हममें से ज्यादात्तर लोगों ने अपने घरों में देखा होगा कि, अंतिम फैसला ‘पापा जी का फैसला’ होता है। मां कितना भी कुछ डिसाइड कर लें या करने की सोच लें लेकिन अंत में वो भी एक बार घर के इस बड़े बॉस से जरूर परमिशन ले ही लेती है। चलिए हो सकता है कि, कुछ के पिताजी की घर में न चलती हो… लेकिन इतना तो हम और आप हमेशा से देखते आए हैं कि, हर शादी में लड़का राजकुमार बनकर पहुंचता है और राजकुमारी के जैसी सजी लड़की संग शादी कर उसे अपने घर लेकर आता है। यानी लड़की को अपना घर छोड़ना पड़ता हैं, और यही परंपरा है। सिर्फ भारत में नहीं बल्कि लगभग पूरी दुनिया में यही हाल है। इस तरह हम कह सकते हैं कि, हमारा समाज पुरुष प्रधान यानि पैर्टियार्की समाज है।

एक दूसरे के ठीक उलट हैं पैर्टियार्की और मैर्टियार्की
पुरुष प्रधान समाज की एक दिक्कत होती है, या यह कह सकते हैं कि, किसी भी समाज की यह दिक्कत हो सकती है कि, जब वो अपने पीक पर होता है तो उस समाज का कमजोर वर्ग शोषण का शिकार होता है। हजारों सालों से पुरुष प्रधान समाज में यह होता आया है। लेकिन नए दौर में अब फ्रीडम और इक्विलिटी की बात होने लगी है तो वूमेन एम्पॉवरमेंट और जेंडर इक्विलिटी जैसी चीजें समाज में दिखने लगी हैं। लेकिन अभी भी कई जगहों पर महिलाओं को बराबर अधिकार नहीं हैं। खैर समाज बदल रहा है, तो महिलाओं को भी अपने अधिकारों का एहसास हो रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि दुनिया में केवल ऐसे ही लोग हैं जो पैट्रियार्की सिस्टम से चलते हैं। इस पैट्रियार्की सिस्टम वाले देश में मातृसत्ता वाले लोग भी रहते हैं और कई सालों से अपनी परंपरा को संजोए चले आ रहे हैं।
Matriarchy- पुरुषों को शादी के बाद जाना होता है ससुराल
अब आपके दिमाग में इसके लेकर बहुत सारी बातें आने लगी होंगी, तो जो आप सोच रहे हैं वो लगभग—लगभग सही है। जैसे हम बचपन में पढ़ते थे कि, लड़का का उल्टा लड़की होता है तो बस वैसे ही पैट्रियार्की का उल्टा मैर्टियार्की होता है। उलटा मतलब सबकुछ उल्टा, शादी होगी तो लड़के को अपने ससुराल जाना होगा, घर की हेड बॉस मां होंगी पापा जी नहीं…, घर की आर्थिक हालातों की जिम्मेदारी औरतों की होगी और साथ ही लड़कियों के जन्म पर बधाईयों का तांता लगेगा। यकीन नहीं हो रहा होगा तो आपको हम देश के ऐसे ही तीन समाजों के बारे में बताते है जहां पैट्रियार्की नहीं मैर्टियार्की है और महिलाओं के अधिकार पुरुषों से ज्यादा हैं।
नार्थ—ईस्ट का खासी समुदाय, जहां महिलाओं के नाम पर चलती है वंशावली
खासी :— खासी समुदाय, आमतौर पर यह जनजातिय समाज है। नार्थ—ईस्ट के मेघालय राज्य के खासी और जयंतिया हिल्स इलाके में इन जनजातियों का बसेरा है। यह समुदाय मातृसत्तात्मक यानि मैर्टियार्की सिस्टम के जरिए चलता है। इनके यहां हर बड़ा फैसला घर की बुर्जुग महिला ही करती है। वहीं एक खास बात यह है कि, बच्चों को उनके पापा का सरनेम नहीं बल्कि अपनी मम्मी का सरनेम मिलता है। वैसे हाल ही में ऐसा कुछ चलन चलाने की कोशिश हमारे पैर्टियार्की वाले समाज में भी दिखा था। याद होगा आपको जब क्रिकेट के मैदान पर खिलाड़ी अपनी मां के नाम वाली टी-शर्ट पहनकर खेलने उतरे थे। वो भी एक अच्छा प्रयास था।
खैर हम बात खासी समुदाय की कर रहे हैं, तो एक जरूरी बात और बता दें कि, खासी समुदाय में लड़कों को प्रॉपर्टी में कोई अधिकार नहीं मिलता है। संपत्ति पर बेटियों का, खासकर के सबसे छोटी बेटी का हक होता है। संपत्ति का अधिकार होने का मतलब यह नहीं है कि, लड़कियों की मौज होती है। इन लड़कियों को बचपन से ही अपने घरों की जिम्मेदारियां उठानी होती हैं। घर की बड़ी महिलाओं का ख्याल उनके अंतिम समय तक रखना पड़ता है। यहां का हर परिवार चाहता है कि, उनके घर में बेटी पैदा हो, ताकि वंशावली चलती रहे और परिवार को उसका संरक्षक मिलता रहे। वैसे पुरुषों के लिए एक अच्छी बात यह है कि, परंपरागत बैठक में सिर्फ वे ही हिस्सा लेते हैं और राजनीतिक मुद्दों पर फैसला लेते हैं।

नार्थ—ईस्ट का वो समाज जहां महिलाएं नहीं मर्द जाते हैं शादी के बाद ससुराल
अब इस मैर्टियार्की सिस्टम का इतिहास भी आप जान लीजिए… ये तो हम सब जानते हैं कि, नार्थ ईस्ट का इतिहास लड़ाईयों से भरा रहा है। खासी समुदाय पुरुष प्रचीन काल में युद्ध के लिए लंबे समय तक घर से दूर रहते थे। ऐसे में परिवार और समाज की देखरेख महिलाएं करती थी। तभी से यहां महिला प्रधान सिस्टम का चलन हो गया। वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि, पहले महिलाएं बहुविवाह करती थी। इसलिए बच्चे का सरनेम मांओं के नाम पर ही रख दिया जाता था।
Matriarchy- गारो समाज भी चलता है मैर्टियार्की सिस्टम से
गारो :— खासी समुदाय की तरह ही नॉर्थ—ईस्ट में गारों नाम की जनजाती भी मैर्टियार्की सिस्टम से चलती है। गारो, भारत की एक प्रमुख जनजाति है। ये लोग मेघालय राज्य के गारो पर्वत और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में रहते हैं। इसके अलावा भारत में असम के कामरूप, गोयालपाड़ा और कारबिआंलं जिले में एवं उत्तरपुर्वी भारत के कई अन्य इलाकों में भी ये लोग पाए जाते हैं। इस समुदाय में भी खासी लोगों की तरह ही परंपराएं हैं। महिलाओं के अधिकार पुरुषो के मामले में असीमित और पुरुषों के अधिकार महिलाओं के मामले में सीमित हैं।
वैसे मातृसत्ता सही है या पितृसत्ता? इसपर अलग से बहस की जा सकती है। जैसी परेशानियां पैर्टियार्की में महिलाओं को हैं वैसी परेशानियां हाल ही में मैर्टियार्की में पुरुषो संग भी सामने आईं हैं। लेकिन हमें इस बात को तो जानना चाहिए कि दुनिया में दोनों ही तरह के सामाज है और कई सालों से हैं। वैसे इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि हमारे भारत का समाज भी कभी मैर्टियार्की हुआ करता था। लेकिन वक्त के साथ यह पैर्टियार्की हो गया। वहीं कई ऐसे फिलॉसफर यह कहते हैं कि, फिर समाज मैर्टियार्की होगा। खैर मौजूदा समय में गारों और खासी जैसे समाज हमारे देश की विभिन्नता वाली परंपरा को मजबूत करते हैं। लेकिन इनके होने का फायदा तभी है जब दोनों तरह के समाज में एक आपसी मेल—जोड़ हो, ताकी पैर्टियार्की हो या मैर्टियार्की दोनों में महिला और पुरुष समान अधिकारों वाले हों।