गणतंत्र दिवस, यानि 26 जनवरी.. एक बार फिर आ गया है और हम भारतवासियों से कह सकते हैं कि, आज हमारे देश को गणतांत्रिक हुए 72 साल हो गए हैं। हमारे देश का संविधान हमारा वो रक्षा कवच है जो दुनिया के लोगों को यह बताता है कि, हम स्वतंत्र भी हैं और गणतंत्र भी यानि हमारे देश में हम आजाद भी हैं और अपने बनाए कानूनों के आधार पर ही अपनी जिंदगी जीते हैं। बेशक इसका पूरा श्रेय हमारे पूर्वज लोग, जिन्होंने देश की आजादी और इसके बाद देश को एक आकार देने का काम किया, उनको जाता है। उन लोगों ने बड़ी मेहनत से देश के संचवधान को रचा। पहले तो इसका मसौदा तैयार किया फिर इसे मूर्त रूप दिया।
हमारे देश में जब संविधान बनने का काम तो साल 1946 में शुरू हो गया था… लेकिन असली काम 1947 में शुरू हुआ। 29 अगस्त को भारतीय संविधान के निर्माण के लिए प्रारूप समिति बनी जिसके मुखिया डॉ. भीमराव अंबेडकर बने। उनको दुनिया भर के तमाम संविधानों को बारीकी से परखने के और इसी के आधार पर भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जिसे 26 नवंबर 1949 को इसे भारतीय संविधान सभा के समक्ष लाया गया और स्वीकार कर लिया गया। जिसके बाद साल 1950 में 26 जनवरी को इस संविधान को देशभर में लागू कर दिया गया।

कौन है वो आदमी जिसका नाम संविधान के हर पन्ने पर है?
तो यह तो पूरे संविधान बनने की कहानी का लब्बो लुआब है। संविधान का जिक्र जब भी आता है तो हमारे सामने एक आदमी का चेहरा आता है और वो हैं बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर। बाबा साहेब को इस लिए याद किया जाता है क्योंकि उन्हीं के कारण भारत का संविधान बन सका। उन्होंने दुनियाभर के संविधानों को पढ़ा और फिर हमारे देश के संविधान की रूपरेखा को तैयार किया। लेकिन हम लोग अक्सर सारा क्रेडिट बाबा साहेब को ही दे देते है और शायद अगर वो भी आज जिंदा होते तो इस बात से खुश नहीं होते क्योंकि संविधान को बनाने में कई लोगों का कई तरह से योगदान रहा था। जैसे कि, संविधान को लिखने की ही बात को ले लीजिए। जब भी सवाल आता है कि, हमारे देश के संविधान को किसने लिखा?
तो हमारे पास जवाब में बाबा साहेब का नाम होता है। लेकिन असल में संविधान को लिखने का काम किसी और ने किया है। यहां लिखने से हमारा सेंस कैलीग्राफी से है। तो जब बात संविधान के कैलीग्राफी की आती है तो हममें से ज्यादा लोग उस शख्स का नाम नही जानते जबकि संविधान की मूल कॉपी के हर पन्ने पर उनका नाम लिखा हुआ है। संविधान के हर पन्ने पर जिस व्यक्ति का नाम लिखा है वो हैं ‘प्रेम बिहारी नारायण रायजादा’। अगर आपने इनका नाम पहली बार सुना होगा तो आपको बता दें कि, प्रेम बिहारी उस आदमी का नाम है जिन्होंने अंबेडकर साहेब द्वारा तैयार संविधान के मसौदे को अपनी कलम से पन्नों पर अक्षरों के रूप में उकेरा था। ‘प्रेम बिहारी नारायण रायजादा’ उस समय भारत के सबसे प्रसिद्ध कैलियोग्राफर हुआ करते थे ओर उन्हें प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संविधान को लिखने का काम सौंपा था।
नहीं लिए संविधान लिखने के एक भी रूपये
कहा जाता है कि, संविधान को बनाने में उस समय हमारे देश ने 1 करोड़ रूपया खर्च किया था। उस समय का 1 करोड़ रूपया आज के हिसाब से बहुत होगा। लेकिन संविधान को बनाने में उस कैलियोग्राफी ही शायद उन चुनिंदा कामों में से एक रहा होगा जिसके लिए पैसे खर्च नहीं हुए। क्येांकि कैलियोग्राफर ‘प्रेम बिहारी’ ने एक रुपया भी वेतन के तौर पर नहीं लिया। कहा जाता है कि, एक शर्त पर वे संविधान की प्रतियां लिखने के लिए तैयार हुए थे। इस बारे में एक किस्सा मशहूर है कि, जब पं. जवाहर लाल नेहरू ने बिहारी से पूछा कि, आप इस काम के लिए कितना मेहनताना लेंगे? तो ‘प्रेम बिहारी’ ने कहा कि, उन्हें एक रुपया भी नहीं चाहिए बस उनकी एक शर्त है। पंडित जी ने पूछा क्या शर्त है? तो जवाब मिला कि ‘ मैं संविधान के हर पन्ने पर अपना नाम चाहता हूं और अंतिम पन्ने पर अपने नाम के संग अपने नाना जी का नाम चाहता हूं। कुछ सेाचने के बाद पंडित जी ने शर्त मान ली।

प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के अनुरोध पर अपनी लेखनी का कमाल भारतीय संविधान को पन्नों पर आत्मसात किया। उनके इस काम के कारण ही आज भी दिल्ली और देश के व्यापारी गर्व से फूला नही समाता है। प्रेम बिहारी रायजादा एक व्यापारी के पुत्र थे। विश्व में सबसे बड़े संविधान को अपने हाथो से लिखने वाले रायजादा पूरे विश्व में ऐसा काम करने वाले अकेले इंसान हैं। उन्होंने अपनी कैलियोग्राफी लेखन कला से भारतीय संविधान की दो मूल प्रतियां बनाई थी। एक हिंदी में और दूसरी अंग्रेजी में। उन्होंने 6 महीने में इसे तैयार करके 3 मई 1950 को राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को इसे सौंप दिया था। इस अवसर पर संविधान निर्माता समिति के अध्यक्ष डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर सहित संविधान सभा के अन्य सदस्य भी वहां मौजूद थे। उनके द्वारा लिखे गए संविधान को ही संविधान सभा ने मान्यता दी और उसे ही भारत के संविधान के रूप में अपनाया गया।
भारत का संविधान प्रेम बिहारी रायजादा ने उस समय के कर्जन रोड और वर्तमान के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित कॉन्स्टिट्यूशन हाउस के कमरा नंबर 124 में बैठकर लिखा था। संविधान पार्चमेंट पेपर पर लिखा गया है जो लगभग 1000 वर्ष तक खराब नहीं होता है। संविधान की प्रस्तावना: हम भारत के लोग: भी श्री रायजादा ने लिखी थी और उसका डिजाइन भी उन्होंने ही तैयार किया था। संविधान के बॉर्डर की चमक राम व्योहार सिन्हा ने की थी। भारतीय संविधान प्रेम बिहारी रायजादा ने 16 गुणा 22 के पार्चमेंट पेपर पर 251 पृष्ठों में लिखा। जिसे लिखने में रायजादा ने 432 पेन होल्डर निब का उपयोग करना पड़ा। सबसे बड़ी बात इसमें नोटिस करने वाली यह थी कि, संविधान लिखने में उन्होंने एक भी मिस्टेक नहीं की थी। 17 जनवरी 1901 में जन्में प्रेम बिहारी रायजादा ने कैलीग्राफी की कला अपने दादा मास्टर रामप्रसाद से सीखी थी जो उस समय सेंट स्टीफंस कॉलेज में कैलीग्राफी के टीचर थे। उस समय यह कॉलेज चांदनी चौक में हुआ करता था। उनके पिता महाशय चतुर बिहारी नारायण स्टेशनरी के व्यापारी थे और आर्य बुक डिपो के नाम से दिल्ली में नई सड़क पर उनकी दुकान थी। जो आज भी मौजूद है। प्रेम बिहारी रायजादा ने देश के नाम कलाकारी का हुनर पेश किया और हमारे संविधान की रौनक में चार चांद लगा दिए। उनके इस योगदान को शायद ही कभी भुलाया जा सकता है।