हमारा देश भारत, त्योहारों के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। यहां हर दिन, हर महीने कोई न कोई त्योहार किसी न किसी कोने में मनाया जाता है। इन त्योहारों के अपने एतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व हैं। भारत में कुछ त्योहार तो मुख्य हैं…जैसे होली, दीवाली, रथ यात्रा आदि, लेकिन देश के अलग अलग हिस्सों में कई ऐसे त्यौहार मनाए जाते हैं जिसके बारे में देश का हर आदमी नहीं जानता। इसका कारण है कि ये त्योहार एक क्षेत्र या एक समुदाय विशेष से जुड़े होते हैं। लेकिन इन त्योहारों का अपना महत्व है क्योंकि ये भी भारत की संस्कृति की समृद्धि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। ऐसा ही एक त्योहार है बेदीनखलम, जो मुख्य रूप से मेघालय की जैंतिया हिल्स में मनाया जाता है।
मेघालय के गारो और खासी ट्राइब्स के आलावा यहां की तीसरी बड़ी ट्राइब जयंतिया है। ये लोग मुख्य रूप से या तो हिन्दू हैं या यहां की पुरानी धर्म परंपरा को मानने वाले, वहीं कुछ क्रिश्चन भी हैं। बेदीनखलम त्यौहार नॉन क्रिश्चन लोग मनाते हैं। आमतौर पर यह त्योहार जुलाई महीने में मनाया जाता है और इस साल यह 8 जुलाई को सेलिब्रेट किया जाएगा। यह एक तरह का फसल से जुड़ा त्यौहार है जिसके दौरान लोग अच्छी फसल होने की खुशी मनाते हैं और नय फसल के बोने को लेकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। वहीं यह त्योहार बुरी शक्तियों को दूर करने के लिए भी मनाया जाता है।
बेदीनखलम त्योहार के बारे में

बेदीनखलम दो शब्दों के मेल से बना शब्द है। बेदीन का मतलब होता है खींच कर ले जाना और खलम का मतलब होता है लकड़ी या प्लेग। यानि प्लेग को खींच कर ले जाना। ये मुख्य रूप से उस समय से जुड़ा हुआ त्योहार है जो इस इलाके में कोलेरा का प्रकोप बढ़ा था। कहा जाता है कि तब चार बहनों ने मिलकर एक बड़े से पेड़ के तने को खींच कर जंगल में ले गईं थी और प्लेग के दानव को वहां गाड़ दिया था। इन चार बहनों का नाम था का दोह, का बोन, का वेट और का तेन। इन चारों को इस ट्राइबल ग्रुप के पूर्वज माताओं के रूप में जाना जाता है।
जयंतिया लोग एक परम देवता की पूजा करते हैं, जिसे ‘यू ब्ला वा बोहो वा थू ‘ कहा जाता है, जो सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान हैं। यू ब्लाई को ब्रह्मांड में सब कुछ का निर्माता माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वो स्वर्ग में रहते हैं लेकिन कई लोग बहुत सी घटनाओं के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उनके भगवान उनके आस पास के प्राकृतिक परिवेश में ही रहते हैं। क्योंकि यू ब्लाई सर्वव्यापी है, इसलिए उनकी पूजा के लिए किसी मूर्ति, चित्र या मंदिर की आवश्यकता नहीं है। इसके बजाय, जयंतिया लोग वन और प्रकृति की पूजा ही करते हैं। इसके आलावा जयंतिया लोगों के कई अन्य देवी देवता भी हैं।
ये त्योहार जयंतिया लोगों के मूल धर्म नाइंट्रे से भी जुड़ा है जिसका मतलब होता है खुद का धर्म। यह त्योहार जयंतिया युवाओं के लिए खुद के धर्म के बारे में जाने के त्योहार है। ऐसा माना जाता है कि ये धर्म किसी ने बनाया नहीं है बल्कि खुद भगवान ने दिया है। इसके 4 बेसिक प्रिंसिपल हैं। पहला है टिप ब्रू-टिप ब्लई यानि इंसानों को जानो भगवान को जानो, दूसरा है टिप कुर-टिप खा जिसका मतलब है अपने मायके और पैतृक रिश्तेदारों को जानें या अपने रिश्तेदारों को जानें, तीसरा है कमाई इए का होक Kamai इसका मतलब है धार्मिकता अर्जित करो और चौथा है इम हा का होक का सोट यानि हमेशा सही से जियो और हमेशा सच बोलो।
कैसे मनाया जाता है बेदीनखलम त्योहार

इस त्योहार से एक सप्ताह पहले आकाशीय बिजली समर्पित कर एक सूअर की बलि दी जाती है, इसके बाद पुजारी जिसे वासन कहते हैं वो जंगल की ओर जाती हुई सड़क पर इशारा करते हुए घंटी बजाता है।
जंगल में पेड़ की लंबे लंबे तनी को काट कर गिराया जाता है और उसे अच्छे से पॉलिश करके छोड़ दिया जाता है, फिर कुछ दिन बाद शहर में लाया जाता है। त्योहार के चौथे दिन पुजारी के संग युवा गांव के हर घर में जाता हैं और घर की छतों पर चढ़ कर बांस से छत पर पीटते हैं, ऐसा माना जाता है कि इससे बुरी शक्तियां दूर हो जाती हैं।
इसके आलावा इस दिन हर इलाके में एक सजावटी टॉवर जैसी संरचना तैयार की जाती है जिसे ‘रथ’ कहा जाता है। आज के दौर में ये युवाओं के लिए प्रतियोगिता से कम नहीं है। उनमें होड़ रहती है कि कौन कितना लंबा टॉवर बनाता है। इन टॉवर का प्रतीकात्मक विसर्जन होता है जो जुलूस वाले जगह पर बने एक में एक मिट्टी-कुंड (ऐतबार) में होता है।
इस दिन जहां पुरुष बली देने और अन्य बाहरी अनुष्ठान करते हैं, तो वहीं महिलाएं अपने कबीले पूर्वजों के लिए प्रसाद तैयार करती हैं और खुद को और माँ प्रकृति को बुरी आत्माओं, प्लेग और बीमारी से बचाने के लिए यू ब्लाई (सर्वोच्च देवता) से प्रार्थना करती हैं। इस दिन परिवार इकट्ठा होता है ऐसे में अपने धर्म के बारे में बड़े युवा पीढ़ी को बताते हैं।

बेदीनखलम प्राकृतिक से जुड़ा त्योहार है, जिसका उद्देश्य है इंसान और प्रकृति के आपसी मेल का। यह त्योहार यह मानने का है कि प्रकृति से ही हम रक्षित और पोषित होते हैं। बेदीनखलम का यह संदेश आज के दौर में और महत्तवपूर्ण हो जाता है जहां इंसान वन्य जीवन और प्राकृतिक संसाधनों का शोषण करना अपना अधिकार समझता है और यहीं चीज उसे पर्यावरण विनाश कि ओर ले जा रहा है। बेदीनखलम त्योहार से अगर हम कुछ सीख पाते हैं तो हम प्रकृति के साथ ही खुद को भी सुरक्षित रख पाएंगे।