बिचित्रनंद बिस्वाल, जो कछुओ के लिए नहीं करना चाहते हैं शादी!

हाल में एक हाथी और एक गाय के संग मानवीय बर्बरता की खबर आई थी। पशुओं के संग ऐसे बर्बरता को देख कर हर कोई हरप्रभ था। यहीं कारण है कि ऐसे घटनाओं कि कड़ी आलोचना हुई और ऐसा कृत्य करने वालों को सजा दिलाने की सोशल मीडिया मुहिम भी चली। वैसे बेजुबान पाशुवो पर इंसानी बर्बरता कोई नई बात नहीं है, कुछ चंद मामले मीडिया में आते हैं और खबर बन जाते हैं। लेकिन ये मामला तो हर रोज का है। तभी तो इस धरती से आज पशु पक्षियों की 905 से ज्यादा प्रजातियां विलुप्त हो गई है वहीं 16 हजार से ज्यादा लुप्त होने की कगार पर हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि लोग इन्हें बचाने की कोशिश में नहीं लगे। ऐसे कई नाम है जिनकी जिंदगी सिर्फ पशु पक्षियों के नाम है, इनमें से कई बहुत पढ़े लिखे हैं तो कई स्कूली शिक्षा तक नहीं ले सके हैं। लेकिन जानवरों के प्रति उनका प्रेम आपको उनका मुरीद बना देगा।

ऐसे हीं नामों में से एक नाम ‘ बिचित्रनंद विस्वाल ‘ जिन्हे उनके जानने वाले ‘बिची भाई’ के नाम से जानते हैं। बिचित्रनंद ओडिसा के गुंदलाबा नाम के एक छोटे से गांव में रहते हैं, जिस गांव के बारे ने शायद कभी कोई भी राष्ट्रीय स्तर की बात जानने लायक नहीं रही है। लेकिन अब ये गांव बिची भैया के कारण देशभर में चर्चा का कारण है। 37 साल के बिचित्रनंद पिछले 23 साल से ऑलिव रिडले टर्टल को की प्रजाति को बचाने में लगे हैं। समुद्री कछुवो की ये प्रजाति दुनिया की खत्म होती प्रजातियां में से है जिसके पास अपने अंडे देने के लिए दुनिया भर में बहुत कम ही बीच बचे हैं।

ऑलिव टर्टल

ओलिव रिडले समुद्री कछुए की एक प्रजाति है। यह दुनिया का दूसरा सबसे छोटा समुद्री कछुआ है। दुनिया का सर्वाधिक संकटग्रस्त जीवित समुद्री कछुआ ओलिव रिडले हर साल जाड़ों में ओडिशा के समुद्री तट पर अंडे देने आता है और गर्मियों में लौट जाता है। हाल में ये ये कछुए चर्चा में तब आए थे जब ये लॉकडॉउन के दौरान ओडिसा के समुद्री तट पर लाखों की संख्या में अंडे देने पहुंचे थे। इन कछुवों ने इस दौरान करोड़ो अंडे दिए जो अब बंगाल कि खाड़ी में प्रवेश कर चुके हैं।

ऑलिव कछुए समुद्री तट पर इंसानी अतिक्रमण का सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। इंसानों के कारण ये समुद्री तटों पर आ नहीं पाते और जो पहुंचकर अंडे देते भी हैं, उनके अंडे बर्बाद हो जाते हैं। यहीं कारण है कि इन कछुवो की आबादी लगातार घट रही है।

बिचित्रनंद और ऑलिव कछुए का जुड़ाव

बिचित्रनंद बिस्वाल,

बिचित्रनंद की मानें तो बचपन में उनका जुड़ाव कछुओं से हुआ। समुद्री बीच उनके घर से दूर नहीं है तो वो रोज शाम को बीच पर खेलने जाते थे। इसी दौरान उनकी नजर मेरे हुए कछुवों और उनके बेकार हो गए अंडो पर पड़ती थी। इस घटना ने उन्हें इसके बारे में सोचने पर मजबूत किया और उन्होंने 15 साल की उम्र में हीं कछुवो के लेकर जागरूकता फैलाना शुरू की। बिची के अनुसार उनकी बातों पर उनसे बड़े लोग मजाक बनाते तो वहीं उनकी उम्र के बच्चे थोड़ा ही इन्हें सीरियसली लेते थे।

बिची ने कछुवों को बचाने की अपनी मुहिम को मैट्रिक के बाद अपना फूल टाइम काम बना लिया। उन्होंने कछुवो के बारे में और पढ़ा और इतनी जानकारी पाई, जितने पूरे राज्य में किसी के पास नहीं है। बिची इसके बाद कछुवो के अंडों की रक्षा करने और उनके अंडे से बाहर निकलने तक एक सही जगह देते हैं। हाल में उनके बारे में जब रिडले टर्टल पर शोध और इनके बचाव के लिए काम करने वाली एक टीम को बिचित्रनंद के बारे में पता चला तो,  वे यहां पहुंचे और इस काम में उनकी सहायता के लिए आर्थिक मदद मुहैया कराई। वहीं जब यह खबर लोकल मीडिया में छपी तो सरकार ने भी नोटिस किया। हालांकि इससे पहले साल 2000 में वन विभाग ने बिची को ट्रेनिंग देने के लिए बुलाया था। जहां से उन्हें कई वॉलंटियर्स मिल गए जो आज भी उनके संग इस काम में मदद करते हैं।

बिचित्रनंद बिस्वाल,

वहीं स्कूल में उनके स्पीच से इंस्पायर होकर उनके दो दोस्त सौम्यारंजन बिस्वाल और दिलीप बिस्वाल ने भी उनके संग ऑलिव कछुए को बचाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी दे दी। यही नहीं इसके अलावा उन्होंने  पूरे राज्य में 800km तक साइकिल चलाकर ऑलिव के बारे में लोगों को जागरूक किया, जो एक रिकॉर्ड है और लिम्का बुक में भी दर्ज हुआ है। बिछी और उनके दोस्त ऑलिव की प्राथमिकता के संग हीं सांप और चिड़ियों की प्रजातियों को बचाने में लगे हैं। आज उनके पूरे ग्रुप ने अपने इस काम को निरंतर बनाए रखने के लिए शादी नहीं करने का फैसला भी किया है।

आज बिची भाई के काम और उनके जागरूकता फैलाने वाले भाषणों के कारण उनके गांव के युवा और महिलाएं उनके काम से जुड़ रही हैं और दुनिया से विलुप्त होने के कगार पर पहुंच रहे इस जीव को बचाने और सुरक्षित वातावरण देने की कोशिश कर रही हैं।

हमारी भारतीय संस्कृति में कछुए को भगवान विष्णु का दूसरा अवतार माना जाता है, जिनकी पीठ पर ही पर्वत रखकर समुद्र मंथन हुआ था। कछुए को भारतीय संस्कृति में धन और सुख का प्रतीक माना जाता है, लेकिन अब ये बस प्रतीकों में बच गया है, बहुत कम ही लोग कछुए को बचाने के बारे में सोचते हैं, ऐसे में बिचित्रनंद का काम भारतीयता की मिसाल है जो बेजुबान पशुओं से भी प्रेम करने की बात करता है।

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