भारतीय परंपरा में महिलाओं का स्थान पुरूषों से ऊपर माना गया है। हर एक शास्त्र में महिलाओं के सम्मान में बहुत सी बाते कही गईं है। जैसे कि, जहां नारी का सम्मान नहीं वहां भगवान का वास नहीं इत्यादि। लेकिन जब हम समाज के अंदर देखते हैं तो, पितृसत्ता का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है और यही कारण है कि, महिलाओं को समाज में बराबरी के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है और वो आज भी इस लड़ाई को लड़ रही हैं। फिर चाहे कोई भी क्षेत्र हो आज महिलाएं पुरूषों के बराबर काम कर रहीं हैं। महिला सशक्तिकरण की इसी राह में एक महिला का नाम भी आगे आता है जिन्होंने उस क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई है जिसमें शायद ही किसी महिला के होने की कल्पना कोई कर भी सकता है। इनका नाम है नंदनी भौमिक और वे पेशे से एक पंडित हैं।
जी आपने सही सुना पंडित! क्योंकि आपको वो बहुत सी शादियां याद आने लगी न, जो आपने कभी अटेंड की होंगी या शायद अपनी शादी में ही आए पंडित जी का चेहरा एक पल के लिए याद आ गया होगा। लेकिन इनमें से शायद ही कोई पंडित महिला होगी। आमतौर पर पंडित जी पुरूष होते हैं और उनके प्रोफेशन के हिसाब से उनकी पत्नी लोगों के लिए स्वत: पंडिताइन बन ही जाती हैं। लेकिन पंडिताइन को आपने कभी भी बेदी पर बैठकर पूजा कराते या शादी करवाते नहीं देखा होगा। हां वो महिलाओं की मदद जरूर करती हैं किसी भी धार्मिक काम में। लेकिन पंडित के प्रोफेशन में महिलाओं का होना आज भी कोई कल्पना ही लगती है।

नंदनी भौमिक क्यों है चर्चा में?
ऐसी बात नहीं है कि, नंदनी भौमिक ही पहली महिला पंडित हैं। बिहार के मधुबनी में एक अहिल्या मंदिर है जहां पूजा महिला पंडित ही कराती है। वहीं और भी कई स्थानों पर आपको महिला पंडित मिल जाएंगी। लेकिन आमतौर पर शादियों में पूजा कराते हुए आपको महिला पंडित नहीं दिखेंगे। बात अगर नंदनी भौमिक की करें तो उनकी पंडिताई में एक खास बात देखने को मिलती है। यह बात समाज में आए परिवर्तन के साथ ही रीति-रिवाजों में भी परिवर्तन लाने की है। शादी कराने के पूरे प्रोसेस में जो सबसे महत्वपूर्ण स्टेप होता है वो होता है ‘कन्यादान’का। कन्यादान को हिन्दू शादियों में बहुत जरूरी माना जाता है। शास्त्रों में कन्यादान की बात कही गई है और यह परंपरा आज तक चली आ रही है। लेकिन नंदनी भौमिक ने इस परंपरा को चुनौती दी है। वो अपने द्वारा कराई गई शादियों में कन्यादान नहीं करातीं।
नंदिनी पेशे से संस्कृत प्रोफेसर और ड्रामा आर्टिस्ट भी हैं। वह अपने इस काम से समाज की पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती दे रही हैं। वे ऐसा करने वाली बंगाल की पहली महिला पुजारी हैं। अपने इस काम को लेकर नंदनी बताती हैं कि ‘मैं उस सोच से इत्तेफाक नहीं रखती जहां बेटी को धन समझा जाता है और शादी के वक्त उसे दान कर दिया जाता है। स्त्रियां भी पुरुषों की तरह ही इंसान हैं, इसलिए उन्हें वस्तु की तरह नहीं समझा जाना चाहिए।’ नंदिनी के द्वारा करवाई जानेवाली शादियों में सिर्फ यह ही एक खास बात नहीं है। इनमें कई और भी चीजें हैं जो आपको उनके बारे में और जानकारी लेने के लिए मजबूर कर देंगी। जिस तरह से शादी वे संपन्न करवाती हैं वो बंगाल में होने वाली बाकी शादियों से बिल्कुल अलग है। वे इस दौरान संस्कृत के मंत्रों और श्लोकों को बंगाली और अंग्रेजी में अनुवाद करके पढती हैं ताकी दुल्हन और दूल्हा उन श्लोकों को समझ सकें। वहीं इन शादियों के समय बैकग्राउंड में रबींद्र संगीत बजता रहता है। जो उनकी टीम के लोग ही बजाते हैं।
युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हुईं हैं नंदिनी भौमिक
आमतौर पर शादियों में बाराती के रूप में गए लोग बस खाना पीना खाकर वापस लौट आते हैं। बस लड़का और उसके परिवार के कुछ लोग ही बैठ कर शादी के कार्यक्रम को देखते हैं। पहले ऐसा नहीं होता था। पहले तो बारात जाकर लड़की के घर दो से तीन दिन रूकती थी। लेकिन अब के जमाने में टाइम किसके पास है। लेकिन फिर भी शादी का पूरा प्रोसेस होने में बहुत टाइम लगाता है। लेकिन अगर आपने शादियों के किस्से सुने होंगे तो आपको पता होगा कि, कई बार जब बारात देर से पहुंचती है तो शादियां जल्दी—जल्दी संपन्न करवा दी जाती है। इसमें पंडितों को पीछे से कुछ पैसे भी मिल जाते हैं। मतलब करप्शन टाइप काम इसे कह सकते हैं। पंडित जी भी दक्षिणा लेकर सिर्फ सिंदूर दान पर शादी संपन्न करा देते हैं। जिसमें टाइम भी बचता है। लेकिन यह किसी भी तरह से सही नही है न ही नैतिक तौर पर न ही परंपराओं के तौर पर।
लेकिन बात अगर नंदिनी के द्वारा संपन्न करवाई गई शादियों की करें तो ये शादियां 1 घंटे में संपन्न हो जाती हैं। नंदिनी खुले तौर पर इस बात को कहती हैं कि ‘मैं कन्यादान नहीं करवाती जिससे काफी समय बच जाता है। इसके अलावा मुझे यह परंपरा काफी पिछड़ी सोच की भी लगती है।’ लेकिन कहते हैं न जब तक आप कुछ छुपा के कर रहे हैं तो सब ठीक और डंके की चोट पर कर रहे हैं तो खराब। बंगाल में कुछ कट्टरपंथी सोच वाले लोगों से नंदनी को भी एक डर तो है। लेकिन इसके बाद भी वे अपने काम को कर रही हैं। एक साइट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि ‘हां मेरे पति को कई बार खतरे का अहसास हुआ है लेकिन मुझे अभी तक ऐसा कुछ लगा नहीं। मैं सभी पुजारियों का सम्मान करती हूं।

नंदिनी पिछले 10 सालों से पंडिताई के इस काम को कर रही हैं। वह अब तक 40 से भी ज्यादा शादियां करवा चुकी हैं। यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हैं तो समय कम मिलता है। वहीं वे कोलकाता के 10 थियेटर ग्रुप से भी जुड़ी हैं। वे बताती हैं कि उन्होंने कोलकाता और इसके आसपास के इलाकों में कई अंतरजातिय, अंतरधार्मिक शादियां भी करवाई हैं। नंदिनी अपने शादी कराने के तरीके से युवाओं में काफी फेमस हैं।
गुरु गौरी धर्मपाल को अपना आदर्श मानने वाली नंदनी अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अनाथालयों को दान में भी देतीं हैं। असल में नंदिनी ने न सिर्फ समय के साथ शादियों की मूल परंपराओं को बनाएं हुए उनमें कुछ सही परिवर्तन किए हैं बल्कि वे अपने इस काम के जरिए इस प्रोफेशन के साथ भी न्याय कर रही हैं जिसका नाम कई लालची, गलत मंत्र पढ़ने वाले और गैर-जिम्मेदार पुजारियों और पंडितों ने बदनाम किया है।