‘मधुशाला’ आज भी लोगों के बीच लोकप्रिय है। 1935 में छपी मधुशाला ने हरिवंशराय बच्चन को खूब प्रसिद्धि दिलाई। मधुशाला आम लोगों के ईर्द-गिर्द घूमनेवाली रचना है। यही कारण है मधुशाला कालजयी कृति बनकर कायम है।
Madhushala – मधुशाला से समाज में दिया एकता का संदेश
इसका अंग्रेजी सहित कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है। ‘मधुशाला’ उमर खय्याम की रुबाइयों से प्रेरित थी। इसमें उन्होने व्यक्ति और समाज की पीड़ा को उन्माद और मधु की मस्ती में भुला देने की प्रेरणा दी।
हरिवंशराय बच्चन ने मधुशाला से समाज को एकता का संदेश दिया था, जिनमें यह भी है कि मधुशाला एक ऐसी जगह है जहां पर जाकर हर जाति, वर्ण, वर्ग, भाषा, धर्म और क्षेत्र का आदमी हम प्याला बन जाता है। उस दौर में साम्प्रदायिक सौहार्द्र को मजबूती दिलाने का प्रयास बच्चनजी ने मधुशाला के माध्यम से किया।
मधुशाला इतनी मशहूर हो गई कि जगह-जगह इसे नृत्य-नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया गया। मशहूर नृतकों ने इसे प्रस्तुत किया था। मधुशाला की चुनिंदा रुबाइयों को मन्ना डे ने एलबम के रूप में प्रस्तुत किया।
बच्चनजी के साथ ‘साहित्यिक त्रासदी’ ये हुई कि वे न तो प्रगतिशीलों को पसंद आए और न प्रयोगवादियों को, जबकि उनकी ‘मधुशाला’ शताब्दी की सर्वाधिक बिकने वाली काव्य कृति है।
Madhushala – मधुशाला में मैखाने के माध्यम से जीवन का सार छिपा है
बच्चन की ‘मधुशाला’ ने न केवल काव्य प्रेमियों या जनसाधारण को प्रभावित किया अपितु उसने भारत के स्वाधीनता सेनानियों, बलिदानियों और देशभक्तों को भी प्रभावित किया। लोगों ने आरोप लगाया था कि, बच्चन पीने-पिलाने को बढ़ावा दे रहे है। यहां तक कि गांधीजी से भी उनकी शिकायत की गई।
बाद में बापू से मिलकर उन्होंने बताया कि मधुशाला में मैखाने के माध्यम से जीवन का सार छिपा है, और फिर बापू ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। अगर आप कुछ देर के लिए अपने फोन टीवी से हटकर मधुशाला के पन्नों से होकर मधुशाला के अंदर प्रवेश करेंगे और कविता के प्याले में भावों की हाला पिएंगे तो पाएंगे कि आप जीवन की एक उत्कृष्ट पाठशाला में आ गए हैं। क्योंकि इस मधुशाला में दार्शनिक के लिए जीवन-दर्शन है, राजनीतिज्ञ के लिए शुद्ध राजनीति का उपदेश है, समाज के लिए भाईचारे का संदेश है और प्रेमी के लिए उसके घावों पर लगाने की ये एक बेहतरीन औषधि है।