कमांडो, ये नाम सुनते ही समझ में बस एक बात आती है ‘वैसी फोर्स जिसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है’, वो फोर्स जो हर काम को कर सकती है, कैसी भी स्थिति में रह सकती है और भी ना जाने क्या-क्या। लेकिन इन चीजों के साथ एक मिथ यह जुड़ा होता है कि, कमांडो तो केवल पुरूष ही बन सकते हैं। मतलब लड़कियां यह नहीं कर सकती। लेकिन अब तो यह सब बेकार की बातें है। कमांडरों की लिस्ट में अब मर्दों के संग महिलाएं भी शामिल हैं। सिर्फ शामिल नहीं है बल्कि वो आज इन कमांडो को तैयार भी कर रही हैं। लेकिन कैसे इस मुश्किल से लगने वाली नौकरी महिलाओं का भी एक मुकाम हुआ? यह अपने आप में एक रोचक कहानी है और इस कहानी की शुरूआत होती है डॉ. सीमा राव की कहानी से।
सीमा राव ने वैसे तो डॉक्टर की डिग्री हासिल की है, लेकिन जिन्दगी के 20 साल उन्होंने देश के कमांडो को ट्रेनिंग देकर माहिर बना दिया है। इससे भी बड़ी बात ये है कि सीमा ये काम बिना किसी कॉम्पेन्सेशन के ही करती हैं। उन्होंने 20,000 से ज्यादा कमांडो को आर्म्ड और अनआर्म्ड क्लोज्ड क्वाटर्र बैटल की ट्रेनिंग 30 यार्ड के अंदर के ग्राउंड में दी है। उन्हें आर्मी की ओर से तीन प्रशंसा पत्र भी मिले हैं। वहीं वे अपने इस काम के लिए उन्हें यूएस प्रेसिडेंट वालंटियर सर्विस अवार्ड और वर्ल्ड पीस डेवलपमेंट अवार्ड से सम्मानित हो चुकीं हैं। लेकिन जिंदगी की ऊंचाइयों तक कोई यूं ही तो नहीं पहुंच जाता। इसके लिए कई चुनौतियों को पार करना पड़ता है। सीमा के लिए भी यह राह आसान नहीं थी। सीमा अपनी इस कहानी को ‘विकनेस से स्ट्रेंथ तक की जर्नी’ के नाम से बताती हैं।

सीमा राव और उनकी ‘विकनेस से स्ट्रेंथ तक की जर्नी’ के तीन किस्से
सीमा अपने कमांडो ट्रेनर बनने के बारे में बताते हुए कहती हैं कि, उनके अंदर देश के लिए कुछ करने की प्ररेणा सबसे पहले अपने पिता से मिली जो एक स्वतंत्रता सेनानी थे। सीमा कहती हैं कि, उनके द्वारा सुनाई गई उनकी खुद की कहानियां उन्हें खूब इंस्पायर करती थीं, जिसमें से एक कहानी थी उनके जेल से भागने की और मांडवी नदी को तैर के पार करने की। इस कहानी ने उन्हें बहुत इंस्पायर किया। लेकिन मार्शल आर्ट में वो अपने पति के कारण आईं जो उस समय उनके साथ ही मेडिकल कॉलेज में थे। उनके पति उस समय मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग लेते थे। उन्हीं के कहने पर सीमा ने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग शुरू की। मार्शल आर्ट ट्रेनिंग के इसी दौर का एक किस्सा सुनाते हुए सीमा बताती हैं कि, एक बार वो और उनके पति ट्रेनिंग कर रहे थे और उसी समय कुछ लोफर लोगों की ओर से उनके ऊपर भद्दे कमेंट किए गए।
उस समय तो हमने ट्रेनिंग को जारी रखने के लिए कुछ नहीं भी जवाब नहीं दिया। लेकिन इसके बाद जब ट्रेनिंग खत्म हुई, तो रास्ते में जाते समय कमेंट करने वाले वे ही लोग मिले। गुस्सा तो था ही और उसपर मेरे पति ने मुझे हिम्मत देते हुए मुझे आगे करते हुए कहा कि, यह तुम्हारी लड़ाई है। सीमा के मन में उस समय बहुत कुछ चल रहा था लेकिन वो सीधे उन लोगों की ओर बढ़ते हुए जा रही थीं। देखते ही देखते वहां एक फिल्मी सीन क्रिएट हो गया। जब फाइट खत्म हुई तो एक भीड़ वहां लगी हुई थी जो उस लड़की की वाह—वाह कर रही थी जो भीड़ के बीच से निकल रही थी। अपनी इस फाइट को लेकर सीमा कहती हैं कि, यह मेरा एक ट्रांसफॉरमेंशन था एक कंट्रोल बींग से अनकंट्रोल बींग का जिसे मैं वीकनेस से स्ट्रेंथ की जर्नी कहती हूं।
जंपिंग :— वीकनेस से स्ट्रेंथ की जर्नी के बारे में एक और किस्सा बताते हुए कहती हैं कि, वो अपने पति के साथ हर सुबह बीच पर जाया करतीं थी। उस बीच पर एक 15 फीट का गड्ढ़ा था। एक बार वहां पर उनका मोबाइल फोन गिर गया। इसपर वे गड्ढ़े में कूद गए। फिर मुझे कहा कि, तुम भी आ जाओ। सीमा बताती है कि, यह भी मेरे लिए एक बड़ा चैलेंज था। दिमाग का एक हिस्सा कूदने की बात कह रहा था तो वहीं दूसरा कह रहा था कि, नहीं मत कूदो.. तुम कूदोगी तो बहुत चोट लगेगी। इसी कशमकस को दरकिनार कर सीमा ने छलांग लगा दी। यह पहला दिन था जब उन्हें ऊंचाई से कूदने में डर लगा होगा। लेकिन इसके बाद उन्हें कभी डर नहीं लगा। आनेवाले कुछ समय के बाद उनके पास खुद का का पैराविंग था और उन्होंने 10,000 फिट की ऊंचाई से छलांग लगाई।
Shooting : सीमा इस कहानी के बारे में बताते हुए कहती हैं कि हम लोग एक Shooting क्लब के मेंबर हुआ करते थे। जहां से एक बार एक सिनियर पुलिस ऑफिसर से मिलने का मौका मिला था जिन्हें हमारे अंदर Shooting के कुछ गुण दिखे थे। हमने उनके सामने डेमोंस्ट्रेशन दिए जिसके बाद हमें फोर्स को ट्रेंड करने का मौका मिला। उसी दौरान जब सब चले गए तो मेरे पति और मै बात कर रहे थे। उसी दौरान उन्होंने अचानक एक एप्पल अपने सर पर रखा और कहा कि, चलों शूट करो। मुझे लगा यह कोई मज़ाक है। लेकिन उन्होंने कहा कि, नहीं यह कोई मजाक नहीं है। तुम एक ट्रेनर हो और तुम इसमें कैसे हेजिटेट हो सकती हो! सीमा बताती है कि, कांपते हाथो से मैने वो निशाना लगाया था, निशाना लगा भी। लेकिन इसके बाद मैने उन्हें फिर से एक एप्पल सर पर रखने को कहा और इस बार मैने निशाना अपने मजबूत हाथों की बदौलत लगाया और नतीजा पहले से ज्यादा सुख देने वाला रहा।

सीमा राव को ट्रेनिंग देने उनके गुरू खुद आए भारत
सीमा बताती हैं कि, उन्होंने मार्शल आर्ट की, ब्लैक बेल्ट जीती , क्रि बॉक्सिंग भी की, रेसलिंग भी की। लेकिन उनकी रूचि इन सबसे ज्यादा ब्रूस जी द्वारा शुरू किए गए आर्ट ‘जीत कून डो’ को सीखने का था। इसके लिए उन्होंने उस समय इसे सिखाने वाले एक टीचर से सम्पर्क किया, जो किसी दूसरी कंट्री के थे। सीमा बताती हैं कि, एक बार वे पास के ही किसी देश में थे तो मैनें उनसे मिलने का मन बनाया। जब बारी वीजा लेने की आई तो यहां सीमा को उनसे पूछे गए सवाल पसंद नहीं आए। सीमा बताती हैं कि, जब मैं वीजा के लिए इंटरव्यू दे रही थी तो वहां मुझसे पूछा गया कि मैं पांच रीजन बताऊं कि क्यों मैं अपना देश छोड़ के उनके देश में जाना चाहती हूं। सीमा बताती हैं कि, यह सवाल मुझे मेरे पेट्रीयोटिक नेचर के विपरीत लगा और मैने उस इंटरव्यू को छोड़ दिया।
जाहिर सी बात थी कि, सीमा को इसके बाद वीजा नहीं मिलने वाला था। लेकिन सीमा की चाहत थी कि, उन्हें ‘जीत कून डो’ सीखना है। तो उन्होंने फिर से अपने टीचर से बात की और सारी बात बताई। सीमा की माने तो इसके बाद उनके टीचर खुद भारत आए 4 सप्ताह तक यहां रहकर मुझे ट्रेनिंग दी। इसी ट्रेनिंग की बदौलत सीमा ‘जीत कून डो’ में आज दुनिया में सबसे हाइयेस्ट स्कोरिंग वुमेन हैं और सीनियर मोस्ट इंस्ट्रक्टर भी हैं।
सीमा मानती हैं कि, हमें एक जगह पर स्थिर नहीं रहना चाहिए हमें हर समय अपने आप को अपग्रेड करते रहना चाहिए। वे कहती हैं कि, मैने पुलिस के साथ काम करना शुरू किया, फिर स्टेट रिर्जव पुलिस, उसके बाद आर्मी, पेरामिलेट्री, एयरफोर्स, एनएससी, एसपीजी, नेवी और कोर बैटल स्कूल के लोगों को ट्रेनिंग दी। मैं हमेशा यह चाहती थी कि, मै एलीट फोर्सेस को ट्रेंनिंग दूं और मैने ऐसा किया भी।
सिर्फ हार्ड कामों में नहीं सॉर्ट वर्क में भी आगे हैं सीमा राव
सीमा बताती हैं कि, रियल लाइफ शूटिंग से वे रील लाइफ शूटिंग तक भी पहुंची। इसकी शुरूआत मिस इंडिया वर्ल्ड से हुई और वो इस कांटेस्ट की पांच फाइनलिस्ट में से एक रहीं थी। इतना ही नहीं सीमा ने एक शॉर्ट फिल्म भी बनाई हैं। इसके पीछे की कहानी बताते हुए वे कहती हैं कि, फिल्म बनाने का ख्याल उन्हें उस समय आया जब एक डॉयरेक्टर से उनकी बात नहीं बनी जो ‘जीत कून डो’ पर फिल्म बनाना चाहते थे। इसके बाद मैने खुद फिल्म बनाने की सोची। सीमा ने वुमेन एम्पावरमेंट के ऊपर महाभारत पर बेस्ड एक मूवी बनाई थी जिसे दादा साहेब फाल्के फिल्म फेसटिवल में जूरी एप्रिसियेशन अवार्ड मिला था।
सीमा को लोग ज्यादात्तर एक ट्रेनर के रूप में जानते हैं, लेकिन असल में वो कई तरह की चीजों में माहिर हैं। एक ट्रेनर से ब्यूटी कांटेस्ट के फाइनलिस्ट तक और फिर एक फिल्म निर्माता की भूमिका में खुद को ढ़ालना आसान काम नहीं है। सीमा महिलाओं के लिए एक इंस्पिरेशन हैं। फिर चाहें वो किसी भी फिल्ड में अपना करियर बनाना चाहें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वे हमारी भारतीयता की उस सोच की सही ब्रांड एम्बेसडर हैं जो बताती है कि, ‘स्त्री के लिए कुछ भी असंभव नहीं… क्योंकि वो ही सर्व शक्तिमान है।