यूं तो भारत में मां दुर्गा के कई अनोखें मंदिर हैं। लेकिन कुछ ऐसे मंदिर हैं जिनकी चर्चा वहां होने वाले चमत्कारों और अविश्वसनीय कारणों से होती है। आज हम भारत में स्थित कुछ ऐसे ही अद्भुत मंदिरों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिनके बारे में जानकर आपका मन भी करेगा कि, एक बार इन मंदिरों में जाकर माता के दर्शन करें और इन मंदिरों के अनोखेपन को महसूस करें।
मां दुर्गा- मां वैष्णो का पावन दरबार
मां वैष्णो देवी के धाम पर उनके दर्शन करने हर कोई जाना चाहता है। ऊंचे पहाड़ों वाली देवी मां के दरबार में हर साल भक्तों का आना लगा रहता है। मां का धाम जम्मू में स्थित त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार यहां मां दुर्गा त्रिदेवियों यानी कि देवी लक्ष्मी, सरस्वती और काली तीनों के संग विराजमान हैं। कलियुग में माता वैष्णो के दर्शन को बड़ा पुण्यदायी माना गया है। भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में देवी त्रिकूटा जिन्हें माता वैष्णो कहते हैं उन्हें इस स्थान पर रहकर कलियुग के अंत तक भक्तों के कष्ट दूर करने का आदेश दिया था। नवरात्र में मां के दरबार में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, ऐसे में इस पावन पर्व में माता वैष्णों के दर्शन होना बड़े सौभाग्य की बात मानी जाती है।
मां दुर्गा- मां पीतांबरा देवी का चमत्कारी धाम
भारत वर्ष में मां शक्ति के कई मंदिर हैं जहां चमत्कार होने की बातें सामने आती हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां पीतांबरा सिद्धपीठ की बात करें तो आपको मां के मंदिर का यह चमत्कार अपनी आंखों से देखने को मिलता है। इस शक्तिपीठ की स्थापना 1935 में स्वामीजी ने की थी। यह मंदिर अनोखा इस लिए भी है क्योंकि माता के अन्य मंदिरों की तरह यहां माता के दर्शन के लिए कोई दरबार नहीं सजता है। सिर्फ एक छोटी सी खिड़की है, जिससे मां के दर्शन का सौभाग्यर भक्तों को मिलता है। बात चमत्कार की करें तो पीतांबरा देवी माता दिन के तीन पहरों में स्वमरूप धारण करती हैं। मां के बदलते रूप के पीछे का राज क्या है वह आज भी राज ही बना हुआ है। नवरात्री में इस मंदिर में एक मान्यता है कि, पीले वस्त्र धारण कर, मां को पीले वस्त्र और पीला भोग अर्पण करने से सभी मुरादें पूरी होती है।
मां दुर्गा-मां त्रिपुरा सुंदरी का रहस्यमयी मंदिर
यह मंदिर करीब 400 साल पहले बिहार के बक्सर जिले में बना था। इस मंदिर को तांत्रिकों का विद्यालय भी माना जाता है, क्योंकि इसका निर्माण तांत्रिक भवानी मिश्र ने करवाया था। मंदिर में आने वाले लोगों को इसके प्रवेश द्वार पर ही अद्भुत शक्तियों का आभास होने लगता हैं। साथ ही मध्य रात्रि में मंदिर परिसर से आवाजें भी आती हुई सुनाई देती हैं। मंदिर के पुजारियों की मानें तो यह आवाजें मां की प्रतिमाओं के आपस में बात करने की हैं। हालांकि इस मंदिर से आने वाली आवाजों पर पुरातत्वों विज्ञानियों ने कई बार शोध भी किया लेकिन उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। जिसके कारण बाद में शोध को बंद कर दिया गया। वासंतिक हो या शारदीय दोनों ही नवरात्रों में इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
करणी माता मंदिर
राजस्थान के बीकानेर से तकरीबन 30 किलोमीटर आगे जाने पर करणी माता का मंदिर आता है। यह मंदिर दुनिया भर में एक बात के लिए फेमस है कि, यहां के मंदिर में हजारों की संख्या में चूहे रहते हैं। इसे चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां भक्तों को चूहों का जूठा किया हुआ प्रसाद खाने को दिया जाता है। मां करणी को मां दुर्गा का अवतार माना गया है। कहानी के अनुसार, 1387 में एक चारण परिवार में करणी माता का जन्म हुआ। इनका बचपन का नाम रिघुबाई था। विवाह के बाद जब उनका मन संसारिक जीवन से ऊब गया तो उन्होंने अपना पूरा जीवन देवी की पूजा और लोगों की सेवा में अर्पण कर दिया गया। 151 वर्ष तक जीवित रहने के बाद वह ज्योर्तिलीन हो गईं। बाद में भक्तों ने उनकी मूर्ति स्थापित कर पूजा करनी शुरू कर दी। यहां तकरीबन 20 हजार चूहे हैं। इन चूहों को लोग करणी माता की संतान मानते हैं।
मैहर शक्तिपीठ
मध्य प्रदेश के सतना जिले के मैहर स्थान पर स्थित हरी भरी पहाड़ी के उपर, लगभग 400 फीट की उचाई पर स्थित है माता शारदे का अद्धभुत चम्तकारी मंदिर। यह मंदिर शक्तिपीठ है। जब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े किए थे तब उनके गले का हार इसी जगह पर आकर गिरा था। इस मंदिर में चमत्कार होने की बात कही जाती है। ऐसा कहा जाता है कि, मंदिर के खुलने से पहले ही माता की पूजा और आरती कोई अनजानी शक्ति कर चुकी होती है। लोग बताते हैं कि, शाम में मंदिर की साफ सफाई के बाद इसे बंद कर दिया जाता है, लेकिन सुबह इसकी अवस्था कुछ और ही मिलती है। यह मंदिर एक और वजह से फेमस है। यहां दो वीर आल्हा और उदल भी माता के दर्शन करते थे। इन दोनों ने आखिरी लड़ाई 1182 में हिन्दुस्तान के आखिरी हिन्दु राजा पृथ्वी राज संग लड़ी थी जिसमें पृथ्वीराज को हार का सामना करना पड़ा था।