एक वक्त था, जिस समय हमारे देश में गाँवों से लेकर शहरों के लोग अपना काम बस इसलिए जल्दी खत्म कर लिया करते थे, ताकि उन्हें शाम 7 बजे से शुरू होने वाला रामायण देखने में कोई परेशानी न हो। ये वो दौर था, जिस समय लोग रामायण देखने के लिए टी.वी से इस कदर चिपक-कर बैठ जाते थे कि, गलियां तक सूनी हो जाया करती थी. क्योंकि टी.वी. पर आ रहा रामायण किसी इंसान की कल्पना मात्र नहीं थी. वो एक ऐसी हकीकत थी. जिसे लोग अपने अंदर महसूस किया करते थे.
लोगों की भावना कुछ इस तरह रामायण के पात्र से जुड़ गई थी कि, जिसमें लोग चल-चित्र के पात्रों को ही भगवान का दर्जा तक देने लगे थे, यहां तक की जैसे ही टीवी पर राम सीता की जोड़ी दिखाई देती लोग अपने हाथ तक जोड़कर बैठ जाते थे, जिसका पूरा श्रेय जाता है, रामायण के डायरेक्टर रामानंद सागर को.. जिन्होंने 25 जनवरी 1987 को पहली बार रामायण का पहला एपिसोड टेलीकास्ट करवाया था। इसी टेलीकास्ट ने टीवी इंडस्ट्री में फिर से ऐसा कीर्तिमान रचा की कोई भी इंसान शायद ही ऐसा हो, जिसे रामायण के बारे में ज्ञान न रहा हो।
हालांकि शुरुआती समय में रामानंद सागर को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि अधिकतर लोगों ने रामानंद सागर की इस कल्पना को निराधार बताकर, ये कह कर कि, कौन बड़ी-बड़ी मूछें और मुकुट देखेगा. उन्हें सलाह दे दी थी कि, कुछ अच्छा करो और अपना हाथ खींच लिया था।

और वहीं दूसरी तरफ रामानंद सागर का असली धेय ही रामायण को किताब से निकालकर असल धरातल पर लाने में लग गया था। रामानंद सागर के जीवन पर आधारित किताब An Epic Life: Ramanand Sagar: From Barsaat to Ramayan, जोकि उन्हीं के बेटे प्रेम सागर ने लिखी है. उसमें उन्होंने अपने द्वारा किए गए जिंदगी के अधिकांश हिस्सों को छुआ है. साथ ही उन्होंने बताया कि, कैसे रामायण को बनाने में कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. रामानंद सागर ने ‘रामायण’ का निर्देशन अपनी ही प्रोडक्शन कंपनी ‘सागर आर्ट्स’ के जरिए किया था. इसके पहले भी वो फिल्मों का निर्देशन किया करते थे.
पहली बार जब रामानंद सागर ने देखा था, रंगीन टीवी
बात है 1976 की, जिस समय रामानंद सागर अपने चार बेटों (सुभाष, मोती, प्रेम और आनंद) के साथ अपने देश से बाहर स्विट्जरलैंड में थे. जहां पर उनकी फिल्म ‘चरस’ की शूटिंग हो रही थी. वहीं एक शाम जब उन्होंने अपना पूरा काम खत्म किया तो, एक कैफे में जाने की योजना बनाई. भीषण सर्दी के चलते कैफे में रामानंद सागर ने रेड वाइन का ऑर्डर दिया था. फिर रेड वाइन आई और वाइन सर्व करने वाले शख्स ने इस दौरान लकड़ी का एक रेक्टेंगल बॉक्स खिसकाकर हमारे सामने रख दिया और फिर उस बॉक्स के दोनों पल्लड़ों को हटा दिया. फिर उसने अंदर रखी टीवी का स्विच ऑन कर टीवी चालू कर दिया और फिल्म चल पड़ी.
लेकिन हैरानी की बात ये थे कि, सभी लोग हैरान थे. क्योंकि टीवी रंगीन थी. उसमें जो भी पात्र दिखाई दे रहे थे, रंगीन थे…चूंकि इससे पहले उनमें से किसी ने भी रंगीन टीवी पर फिल्म नहीं देखी थी. बस फिर कुछ देर के बाद रामानंद सागर ने फिल्मों की दुनिया से निकलकर टीवी की तरफ लौटने का ख्याल बना लिया. अपने हाथ में वाइन का गिलास लिए उन्हें काफी देर टीवी को निहारने के बाद कहा कि,
मैं अबसे सिनेमा छोड़ रहा हूं। मैं टेलीविजन (इंडस्ट्री) में आ रहा हूं। इसके साथ उन्होंने ये भी तय कर लिया कि, आखिर उन्हें करना क्या है। उन्होंने कहा कि, मेरी जिंदगी का मकसद अब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को सोलह गुणों को और फिर श्री कृष्ण और फिर मां दुर्गा की कहानियों को लोगों के सामने दिखाना है.
यहीं से उन्होंने ‘रामायण’ बनाने का ऐलान कर दिया, साथ में बैठे लोगों की मिली जुली प्रतिक्रियाएं आई। हालांकि उस बीच अधिकतर लोगों ने उनके इस फैसले की आलोचना की। फिर भी वो इस पर पूरी तरह प्रतिबद्ध हो चुके थे.
‘रामायण’ और टीवी का नाम सुन, दोस्तों ने छोड़ा साथ

जिस समय रामानंद सागर ‘रामायण’ और श्री कृष्णा को बनाने की तैयारियां कर रहे थे. उन्होंने कहा कि, इन वीडियो को कैसेट्स के जरिए भी लॉन्च किया जाएगा. जिसकी जानकारी मिलने के बाद, रामानंद सागर के अधिकतर दोस्तों ने भी इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए और उनका साथ छोड़ दिया. यही वजह थी कि, प्रेम सागर बताते हैं कि, इस बीच मेरे पिता जी ने मेरे लिए दुनियाभर की टिकट खरीदी और मुझको देश से बाहर रह रहे अमीर इंडियन फ्रेंड्स की कॉन्टेक्ट लिस्ट दी, ताकि वो अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए पैसा इकट्ठा कर सके. लेकिन दूसरी तरफ पापा के दोस्त भी इस प्रोजेक्ट पर न तो श्योर थे और न ही इंट्रेस्टेड थे. कुछ लोगों ने तो मुझे सलाह तक दे डाली कि, मैं अपने पिता जी को थोड़ा समझाऊ और उनको रोक दूं. वहीं कुछ लोग अपने सेक्रेटरी की तरफ इशारा कर चलते बने. मैंने एक महीने तक विदेश का सफर किया और आखिरकार खाली हाथ मैं वापस लौट आया. पिता जी के ‘रामायण’ पर कोई पैसा लगाने वाला नहीं मिला.
रामायण से पहले विक्रम और बेताल
जिस समय रामायण नहीं आया था, उसके पहले अस्सी के दशक में, भारतीय घरों में टीवी का आगमन हो चुका था. साथ ही दूरदर्शन के प्रति लोगों का स्नेह भी उमड़-उमड़कर बाहर आता था. क्योंकि लोगों के पास इसके अलावा कोई और चारा नहीं था. इसी बीच टीवी पर एक सीरियल की शुरूवात हुई थी. जिसका नाम था ‘विक्रम और बेताल’…इस सीरियल को बच्चों के लिए बनाया गया था. लेकिन धीरे-धीरे बड़ी उम्र के लोग भी इसे पसंद करने लगे. इसको शुरू करने को लेकर भी रामानंद सागर काफी मेहनत की थी.
बात उस समय की थी. जिस समय शरद जोशी, जोकि एनबीटी में कॉलम लिखा करते थे, साथ ही वो एक स्कॉलर थे. रामानंद सागर और शरद जोशी ने मिलकर सोमदेव की लिखी किताब बेताल पच्चीसी की 25 कहानियों पर ही विक्रम और बेताल शो बनाने की सोची थी. इस दौरान उनका उद्देश्य बच्चों और परिवार के लोगों के लिए एक शो बनाने का था, लेकिन टीवी पर उन्हें टाइम स्लॉट बहुत लेट का मिला. हालांकि तमाम दिक्कतों के बावजूद शो चला और कामयाब रहा. ये एक ऐसा वक्त था. जिस समय इलेक्ट्रॉनिक ऐरा में टीवी पर स्पेशल इफेक्ट्स नजर आए थे.

यही वजह थी कि, इसके बाद रामानंद सागर मुकुट और मूंछ वाले शो बनाने को लेकर कंफर्म हो चुके थे. ‘फिर विक्रम और बेताल’ की स्टार कास्ट को ही रामानंद सागर ने ‘रामायण’ के लिए भी फाइनल कर दिया. जहां राजा अरुण गोविल को ‘रामायण’ में “राम” की भूमिका दी गई और कई एपिसोड्स में रानी का किरदार निभा चुकी दीपिका चिखालिया “सीता” बनी और दारा सिंह को हनुमान और राजकुमार सुनील लाहरी को ‘लक्ष्मण’ का किरदार मिला.
अंडरवर्ल्ड माफियाओं से परेशान थे, रामानंद सागर
रामानंद सागर की बायोग्राफी कहती है कि, रामानंद सागर दुबई में बैठे माफियाओं की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती दखलअंदाजी से काफी परेशान थे. क्योंकि दिनों दिन इनकी दखलअंदाजी इंडस्ट्री में बढ़ती जा रही थी. क्योंकि इसी समय फिरोज़ खान की फिल्म ‘कुर्बानी’ की ओवरसीज राइट्स का निपटारा भी उन्हीं माफियाओं ने किया था. यही वजह थी कि, प्रेम कुमार कहते हैं कि, पिता जी के अलावा ऐसे तमाम लोग थे. जिन्हें फिल्मी दुनिया का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा था. क्योंकि दुबई में बैठे माफिया बिजनेस को खुद कंट्रोल कर रहे थे.
सरकार में भी रामायण को लेकर, चलती रही खींचतान, पंसद नहीं आया था कॉन्सेप्ट
इतना सब कुछ होने के अलावा दूसरी तरफ, केंद्र में मौजूद कांग्रेस सरकार को भी ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ को टीवी पर दिखाने में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. वहीं दूसरी तरफ डीडी नेशनल के अधिकारियों का कहना था कि, ये सीरियल हमारे आधिकारिक सांस्कृतिक महाकाव्य पर आधारित है. यही वजह थी कि, रामायण का टेलीकास्ट शुरू हुआ. हालांकि उसके बावजदू भी काफी समस्याऐं इसको लेकर आई. प्रेम बताते हैं कि, जिस समय सब कुछ ठीक चल रहा था, उस समय दिल्ली में मौजूद सत्ताधारियों के गलियारों में अलग तूफान मचा हुआ था. क्योंकि ‘रामायण’ और राम मंदिर दोनों कुछ ऐसे थे कि सत्ता में मौजदू कांग्रेस और उस समय के सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीएन गाडगिल को लगता था कि, ये हिंदू पौराणिक धारावाहिक हिंदू शक्ति को जन्म देगा, जिसके चलते भाजपा का वोट बैंक कहीं न कहीं बढ़ सकता है. साथ ही उन्हें लगता था कि, ‘रामायण’ हिंदूओं में गर्व की भावना जगा देगा और भाजपा इसको भुनाएगा, जिससे उसकी सत्ता में आने की संभावनाएं काफी बढ़ जाएगीं. जबकि उसी समय देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने खुद डीडी नेशनल के अधिकारियों को कहा था कि, ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ये सभी भारतीय महाकाव्य हैं. जिनमें हमारी संस्कृति और विरासत सम्मलित है, जिन्हें महिमामंडित करके दिखाना चाहिए.
मंडी हाउस के चक्करों में घिस गई थी चप्पलें
जहां डीडी हैडक्वार्टर और ब्यूरोक्रेसी की खींचतान चल रही थी. वहीं प्रेम सागर लिखते हैं कि- पिता जी उन दिनों दिल्ली के चक्कर लगाया करते थे, घंटों घंटो वो डीडी के दफ्तर के बाहर और अधिकारियों से लेकर उनके ऑफिस के बाहर तक खड़े रहते थे. इस बीच कई दिनों तो वो दिल्ली के अशोक होटल में इसलिए रूका करते थे. क्योंकि उन्हें लगता था कि उनके पास कोई कॉल आएगा और उन्हें फिर अधिकारी का अपॉइन्टमेंट मिल जाएगा. हालांकि कभी ऐसा नहीं हुआ. जिससे परेशान पिता जी एक दिन किसी ब्यूरोक्रेट के यहां सुबह-सुबह पहुंच गए. उस समय अधिकारी और उनकी पत्नी दोनों एक साथ उनके गार्डन में टहल रहे थे. हालांकि इसके बाद भी उन्होंने कहा कि, अभी उनके पास वक्त नहीं है. यही वजह थी कि, ‘रामायण’ के चार पायलट एपिसोड्स एक ही एपिसोड्स में कर दिए गए. इस बीच मंडी हाऊस के एक चपरासी ने पिता जी के पास आकर उन्हें बताया कि, डीडी के क्लर्क उनके बारे में कह रहे हैं कि, “अभी उनको यही नहीं पता कि डायलॉग्स कैसे लिखे जाते हैं, सीरियल में भाषा को बेहतर होना चाहिए.”
पिता जी के लिए ये काफी शर्मिंदगी से भरा हुआ था. लेकिन फिर नवंबर 1986 में जब सूचना एवं प्रसारण मंत्री अजीक कुमार पंजा ने कार्यभार संभाला तो फिर से चीजें बेहतर होने लगी.

रामानंद सागर के लिए हिमालय से आया संदेश
धीरे धीरे ये सीरियल लोगों के बीच इतना फेमस हुआ कि, उन दिनों नटराज स्टूडियों में साधुओं का भी आना-जान शुरू हो चुका था। वो सभी आते थोड़ी देर रुकते देखते बातें करते, चले जाते। लेकिन एक रोज एक और साधु आए, जोकि हिमालय से आए थे और उन्होंने रामानंद सागर को पूरी तरह कॉन्फिडेंट कर दिया.
इस दौरान कम उम्र का दिखाने वाला एक साधु नटराज स्टूडियो पहुंचा था. जोकि रामानंद सागर से ही मिलने के लिए वहां पहुंचा था. जब पिता जी आए तो उन्होंने पूछा कि, वो साधु की क्या मदद कर सकते हैं. लेकिन फिर साधु ने कहा कि, मैं यहां आपसे मिलने नहीं आया. मैं हिमालय में बसे अपने गुरूदेव जी का संदेश लेकर आया हूं. इस समय तक उनकी आवाज़ में एक अलग ही टोन थी. जैसे वो पिता जी को कोई आदेश दे रहे हो. उन्होंने कहा कि, कौन हो तुम? किस बात का तुमको घमंड है, तुम कहते हो मैं ये नहीं करता, मैं वो नहीं करता, तुम अपने आपको समझते क्या हो, तुम इस समय रामायण बना रहे हो, फिर भी चिंता कर रहे हो? तुम्हें मालूम है दिव्य लोग में एक अलग योजना विभाग है. भारत जल्द से जल्द दुनिया में लीडर बनने जा रहा है और तुम जैसे लोग इसके बारे में जागरुकता फैला रहे हो. काम कर रहे हो, काम करो और फिर वापस आ जाओ.