आज कोरोना का खौंफ के साथ साथ भुखमरी का खौंफ ही है कि, पूरे भारत में हजारों की संख्या में मजदूर वर्ग सड़कों पर है. क्योंकि उन्हें किसी भी तरह से अपने घर जाना है. शायद जिसकी वजह ये है कि, लॉकडाउन में सरकारों ने मजदूरों और गरीबों का उस हद का ख्याल नहीं रखा. जिस तरह रखना चाहिए था. तभी तो आज के समय में लोग मुंबई से बिहार, दिल्ली से यूपी न जानें कहाँ-कहाँ से अपने घर को पैदल जाने पर मजबूर हैं. और दूसरी तरफ एक तबका अभी भी इसे मजहबी रंग देने पर लगा है.

पलायन जारी है, इसी तरह एक घटना बीते रोज मध्य प्रदेश में घटी. जहाँ लोग पैदल अपने घरों को जा रहे थे. वहीं मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में अलग-अलग जगहं से लौट रहे लोग अपने मंजिलों की तरफ बढ़ रहे थे. इन्हीं लोगों में शिवपुरी-झांसी के रास्ते अमृत और उसका दोस्त याकूब भी जा रहे थे. 24 साल का अमृत उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले का रहने वाला है. लेकिन खबरों की मानें तो, जिस दौरान अमृत शिवपुरी-झांसी के रास्ते पर था. उसकी तबीयत बिगड़ने लगी. बुखार, चक्कर और मितली की वजह से जिस ट्रक में अमृत बैढ़ा था. ट्रक वाले ने कोरोना की आशंका के चलते उसे उतरवा दिया. लेकिन इंसानियत और दोस्ती दो चीजें ऐसी हैं. जिन्होंने मानवता जाति को अभी भी सर्वोपरि रखा है.
हुआ भी कुछ ऐसा है. क्योंकि जिस समय अमृत को ट्रक वाले ने कोरोना कहकर उतार दिया. उस समय उसका दोस्त याकूब मोहम्मद भी उसी ट्रक में था. याकूब मोहम्मद भी ट्रक से उतर गया. इस दौरान अमृत की याकूब ने हर संभव मदद कि, उसका सर गोद में रखकर उसको संभाल, पानी पिलाया, वहां से गुजरने वाली गाडियों को रोकने की कोशिश की. और आखिरकार कुछ लोगों की मदद के बाद याकूब मोहम्मद अमृत को लेकर अस्पताल पहुंचा.
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. कुछ समय पहले तक जो अमृत याकूब के साथ वो अस्पताल पहुंचने तक और इलाज शुरू होने तक में याकूब को छोड़कर जा चुका था.
अमृत और याकूब एक ही फैक्ट्री में करते थे काम
खबरों की मानें तो, याकूब और अमृत दोनों ही सूरत की एक कपड़ा फैक्ट्री में बुनकर काम करते थे. हालांकि लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद हो गई. कुछ दिन तक तो गुजारा चला, लेकिन लॉकडाउन के बढ़ने के चलते दोनों ने एक साथ वहां से अपने घर जाने का प्लान बनाया. और आखिरकार सूरत से एक ट्रक में चार-चार हजार रुपए किराया देकर उन्होंने नासिक, इंदौर के रास्ते अपने घर पहुंचने का खाका तैयार किया. लेकिन रास्ते में ही अमृत की तबीयत बिगड़ने लगी. ट्रक में ही अमृत को बुखार हुआ, उल्टी जैसा मन होने लगा. हालांकि अमृत को उल्टी नहीं हुई. ये सब देखकर ट्रक में सवार और सभी मजदूरों ने अमृत का विऱोध करना शुरू कर दिया. और आखिरकार ट्रक वाले ने भी अमृत को यूं ही रास्ते पर उतार दिया. जबकि याकूब अमृत की देखभाल के लिए ट्रक से उतर गया.

सोशल मीडिया पर वायरल अमृत और याकूब की फोटो
जिस अस्पताल में अमृत ने आखिरी सांस ली वहां के सिविल डॉक्टर पीके खरे की मानें तो, हमने कोरोना टेस्ट किया है. अभी रिपोर्ट का इंतजार है. याकूब का भी टेस्ट हुआ है. वहीं जिस समय ट्रकवाले ने अमृत और याकूब को ट्रक से उतारा. उस समय याकूब अमृत का सर अपनी गोद में रखकर बैठ गया. जिसकी तस्वीर किसी ने खींच ली. और सोशल मीडिया पर ड़ाल दी. जिसके बाद से इस तस्वीर पर लोगों के अलग अलग रिएक्शन आए. हालांकि भारत जैसे देश में आज मुसीबत के समय, अनेकों ऐसे लोगों हैं. जो अपने अपने समुदायों के बीच फूट ड़ालने की कोशिश कर रहे हैं. अनेकों ऐसे लोग हैं जो एक दूसरे को नीचा दिखाना चाहते हैं. लेकिन ये तस्वीर लोगों को ये बताने के लिए काफी है कि, जब भी दोस्ती और इंसानियत की बात होगी. तो, याकूब और अमृत की दोस्ती की कहानी उन्हीं लोगों में सबसे ऊपर होगी. जो दोस्ती और इंसानियत के लिए सबकुछ करते हैं. जो धर्म या मज़हब के बीच खिंची दिवारों में यकीन नहीं करते. वो यकीन करते हैं तो इंसानियत पर दोस्ती पर….