भारत में समलैंगिकों की पहली आवाज बनने वाली ‘Human Computer’ की कहानी

कर्नाटक के एक ब्राह्मण परिवार का लड़का जिसकी चाहत थी कि, वो सर्कस में काम करे। लेकिन परिवार की इच्छा थी कि वो पुरानी परंपरा को आगे बढ़ाए और मंदिर का पुजारी बने। लेकिन इस लड़के ने अपनी सुनी और फिर घर से भाग निकला सर्कस में काम करने के लिए। काम भी मिला, शादी भी हुई और फिर उसकी लाइफ में वो फल भी आया जिसका इंतजार हर किसी को होता है। वो लड़का अब खुद पिता बन गया। उसके घर एक बच्ची का जन्म हुआ था। उसने अपनी बेटी को शकुंतला नाम दिया।तब शायद बिसवा मित्रा मनी को यह अंदाजा भी नहीं था कि, उसकी बेटी आम बच्चों से बिल्कुल अलग एक ‘गॉड गिफ्टेड चाइल्ड’ है। यही शकुंतला देवी जब बड़ी हुई तो ‘मानव कंप्यूटर’ के नाम से मशहूर हो गई। वहीं कई लोग उन्हें ‘मेंटल केलकुलेटर’ भी कहते थे। वैसे तो शकुंतला देवी की दोस्ती मैथ्स और नंबरों से 3 साल की उम्र में ही हो गई थी, लेकिन उनका ये टैलेंट उनके पिता को कुछ समय बाद पता चला।

Human Computer: जब पिता ने पहचाना हुनर

ह्यूमन कंप्यूटर शकुंतला देवी के टैलेंट को उनके पिता ने ही सबसे पहले पहचाना। जब सर्कस का काम खत्म हो जाता था, तब शकुंतला के पिता बिसवा मित्रा अपनी बेटी के संग जादू का खेल खेलते थे। वे कार्ड्स के जरिए अपनी बेटी संग यह खेल खेला करते थे। एक दिन शाकुंतला संग खेल खेलते हुए उनके पिता ने कार्ड का नंबर पूछा, इस पर शाकुंतला ने जो नंबर बताया उसी नंबर का कार्ड बिसवा के हाथ में था। बिसवा को आश्चर्य हुआ लेकिन फिर उन्हें लगा कि शायद शाकुंतला ने कार्ड्स देख लिए है। लेकिन फिर उन्होंने जब इस पर गौर किया तो उन्हें शाकुंतला के टैलेंट का पता चला। उन्हें पता चला कि उनकी बेटी के अंदर किसी भी नंबर को याद करने की एबिलिटी है। जब वे इस बारे में निश्चिंत हो गए तो उन्होंने अपना काम छोड़कर अपनी बेटी के इस टैलेंट को निखारने पर जोर दिया।

Human Computer: शुरूआत रोड शो से हुई

शकुंतला के पिता ने अपनी बेटी के टैलेंट को निखारने के लिए रोड शोज करने शुरू कर दिए। इन रोड शोज में शकुंतला अपनी टैलेंट की बदौलत बड़े से बड़ा कैलकुलेशन अपने दिमाग में ही करके सेकेंडों में जवाब देती थीं। आश्चर्य की बात ये थी कि उनकी शुरूआती शिक्षा तो नहीं हुई थी लेकिन फिर भी बड़े-बड़े उनके टैलेंट को देखकर भौचक्के थे। इसके बाद उन्होंने पहला बड़ा शो 6 साल की उम्र में युनिवर्सिटी ऑफ़ मैसूर किया।  

Human Computer
Human Computer

जब मिला ‘Human Computer’ का नाम  

साल 1980 में लंदन के इम्पीरियल कॉलेज में शकुंतला का शो हुआ। इस दौरान उन्हें गुणा करने के लिए कंप्यूटर से रैंडमली सिलेक्टेड 13-13 अंकों की दो संख्याएं दी गई। शाकुंतला ने अपने टैलेंट की बदौलत मात्र 28 सकेंड में सही जवाब देकर वहां मौजूद बड़े-बड़े लोगों को चौंका दिया। शाकुंतला को पहली संख्या दी गई थी 7,686,369,774,870, इस संख्या को उन्हें 2,465,099,745,779 के संग गुणा करना था। महज 28 सेकेंड में शाकुंतला ने 26 अंको का जवाब जो कि 18,947,668,177,995,426,462,773,730 था दे दिया। उनके इस कारनामे से भौंचक्की दुनिया ने उन्हें ‘ह्यूमन कंप्यूटर’ का नाम दिया। साथ ही उनका नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स के 1982 एडिशन में दर्ज किया गया।

इससे पहले साल 1977 में शकुंतला ने 201 अंकों की संख्या का 23वां स्क्वायर रूट बिना कागज कलम के 50 सेकंड में निकाला था। हैरानी की बात तो यह थी कि जब यह जानना चाहा कि उनका जवाब सही है या गलत, तो US ब्यूरो ऑफ स्टैण्डर्ड को UNIVAC 1101 कंप्यूटर के लिए अलग से एक स्पेशल प्रोग्राम तैयार करना पड़ा। आगे भी शकुंतला ने अपना सारा समय अपने गणित की प्रैक्टिस को दिया। उन्होंने बच्चों के लिए इस विषय को दिलचस्प बनाने के लिए खास टेक्सट-बुक भी लिखे।

समलैंगिक समुदाय की आवाज बनी शाकुंतला

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समलैंगिक समुदाय की आवाज बनी शाकुंतला

पिछले साल ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद समलैंगिकता से जुड़ा कानून खत्म कर दिया। लेकिन भारत में समलैंगिक लोगों की लड़ाई बहुत साल पुरानी है। शकुंतला इस समाज की आवाज थी। जब शकुंतला लंदन से भारत पहुंची तो उन्होंने कोलकता में एक आईएएस अधिकारी परितोष बैनर्जी से शादी की। शादी के बाद उन्हें अपने पति के समलैंगिक होने की जानकारी हुई। शकुंतला के साथ जब यह बात हुई तब दौर 70 के दशक का साथ। आज भी भारतीय सामाज समलैंगिकता को लेकर उतने खुले विचारों वाला नहीं है, तो आप सोच सकते हैं कि 70 के दशक में क्या माहौल होगा।

आम तौर पर किसी महिला या पुरूष के साथ ऐसी घटना होती तो ‘मेरे कर्म फूटे’, ‘नपुंसक है’
जैसे शब्द सुनने को मिल जाते हैं। वहीं सामाज में उनके साथ क्या होता है यह किसी को बताने की जरूरत नही है। लेकिन शकुंतला ने अपने पति को समझा और साथ ही साथ भारत में रह रही समलैंगिक समुदाय के साथ होने वाले व्यवहारों के खिलाफ आवाज भी उठाई। 1977 के दशक में धारा 377 को हटाने की पहली मांग शकुंतला देवी ने ही की थी। उन्होंने एक किताब ‘द वर्ल्ड ऑफ़ होमोसेक्शुअल्स‘ लिखी। इसमें उन्होंने अपने अनुभव और साक्षात्कारों के बारे जानकारी देते हुए सामाज के सामने समलैंगिक समुदाय की पीड़ा और संघर्ष को रखा। लेकिन इस किताब के आते ही उनके पति ने तलाक की अर्जी डाल दी।

शकुंतला की इसी इंस्पिरेशनल जिंदगी पर अब फिल्मी जगत भी जल्द एक फिल्म लेकर आ रहा है। फिल्म में विद्या बालन शाकुंतला देवी के किरदार में दिखेंगी। ऐसे में शाकुंतला देवी के किरदार को बड़े पर्दे पर देखना एक अलग ही अनुभव होगा। शाकुंतला की पूरी जिंदगी को देखें तो उनकी लाइफ सिर्फ मैथ्स तक नहीं सीमित नहीं रही। वे हमें ‘ह्यूमन कंप्यूटर’ के किरदार में दिखती हैं तो वहीं वे दूसरी तरफ समलैंगिक समुदाय को सामाज में हक दिलाने के लिए खड़ी होने वाली ‘ह्यूमनटेरियन’ के तौर पर भी दिखती हैं। उनकी जिन्दगी के इन दोनों किरदारों को अब फिल्म कितना तवज्जों देती है, यह तो समय बताएगा।   

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