आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे स्कूल की जिसकी ना कोई बिलडिंग हैं ना कोई खेल का मैदान,, लेकिन फिर भी यह पाठशाला लगती है यहां बच्चे आते है टीचर पढ़ाते भी है इस कहानी में पढ़ाई का जब्जा है और समाज सेवा भी है… सुनिए कहानी मेट्रो पुल के निचने लगने वाले फ्री स्कूल अडंर द ब्रिज की… .
दिल्ली शहर में एक स्कूल ऐसा भी है जो विकास की पहचान दिल्ली मेट्रो के एक पुल के नीचे चलता है। यहां बच्चें हर दिन पढ़ने आते है और अपने भविष्य के बारे मे सोचते है। इन बच्चों ने शायद यह कभी नही सोचा होगा की वो कभी स्कूल मे जाएंगे भी। क्योंकि आज कल तो सरकारी स्कूलों मे भी एडमिशन लेना बहुत ही मुश्किल है और गरीब लोगों के पास इतना पैसा नही होता की वो अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल मे पढ़ा सके। गरीब लोगों के बच्चें ही कभी ठीक से नही पढ़ पाते,, एटलिस्ट ठीक से क्या वो पढ़ ही नही पाते। बहुत कम लोग होते है जो इन बच्चों के बारे मे सोचते है। लेकिन जो इनके बारे मे सोचते है वो भी काफी अच्छा सोचते है। ऐसा ही कुछ राजेश जी ने भी सोचा।
Free School Under The bridge राजेश जी ने शुरु किया। यह ऐसा स्कूल है जहां ऐसे बच्चो को पढ़ाया जाता है जो कभी स्कूल जाने के बारे मे सोच भी नही सकते।

यह स्कूल चमचमाते दिल्ली शहर की एक अलग ही तस्वीर सामने लाता है। दिल्ली सचिवालय से महज कुछ दूरी पर यमुना बैंक मेट्रो डिपो के पास मेट्रो पुल के नीचे चलने वाले इस स्कूल का नाम है ‘फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज’। फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज आसपास के गरीब मजदूरों के बच्चों को जीने की नई उम्मीद देता है, वो भी मुफ्त में। इस स्कूल में आसपास की झुग्गी-झोपड़ियों में और रेल की पटरी के किनारे रहने वाले गरीब मजदूरों के बच्चे पढ़ते हैं। ये मजदूर इस शहर में काम ढूंढ़ने आते हैं और कुछ साल रहने के बाद किसी दूसरे शहर में बस जाते हैं। इन सब में नुकसान होता है तो उनके बच्चों का, क्योंकि उनके पास ना कोई परमानेंट आइडेंटिटी होती है और ना ही इतनी हिम्मत कि वे किसी सरकारी स्कूल में जाकर प्रिंसिपल और अधिकारियों के सवालों का जवाब दे सकें और स्कूल मे एडमिशन ले सके।
ऐसे बच्चों को फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज एक नई उम्मीद देता है। इस स्कूल के संस्थापक और प्रिंसिपल राजेश कुमार है। राजेश कुमार जी ने कभी भी ऐसे स्कूल खोलने के बारे मे नही सोचा था। एक बार वो 2006 मे यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन बन रहा था तब वहां गए थे। तब उन्होंने देखा की वहां काम करने वाले बाहर से आए मजदूरों के बच्चे मिट्टी मे खेल रहे है भाग रहे है फिर उन्हें उन बच्चों के माता पिता से बात चीत की तो पता चला की वो कभी एक जगह नही रहते क्योंकि वो मजदूर बाहर से आए है उनका काम खत्म होता है तो वो दूसरे काम की तलाश मे निकल पड़ते है ऐसे मे उनके बच्चें स्कूल जा ही नही पाते। तब उन्होंने सोचा क्यों ना इनके लिए कुछ किया जाए। पहले उन्होंने सोचा की बच्चों के लिए कुछ खाने का समान ले चलता हुं,, लेकिन फिर उनके दिमाग मे आया की वो बच्चों को खाने का समान देंगे तो उन्हे अच्छा तो लगेगा और उनको याद भी करेंगे फिर यह याद बस तभी तक रहेंगी जब तक खाना खाने का समान खत्म नही होता। जैसे ही खाने का समान खत्म होगा वो बच्चें उन्हे भूल जाएंगे। फिर उन्होंने सोचा बच्चो को कपड़े देते है लेकिन फिर वो ही बात उनके दिमाग मे आई की कपड़े बच्चें कब तक पहंनेगे। कभी ना कभी वो फंटेगे फिर बच्चें उन्हें भूल जाएंगे। फिर उन्होंने सोचा क्यों ना बच्चों को पढ़ाया जाए। ऐसे बच्चों का भविष्य भी बन जाएगा। तो उन्होंने वहीं पास एक पड़े के नीचे दो बच्चो को पढ़ाना शुरु कर दिया। महज कुछ तीन-चार महीनों के बाद राजेश जी के पास 140 बच्चें आ गए। और धीरे धीरे 2006 तक राजेश के पास बहुत सारे बच्चे आने लगे।
Free School Under The bridge गरीब बच्चों को जीने की नई उम्मीद देता है

2006 में ज्यादा बच्चों के साथ जिम्मेदारी भी काफी बढ़ गई। फिर उन्होंने सोचा की अब क्या किया जाए। बच्चों को आगे कहा पढ़ाया जाए। फिर उन्होंने पास के नगर निगम स्कूल में बच्चो के एडमिशन के लिए बात की। उन्होंने वहां के प्रिंसिपल से बोला की वो उन बच्चो को अपने यहां एडमिशन दे दे तो उन बच्चो को भविष्य भी बन जाएंगा। यह बात सुनकर स्कूल के प्रिंसिपल और टीचर हंसने लगे। राजेश जी का मजाक उड़ाने लगे। फिर स्कूल वालों ने उनसे पुछा कि कहां हैं वे बच्चे और तुम्हारे पास क्यों आए? यहां क्यों नहीं आए? तो उन्होंने प्रिंसिपल को बताया की वे बच्चे और उनके मां-बाप आप लोगों से डरते हैं कि आप कहीं कोई सवाल न पूछने लगो।’ ये बात सुनकर प्रिंसिपल ने उनको कहा की अभी तो बच्चो को एडमिशन नही दे सकते। यह बात सुनकर वो वहां से चले गए। लेकिन कुछ समय बाद नगर निगम स्कूल के प्रिंसिपल एक दिन सड़क किनारे चलने राजीव जी को देखने आए की वो कहां बच्चो को पढ़ा रहे है। कैसे पढ़ा रहे है। प्रिंसिपल उन बच्चों की पढ़ाई के प्रति लगन देख दंग रह गए। उस वक्त उन्होंने उन बच्चों को स्कूल में ऐडमिशन दे दिया। उन बच्चों के ऐडमिशन के साथ ही फिलहाल यह स्कूल कुछ समय के लिए बंद हो गया।
इस घटना के चार साल बाद 2010 में राजेश जी ने सोचा की उन बच्चो को एडमिशन तो हो गया लेकिन अभी भी कई ऐसे बच्चे है जो पढ़ाई से दूर है। फिर उन्होंने एक स्कूल की शुरुआत की जिसका नाम फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज रखा गया। आज इस स्कूल मे पहली क्लास से लेकर 10वीं क्लास तक के बच्चे पढ़़ते है। लगभग इन बच्चों की संख्या 240 बच्चो से ज्यादा होगी। इस बच्चो को पढ़ाने के लिए आसपास के इलाके के ट्यूशन टीचर आते है। ये ट्यूशन टीचर इन बच्चो को पढ़ाने के कोई पैसा नही लेते। ये स्कूल इन बच्चो को स्कूल बेग, स्कूल यूनीफॉम, खाने का खाना सब देते है।