साहस इंसान की वो शक्ति है जिसके आगे विशाल पर्वत भी बौना साबित होता है। अगर इंसान में हिम्मत और आगे बढ़ने की ललक हो तो भाग्य की रेखाएं भी बदल जाती हैं। हम बात कर रहे हैं मेजर देवेन्द्र पाल सिंह की जिन्होंने अपनी हिम्मत और लगन से अपनी किस्मत को पलटने पर मजबूर कर दिया। 15 जुलाई 1999, भारत पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध, चारो तरफ गंभीरता का माहौल था कि अगले पल क्या होगा। 48 घंटों में एक भी गोली चलने की आवाज़ नहीं आई। शायद वह तूफ़ान के पहले की शांति थी। मेजर देवेन्द्र पाल सिंह और उनके साथी दुश्मन पोस्ट से सिर्फ 80 मीटर की दुरी पर थे कि अचानक एक विस्फोट हुआ।युद्ध के मैदान में खून से लथपथ मेजर सिंह को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था।
आपको लग रहा होगा की मेजर देवेन्द्र पाल सिंह की कहानी बहुत छोटी सी थी अब हम आपको अलविदा कह देगे। पर नही अभी कहानी खत्म नही हुई। मेजर देवेन्द्र पाल सिंह के हौसले ने मौत को मात दे दी
देवेन्द्र पाल सिंह को नजदी फौजी अस्पताल में जब लाया गया तो डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इसके बाद जब उन्हें नजदीकी मुर्दाघर ले जाया गया, तो एक डॉक्टर ने देखा की उनकी सांसे अभी भी चल रही हैं। जाहिर सी बात हैं मोर्टार बम्ब के इतने नजदीक फटने के बाद किसी भी सामान्य व्यक्ति का बचना नामुनकिन होता है, लेकिन देवेन्द्र पाल सिंह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे। वे मौत से लड़ने को तैयार थे। लहूलुहान देवेन्द्र पाल सिंह की अंतड़िया खुली हुई थी। डॉकेटरों के पास कुछ अंतड़िया काटने के अलावा कोई चारा नही था। उन्हें बचाने के लिए उनका एक पैर भी काटना पड़ा, लेकिन फिर भी किसी भी कीमत पर मेजर मरने को तैयार नही थे।
मेजर देवेन्द्र पाल सिंह मौत से भी लड़ने को तैयार थे। और आखिर मे मौत की लड़ाई मे उन्हे जीत ही हासिल हुई।

मेजर सिंह ने अपने परिवार को भी कभी खुद के लिए अफ़सोस नहीं जताने दिया। उन्होंने अपने माता-पिता को हमेशा भरोसा दिलाया कि वे बिलकुल ठीक हैं। कारगिल युद्ध के बाद मानो मेजर सिंह को एक नया जीवन मिला था। आज दुनियां मेजर सिंह को “इंडियन ब्लेड रनर” के नाम से जानती है और कोई यकीन नहीं कर सकता कि मेजर करीब 16 साल से मैराथन दौड़ में भाग ले रहे हैं। एक पैर ना होते हुए भी उन्होंने कभी यह नही सोचा की वो भाग नही सकते
भारत के पहले ब्लेड रनर यानी मेजर देवेन्द्र पाल सिंह अपनी विकलांगता को अपनी कमजोरी नहीं माना और नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया। मेजर के अनुसार वो कारगिल लड़ाई के बाद ये उनका दूसरा जीवन है, जब डॉक्टर उनका इलाज कर रहे थे उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि वह एक टांग से दोबारा चल भी पाएंगे। लेकिन मेजर ने ठान लिया था कि बिना मंजिल तक पहुंचे रुकना नहीं है। पूरे 1 साल तक अस्पताल में रहने के बाद मेजर का ब्लेड रनर बनना कोई आसान काम नहीं था।

उसके लिए उनको बहुत संघर्ष करना पड़ा, बहुत दर्द सहना पड़ा। लेकिन उनको हारना मंजूर नहीं था। शुरुआत में उनको चलने में बहुत दिक्कत होती थी, जब दौड़ना शुरू किया तो बार बार गिरते लेकिन फिर नए जोश के साथ दौड़ लगाते। मेजर सिंह को फिर से दौड़ने के लिए पुरे 10 साल लगे। आसान नहीं था उनके लिए ब्लेड रनर की पहचान हासिल करना, पर उन्होंने किसी भी चुनौती को अपनी मंजिल के बीच नहीं आने दिया। साल 2009 में उन्होंने दौड़ना शुरू किया। वे अब तक 25 मैराथन दौड़ चुके हैं, इसी के साथ ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स’ में भी उनका नाम दर्ज है। साल 2016 से मेजर सिंह ने ‘स्वच्छेबिलिटी रन’ की शुरुआत की है। जिसके तहत वे भारत के छोटे-छोटे शहरों में जाकर लोगों को स्वच्छता के साथ-साथ दिव्यांगों को भी समान रूप से समाज में उनका सम्मान देने के लिए जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने हरियाणा और पंजाब से इसकी शुरुआत की और इसका अगला चरण वे जल्द ही राजस्थान में करने वाले हैं। इस पहल में उनका साथ एक निजी कंपनी जे.के. सीमेंट दे रही है…