। वहीं स्वभाव की बात करें तो सामान्यतः ये बहुत ऊर्जावान और फिट होते हैं। इनकी नींद कच्ची होती है और इसलिए अक्सर इन्हें अनिद्रा की प्रॉब्लम होती है। इनमें काम की इच्छा ज्यादा होती है और ये लोग बातूनी होते हैं। वहीं मानसिक स्थिति की बात करें तो ये बहुमुखी होते हैं और अपनी भावनाओं का झट से इजहार कर देते हैं। हालांकि इनकी याददाश्त कमजोर होती है और आत्मविश्वास भी कम होता है। ऐसे लोग बहुत जल्दी तनाव में आ जाते हैं। ऐसे लोगों को अधिक से अधिक फल, बीन्स, डेयरी उत्पाद, नट्स खाना चाहिए।

पित्त युक्त शरीर
आयुर्वेद की माने तो पित्त युक्त शरीरवालों में गर्मी ज्यादा होती है। इनके शरीर की बनावट आमतौर पर मध्यम कद-काठी की होती है। मांसपेशियां अधिक होती हैं और इन्हें गर्मी ज्यादा लगती है। ये कम समय में ही गंजेपन का शिकार होते हैं, त्वचा इनकी कोमल होती है और इनमें ऊर्जा का स्तर अधिक होता है। स्वभाव की बात करें तो ऐसे लोग को आसानी से शॉक नहीं किया जा सकता। इनकी नींद गहरी होती है और कामेच्छा और भूख तेज होती है। आमतौर ये लोग ऊंची टोन में बात करते हैं। वहीं मानसिक तौर पर ये लोग लोग आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा से भरे होते हैं। इन्हें परफेक्शन की आदत होती है और लोगों के अटेंशन के भूखे होते हैं। ऐसे लोगों को स्वस्थ रहने के लिए फल, आम, खीरा, हरी सब्जियां अधिक खानी चाहिए।
कफ युक्त शरीर
अब बात कफ युक्त शरीर वालों की कर लेते हैं। कफ यानि की ठंडा, इन्हें लेकर आयुर्वेद कहता है कि आमतौर पर ऐसे लोगों का की संख्या दुनिया में अधिक है। इनके कंधे और कमर का हिस्सा अधिक चौड़ा होता है। ये अक्सर तेजी से वजन बढ़ा लेते हैं और इनमें स्टैमिना भी अधिक होता है। इनका शरीर मजबूत होता है। वहीं स्वभाव से ये लोग फूडी होते हैं और थोड़े आलसी। इन्हें सोना बहुत पसंद होता है, इनमें सहने की क्षमता अधिक होती है और ये समूह में रहना अधिक पसंद करते हैं। मानसिक स्थिति की बात करें तो ये लोग सीखने में ज्यादा वक्त लगाते हैं और भावुक होते हैं। आयुर्वेद ऐसे लोगों को हल्का गर्म खाना खाने की सलाह देता है। इन्हें हैवी और तैलीय खाने से दूर रहना चाहिए। मसाले जैसे काली मिर्च. अदरक, जीरा और मिर्च का सेवन इनके लिए फायदेमंद हो सकता है।
ऊपर हमने आपको त्रिदोष सिद्धांत के बारे में हर बारीकी के बारे में बताया है। इस जानकारी के जरिए आप अपने आप को खुद से एक बेहतर डाइट के जरिए फिट रख सकते है। जब आप फिट रहेंगे तो आपका इम्यून सिस्टम मजबूत रहेगा और मजबूत इम्यूनिटी ही आपके स्वस्थ रहने की गैरेंटी है। भोजन के साथ ही आपको योग भी करना चाहिए इससे बीमारियों का खतरा आपके शरीर को कम रहता है और अपने आस—पास सफाई रखनी चाहिए।