आज दुनिया में हर इंसान अपनी जिंदगी के मायने अलग-अलग निकाल कर जीना चाहता है. कोई अपनी जिंदगी में शोहरत पाना चाहता है तो, कोई पैसे कमाना चाहता है. किसी को रुतबा चाहिए तो कोई सब कुछ इकट्ठा करने में अपनी जिंदगी गुजार देता है, और कमोबेश यहां हर इंसान अपने लिए जीता है. अपनी उसी जिंदगी में मसगूल रहता है. लेकिन इन सबके बीच एक शख्सियत हैं जो सिर्फ दूसरों के लिए जीती हैं, वो परायों को अपना बनाती हैं, बुढ़ापे का सहारा बन लाठी बन जाती हैं, जिंदगी की आस छोड़ चुके न जानें कितने चेहरों पर मुस्कान लाती हैं और इस शख्सियत का नाम है माधुरी मिश्रा. जोकि मध्य प्रदेश के भोपाल के कोलार इलाके की सर्वधर्म कॉलोनी में अपने ही घर में वृद्धाश्रम चलाती हैं. वो माधुरी मिश्रा जिनके पिता कभी भोपाल शहर के एसपी थे. दुनिया का हर सुख अपने कदमों में पाने वाली माधुरी मिश्रा आज सभी ऐसो आराम छोड़कर पिछले 30 सालों से अपनी जिंदगी उनके नाम पर जी रही हैं. जिन्हें सहारे की जरूरत है.
समाजसेवा के लिए छोड़ा दिया अपना ससुराल
महज 17 साल की उम्र में ही माधुरी ने अपने आप को पूरी तरह से समाज की भलाई के काम में समर्पित कर लिया था. जिसके बाद 12 साल तक माधुरी भोपाल की झुग्गियों में रहकर गरीबों के उत्थान, गरीब बच्चों को पढ़ाने-लिखाने और विधवा महिलाओं का पुनर्विवाह का काम करती रही. इस दौरान माधुरी की शादी टीकमगढ़ के संपन्न राजनीतिक परिवार में कर दी गई. हालांकि ससुरालवालों को माधुरी की ये समाज सेवा बिल्कुल भी पसंद नहीं थी. क्योंकि वो लोग चाहते थे कि उनकी बहु घर में मौजूद तमाम सुख-सुविधाओं का आनंद ले. लेकिन माधुरी ने तो अपनी जीने का नजरिया पहले से ही तय कर लिया था. लिहाजा अपनों के विरोध के बावजूद भी माधुरी ने अपना काम करना बंद नहीं किया.
शादी के बाद जब माधुरी अपने पति के साथ टीकमगढ़ से भोपाल आई तो उनके पति ने भी इन परिस्थियों में माधुरी का साथ दिया और माधुरी के साथ समाजसेवा के सफर में जुड़ गए. जिसके बाद माधुरी लगभग 12 साल तक भोपाल में मौजूद झुग्गीवासियों के लिए काम करती रही. यहां तक की माधुरी खुद कई महीनों तक इंदिरा नगर की झुग्गी में रही. जहां उन्होंने अपनी बेटीयों को भी जन्म दिया.
इस दौरान कई बार आर्थिक स्थिति माधुरी के आड़े आती रही, लेकिन माधुरी के ये हौसले और इरादें ही थे की उनको, इनके आगे झुकना पड़ा. यहां तक की माधुरी झुग्गियों में रहने वाले बच्चों की भूख नहीं देख पाती थी, यही वजह रही की वो अपने बच्चियों को भी झुग्गी में मौजूद बकरियों का दूध पिलाती थी. ताकि पैसे बचा सकें और लोगों को खाना खिला सके.
जिंदगी की तमाम चुनौतियों से लड़ती माधुरी 25 साल तक भोपाल के आनंद धाम में उन लोगों का सहारा बनी. जिनको उनके ही घरवालों ने निकाल कर बाहर कर दिया था. पाई-पाई जोड़कर 2012 में माधुरी ने अपना घर बनाया और इस घर में वृद्धाश्रम की स्थापना कर डाली. जहां अपनों के सताए लोगों को माधुरी आश्रय देती हैं.
दोनों बेटियां भी, मां की राह पर
यही वजह है कि, इस समय माधुरी की ही राह पर उनकी बेटियां भी काम करती हैं, माधुरी की दोनों बेटियां आज घर में बने वृद्धाश्रम के बुजुर्गों का खूब ख्याल रखती हैं. माधुरी की बड़ी पुणे में रहती है जबकि दूसरी बेटी भोपाल में ही मां के साथ रहती है. आज ये घर कहने को तो वृद्धाश्रम है. लेकिन इस घर के अंदर आज के समय में सारी खुशियां समाई हुई हैं. जहां एक तरफ बुढ़ापे के समय में लोग अपनों का साथ छोड़ देते हैं. वहीं ये लोग इस आश्रम में आकर जिंदगी के आखिरी पलों में सभी खुशियां जीते हैं. चाहे बात दीवाली की हो या होली की या फिर ईद की सभी त्यौहारों का रंग इस वृद्धाश्रम में देखने को मिलता है.
उम्र के इस पड़ाव में जो प्यार और सम्मान खून के रिश्ते नहीं दे पाए, उनसे कहीं गुना ज्यादा इज्जत और प्यार दुलार इन बुजुर्गों को इस घर से मिल रहा है और माधुरी भी सारे फर्ज हंसते हंसते निभा रही हैं. आज के समय में हर इंसान की खुशी का ख्याल रखने वाली माधरी हर बुजुर्ग के लिए अलग-अलग किरदार निभाती हैं. इस वृद्धाश्रम में माधुरी ने अब तक हर वो फर्ज निभाया है, जो फर्ज वृद्धों के बच्चों को निभाना था. आज उनके घर में लगभग 25 बुजुर्ग रह रहे हैं.
इतने वर्षों से दूसरों के लिए जी रही माधुरी को अब तक कई अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है. मदर टेरेसा सम्मान से लेकर फिल्म स्टार आमिर खान के शो सत्यमेव जयते में भी माधुरी जा चुकी हैं. जाहिर है, इस तरह के सम्मान माधुरी के प्रेम और समर्पण के आगे फीके हैं. मगर असल मायने में माधुरी हमारे समाज की नायिका हैं. जिन्होंने निस्वार्थ भाव से अपनी पूरी जिंदगी उन बेसहारा लोगों की उम्र में निकाल दी. आज माधुरी उन लोगों के लिए नए जीवन जैसी हैं जिन्हें अपनों ने ठुकरा दिया है.