साल 1948 भारत की आज़ादी को भारत को अपनी आज़ादी के एक साल पूरे हो गए थे, भारत अब अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र था, उसका अपना तिरंगा झंडा था. जो उसकी ज़मी पर लहरा रहा था. लेकिन 1948 में ब्रिटेन से भारत ने एक और जंग लड़ी. ये जंग हथियार से किसी युद्ध के मैदान में नहीं हुई थी, बल्कि ये जंग हुई खेल के मैदान में. आजादी से पहले भारत का हॉकी के खेल में बहुत नाम था. लेकिन उस समय इस खेल का पूरा क्रेडिट ब्रिटेन के खाते में जाता था. लेकिन अब जब भारत आज़ाद था. ऐसे में पश्चिम में ये सोच थी कि अब भारत कुछ नहीं है. लेकिन खेल की मैदान में उतरे भारतीय हॉकी टीम ने ब्रिटेन को ये बात बता दी कि, हॉकी के वर्ल्ड में भारत ही चैंपियन था और रहेगा.
12 सितंबर की तारीख को हॉकी खेल प्रेमी कभी नहीं भूल सकते. लंदन ओलंपिक्स, वेंबली स्टेडियम, उस समय करीब 25,000 दर्शकों से भरा पड़ा था. मैदान पर फाइनल मुकाबला चल रहा था और भारत के सामने कल तक उसपर राज करने वाले देश ब्रिटेन के खिलाड़ी थे. मैच के सातवें मिनट में एक लड़के ने भारत की तरफ से पहला गोल दागा. लोग संभले ही थे कि 15वें मिनट पर उसने एक और गोल किया. इसके बाद दो गोल तरलोचन सिंह बावा और पैट जैंसन ने किए. भारत मुकाबले में 4-0 से आगे हो गया और मैच इसी स्कोर पर ख़तम हो गया. ब्रिटेन भारत से दूसरी बार हारा और खेल के मैदान में पहली बार. पहली बार इंग्लैंड की धरती पर किसी स्पोर्टिंग इवेंट में भारत का तिरंगा लहरा रहा था. इसी मैच कि कहानी से इंस्पायर अक्षय कुमार की फिल्म गोल्ड आईं थीं.
इस मैच में पहले दो गोल करने वाले शख्स कोई और नहीं बल्कि भारत के महान खिलाड़ी बलबीर सिंह दोसांझ उर्फ बलबीर सिंह सीनियर थे. 25 मई को इस महान खिलाड़ी का निधन हो गया. वे 96 साल के थे. उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं थीं. बलबीर सिंह ने भारत को तीन ओलंपिक में स्वर्ण पदक दिलवाए. मेजर ध्यानचंदन के बाद वे भारत के दूसरे सबसे महान खिलाड़ी थी. उनके हॉकी करीयर से जुड़े किस्से बहुत प्रभावित करने वाले हैं.

Balbir Singh : 1948 ओलंपिक में सिर्फ दो मैच खेले
दरसअल लंदन ओलंपिक्स के लिए जिस टीम को चुना गया था उसमें शुरूवात में बलबीर सिंह का नाम हीं नहीं था. लेकिन उनकी तेज़तर्रार प्रतिभा के कारण बाद ने उनका नाम जोड़ लिया गया. हालांकि उन्हें पहले मैच में खेलने का मौका नहीं मिला. मौका मिला दूसरे मैच में अर्जेंटीना के खिलाफ. इस मौके को बलबीर ने पूरा एन्जॉय किया और ऐसा तूफान मचाया की दर्शक झूम उठे. उन्होंने इस मैच में छह गोल दागे, जिसमें हैट-ट्रिक भी शामिल थी. भारत ने इस मैच को 9-1 से जीत लिया. लेकिन इसके बावजूद उन्हें आगे नहीं खिलाया गया. शायद इसका एक कारण था उनका सेंटर फॉरवर्ड खेलना और टीम में उनके आलावा तीन और सेंटर फॉरवर्ड खिलाड़ी थे. आखिर में उन्हें फाइनल में उतारा गया और रेस्ट तो हिस्ट्री है जो अपने ऊपर पढ़ा हीं. अक्षय कुमार की फिल्म ‘गोल्ड’ में विकी कौशल के भाई सनी कौशल ने हिम्मत सिंह का रोल किया था, जो बलबीर सिंह सीनियर से ही प्रेरित था.
Balbir Singh : स्वदेश लौटते समय जब समुद्र में फंस गई पूरी टीम

1948 के ओलंपिक में ब्रिटेन को हराकर जब आजाद भारत की हॉकी कि टीम गोल्ड मेडल लेकर अपने देश भारत लौट रही थी. तब मुंबई से कुछ ही दूर समुद्र में वो एक बड़ी मुसीबत में फंस गई. दरअसल घर लौटते समय उनका समुद्री जहाज जवार-भाटे में फंस गया था. उस ओलंपिक में स्टार बने बलबीर सिंह अपने जहाज से अपनी मातृ-भूमि को देख पा रहे थे. ज्वार भाटे के कारण पूरी टीम को उसी हालत में दो दिन तक जहाज में ही रहना पड़ा. जब ज्वार ऊँचा हुआ तब जा कर उनका जहाज बंबई के बंदरगाह पर लग सका. लेकिन खेल प्रेमियों का उत्साह ऐसा था कि कई लोग अपनी छोटी छोटी नाव लेकर जहाज के पास हॉकी में स्वर्ण पदक लाने वालों को बधाई देने के लिए पहुंच गए थे.
Balbir Singh : चोटिल होने के बाद भी जब पाकिस्तान पर पड़े भारी

देश के लिए और अपनी टीम को जीतने के लिए बलबीर सिंह की खेल भावना और प्रतिभा 1956 में पूरी दुनिया ने देखी. 1956 के मेलबर्न ओलंपिक हॉकी टीम के कप्तान बलबीर सिंह ही थे. पहले मैच में भारत ने अफनिस्तान को 14-0 से हराया लेकिन भारत को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब कप्तान बलबीर सिंह के दाँए हाथ की उंगली टूट गई. बीबीसी से बात करते हुए बलबीर ने इस बारे में बताया था कि, “मैं अफगानिस्तान के खिलाफ पांच गोल मार चुका था, तभी मुझे बहुत बुरी चोट लग गई. ऐसा लगा किसी ने मेरी उंगली के नाख़ून पर हथौड़ा चला दिया हो. शाम को जब एक्स-रे हुआ तो पता चला कि मेरी उंगली में फ़्रैक्चर हुआ है. नाखून नीला पड़ गया था और उंगली बुरी तरह से सूज गई थी.”
उन्होंने आगे बताया था कि, “मैनेजर ग्रुप कैप्टेन ओपी मेहरा, चेफ डे मिशन एयर मार्शल अर्जन सिंह और भारतीय हॉकी फ़ेडेरेशन के उपाध्यक्ष अश्वनी कुमार के बीच एक मंत्रणा हुई और ये तय किया गया कि मैं बाकी के लीग मैचों में नहीं खेलूंगा… सिर्फ सेमीफाइनल और फाइनल में मुझे उतारा जाएगा और मेरी चोट की खबर को गुप्त रखा जाएगा. वजह ये थी कि दूसरी टीमें बलबीर के पीछे कम से कम दो खिलाड़ियों को लगाती थीं जिससे दूसरे खिलाड़ियों पर दबाव कम हो जाता था.
बहरहाल भारतीय टीम जर्मनी को हरा कर फाइनल में पहुंची। लेकिन यहां उसका मुकाबला पड़ोसी पाकिस्तान से था. ये पाकिस्तान से पहला मुक़ाबला था, लेकिन इसका इंतजार दोनों देशों के खिलाड़ी 1948 से ही कर रहे थे. भारत की टीम बहुत ज्यादा दबाव में थी. भारत पर दबाव ज्यादा था, क्योंकि अगर पाकिस्तान को रजत पदक भी मिलता तो उसे संतोष था. लेकिन भारत के लिए गोल्ड से नीचे कुछ भी सोचना भी बुरा था. मैच से एक दिन पहले बलबीर सिंह बहुत ही तनाव में थे. भारत ने फाइनल में पाकिस्तान को 2-1 से हरा कर विश्व कप हॉकी जीता.
Balbir Singh : 13 नंबर की जर्सी पहन दागे 9 गोल

13 गोल दागने का कारनामा बलबीर ने 1952 के हेलिंस्की ओलंपिक खेलों में किया था. वहां उन्हें 13 नंबर की जर्सी पहनने के लिए दी गई. वैसे 13 एक अशुभ माना जाता है, लेकिन बलबीर ने इसी जर्सी को पहने हुए अपने दमदार खेल का प्रदर्शन किया. पूरे टूर्नामेंट में भारत ने कुल 13 गोल स्कोर किए. उनमें से 9 गोल बलबीर सिंह ने मारे.
ऐसे महान खिलाड़ी का दुनिया से जाना बेहद दुखद है. लेकिन हकीकत यही है कि, जो आया है उसका जाना तय है. ऐसे में बलवीर सिंह का जाना हॉकी जगत के साथ-साथ भारत के लिए एक कल्पनिय क्षति है.