‘अपने बच्चों के हर बोझ को अपने कंधे पर उठा लेता है,
वो बाप है साहेब, बच्चों के लिए हर गम उठा लेता है।।’
ये शानदार लाइने किसी कवि ने लिखते समय पिता की उसके बच्चों के प्रति प्रेम का अनुभव किया होगा। शायद शायर का यह खुद का भी अनुभव हो। आमतौर पर मां को लेकर बहुत कुछ लिखा गया है, पर पिता के बारे में कम ही सुनने और पढ़ने के लिए मिलता है। लेकिन पिता के लिए उसके बच्चों की अहमियत क्या है यह तो सिर्फ वो ही जानता है।
पिता के लिए उसके बच्चों की खुशी कितनी मायने रखती है, इसी का एक उदाहरण तमिलनाडू से सामने आया है। जहां एक पिता ने अपनी बेटी की खुशी के लिए और उसे मनाने के लिए एक गंदे तालाब को साफ कर उसे फिर से साफ तालाब बना दिया।
कहानी दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडू के तिरुवारूर जिले की हैं। यहीं के रहने वाले हैं सिवाकुमार। उनके साथ उनके परिवार में उनकी पत्नी और दो बच्चे बेटा विवेकानंद और बेटी नातिया है। सिवाकुमार की बेटी उनसे पिछले आठ महीने से बात नहीं कर रही थी। जिसके कारण सिवाकुमार इस उधेड़-बुऩ में हैं कि आखिर उनकी बेटी उनसे नाराज क्यों है? और वे ऐसा क्या करें कि उनकी बेटी उनसे बात करने लगे?
गंदे तालाब को साफ करने की शर्त पर बेटी ने की पिता से बात
दरअसल सिवाकुमार किसी इंडस्ट्री में लेबर का काम करता है। उसकी एक आदत है कि वो शराब पीता है और अपनी बीवी से झगड़ा भी करता है। जिसके कारण उसकी बेटी नातिया खफा रहती है। यहीं कारण है कि उसने अपने पिता सिवाकुमार से बात नहीं करने की ठानी। लेकिन इसके अलावा एक और कारण था जिसके कारण नातिया को परेशानी हो रही थी।
पिता को इतना तो पता था कि उसके शराब पीने और अपनी पत्नी से झगड़ा करने के कारण उसके बच्चे उससे बात नहीं कर रहे। लेकिन उसे साथ में लगता था कि उसकी बेटी किसी और कारण से भी परेशान है। बीबीसी को दिए अपने इंटरव्यू में इस बारे में बताते हुए सिवाकुमार कहते हैं, कि,
‘मेरी बेटी ने मुझसे 8 महीने बात नहीं की, जब मैने उससे बात करने की कोशिश की तो उसने एक तलाब की गंदगी और उसकी बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया और शर्त रखी अगर मैं इसे साफ कर दुंगा तो वो मुझसे बात करेगी।’
दरअसल सिवाकुमार की बेटी जिस स्कूल में पढ़ती है उसके पीछे एक तालाब हैं, जिसमें कुछ सड़े हुए कमल और कुछ अन्य पौधे हैं, जिसके कारण तालाब से बदबू आती है और स्कूल के बच्चों को पढ़ने-लिखने में दिक्कत होती है। नातिया तालाब से आने वाली इसी बदबू से परेशान थी और इसका हल चाहती थी। ऐसे में उसने इस बारे में अपने पिता से जब कहा तो सिवाकुमार को लगा कि अगर वो यह काम कर देगा तो उसकी बेटी फिर से उससे बात करने लगेगी। बस क्या था अगली सुबह एक कप चाय पीकर सिवाकुमार अकेले तालाब में उतर गए उसकी सफाई करने। एक-एक करके उन्होंने तलाब की गंदगी को पूरी तरह साफ कर दिया। अब तालाब फिर से साफ हो गया है और इससे कोई बदबू नहीं आती जिसके कारण बच्चे भी आसानी से स्कूल में पढ़ाई कर पाते हैं।
गंदे तालाब की सफाई कर सिवाकुमार ने पेश की मिसाल
नातिया 8वीं कक्षा की छात्रा है। नातिया की खुशी के लिए उसके पिता ने जो किया है उससे उसके स्कूल के टीचर भी बहुत खुश हैं। वे कहते हैं कि नातिया का इंट्रेस्ट नेचर में हैं, हम लोग जब स्कूल में इस बारे में बात कर रहे थे तब उसने इसके बारे में कुछ करने की बात कही थी। टीचर कहते हैं कि हम इसे दूसरे मजदूरों से साफ करवाने की सोच रहे थे, लेकिन तब तक नातिया ने अपने पिता से कहकर इसे साफ करवा दिया।
नातिया की एक जिद्द ने ना सिर्फ तालाब को साफ करने में मदद की बल्कि स्कूल के बच्चों की पढ़ाई में आ रही बाधा को भी खत्म कर दिया। वहीं सिवाकुमार ने अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कान के लिए और उसकी खुशी के लिए यह काम अकेले पूरा कर दिया। आज सिवाकुमार ने नातिया को यह भी भरोसा दिलाया है कि वो उसकी मां से कभी नहीं झगड़ेगा।
नातिया और सिवाकुमार का यह जीवंत रिश्ता सच में प्रेरणादायक है, वो भी उस समय में जब पूरी दुनिया क्लाइमेट चेंज के खतरे से घिरी है और यूएन जैसे मंत्र पर दुनियाभर के बच्चे सभी बड़े लीडरों और अपने बड़ों से उनके भविष्य को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। जब सिवाकुमार अपनी बेटी नातिया के लिए अकेले एक तलाब को साफ कर सकते हैं तो क्या इस दुनिया में आगे आने वाली नातिया जैसी करोड़ों पीढ़ियों के लिए हम लोग क्लाइमेट चेंज़ के खतरे से लड़ नहीं सकते? कहानी छोटी है लेकिन संदेश बहुत बड़ा है।