पढ़ोगे, लिखोगे बनोगे नवाब, घूमेगे फिरेगे तो होगे खराब….ये कहावत भारतीय घरों में हर बुजुर्ग अपने घर में रह रहे बच्चों को जरूर सुनाता है. क्योंकि हमारे परिवार से लेकर हमारे परिवेश के लोगों को भी यही लगता है कि, अगर बच्चा घूमता फिरता रहा, या फिर अगर उसका ध्यान किताब से हट गया तो वो बिगड़ जाएगा. यही एक वजह है कि, आज 21वीं सदी में भी अधिकांश बच्चों का टेलेंट न तो निखर कर सामने आ सका है और न ही परिवार इसकी इज़ाजत देता है.
लेकिन कुछ बच्चे और उनके कारनामे ऐसे ही होते हैं. जो उनके परिवार के साथ-साथ समाज को ये बताने के लिए काफी हो जाते हैं कि, असल में किताबों के अलावा भी एक दुनिया है. जहां बच्चा बहुत कुछ कर सकता है.

अब अगर कोच्चि के रहने वे सारंग सुमेश की ही बात करें तो, सारंग सुमेश भारत के पहले ऐसे बच्चे हैं. जिन्होंने महज 4 साल की उम्र में अपना पहला रोबोट बना दिया. यानि की जिस उम्र में हाथों में खिलौने और घर से बेफ्रिक हम घूमते फिरते हैं. उसी उम्र में सुमेश ने एक ऐसा रोबोट तैयार कर दिया. जोकि उनकी माँ की मदद कर सके.
इस रोबोट को बनाने की प्रेरणा सुमेश को तब मिली. जब उनकी माँ घर में झाडू पोछा लगाया करती थी. उसे देखकर सुमेश ने अपनी माँ की मदद करने की सोची और उन्होंने एक ऐसा रोबोट तैयार कर दिया. जो उनके घर में उनकी माँ की मदद कर सके. इसके अलावा सुमेश ने उसी उम्र में एक ऐसी छड़ी का आविष्कार किया. जो अंधों के लिए काफी कारगर साबित हो रही है. अब सोचने वाली बात है न, जहां हम अपने दो से तीन साल के बच्चे को स्कूल भेजने के लिए स्कूल में दाखिला दिलाने से लेकर भारी-भारी बस्ते तक टांग देते हैं. ताकि, हमारा बच्चा जल्दी से जल्दी ए फॉर एप्पल और बी फॉर बॉल सीख सके. वहीं हम उनकी उन प्रतिभाओं को मार देते हैं. जो उनके अंदर बचपन से ही पनप रही होती हैं. चाहे वो कलाकारी की हो, चित्रकारी की हो…या फिर सिंग्गिग क्यों न हो.
बच्चों से साथ बचपनें में खिलवाड़
हकीकत यही है कि, हम बचपन में ही बच्चों के अंदर पनप रही बाहरी दुनिया की जिज्ञासा के साथ उनके विकसित होते दिमाग को भी खत्म कर देते हैं और उन्हें किताबें थमा देते हैं. हालांकि सारंग सुमेश के पिता ने ऐसा नहीं किया था. क्योंकि वो शायद अपने बच्चे के हुनर को शुरुवात में ही पहचान गए थे. पेशे से इंजीनियर सारंग के पिता ने, सांरग को बचपन में ही रोबोट टेक्नोलॉजी लाकर दी. जिसमें बच्चा रोबोट से खेल सके और ये खेलना ही कमाल कर गया. जिसके बाद सांरग ने महज़ चार साल की उम्र में ये कर दिया. जिसकी कल्पना अधिकतर लोग अपने मरते दम तक नहीं कर पाते.
Saarang Sumesh जब चर्चा में आए

8 साल के होते होते सारंग सुमेश को काफी लोग पहचानने लगे, क्योंकि वो अपने बनाए रोबोट को अहमदाबाद के फेस्ट 2016 में लेकर आए थे. जहां उन्हें लोगों ने खूब वाहवाही दी. साथ ही वो लोगों की पसंद बन गए.
इसके अलावा चीन के शेनझेन शहर में हुए फैब 12 सम्मेलन में भी जब सुमेश अपने बनाए रोबोट को लेकर पहुंचे तो, वैज्ञानिकों और निर्माताओं की दुनिया में वो दुनिया के सबसे कम उम्र के रोबोटमेकर थे. जिसकी खबर कैलिफोर्निया में भी प्रकाशित हुई.
वहीं अपने तीसरी क्लास में पहुंचते पहुंचते सारंग ने एक ऐसी स्मार्ट बेल्ट का भी निर्माण किया, जिससे फोर व्हीलर गाड़ियों में भी नई क्रांति आ सकती है. क्योंकि उन्होंने जिस बेल्ट का निर्माण किया है. उसमें दुर्घटना स्थिति के समय वो बेल्ट खुद रिएक्ट करती है. जिसे खासतौर पर बुजुर्गों और छोटे बच्चों की जरूरत को समझते हुए रिएक्ट करती है. सारंग कहते हैं कि, ये बेल्ट इस डिवाइस में वॉटर, फायर सेंसर लगाए गए हैं. साथ ही दुर्घटना जैसी कोई भी स्थिति क्यों न हो ये बेल्ट खुद-व-खुद खुल जाएगी.
TEDx के सबसे कम उम्र का युवा

सांरग भारत के साथ-साथ दुनिया के ऐसे पहले स्पीकर हैं. जिन्होंने TEDx पर जाकर अपनी स्पीच दी. सारंग के आविष्कारों की अगर बात करें तो अब तक सारंग रोबोटिक हाथ, डिजिटल लॉक, तिपहिया, स्पीड गेम यहां तक की क्लिनिक रोबोट बना चुके हैं. कहते हैं न प्रतिभा कभी किसी से नहीं छिपती. हालांकि जब उसी प्रतिभा पर बोझ ड़ालकर उसे दबा दिया जाता है तो, वो उस तरह न तो प्रतिभा निखर पाती है. न ही बाहर आ पाती है. इसलिए हमें अपने बच्चों और उनकी जरूरतों को समझने की जरूरत है. ताकि हम और वो अपने बेहतर भविष्य के साथ, उनके बेहतर भविष्य के साक्षी बन सकें.