परिस्थितियां क्या हैं…? क्या आपको मालूम है…? अगर नहीं तो एक बार सोचना जरूर… क्योंकि मेरी नजर में तो परिस्थितियां वो होती हैं जो किसी भी इंसान वो सब कुछ करने पर बेबस कर सकती हैं और ये ज्यादातर गरीबी में सामने आती हैं
एक ऐसे शख्स की कहानी जिसने अपनी विपरीत परिस्थितियों में वो सब किया जो एक आम आदमी बामुश्किल करता है. लेकिन अंत में वो मुकाम हासिल किया जहां से वो अपना भविष्य खुद तय कर सकता है. आज यही वजह है की मुकाम हासिल करने के बाद सरकार भी उसको अपने से जोड़ना चाहती है. जाहिर है…देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विपरीत परिस्थितियों में चाय बेंची और हिम्मत नहीं छोड़ी शायद इसी का सिला है की वो आज देश के प्रधानमंत्री तक के सफर को तय कर पाये हैं.
चाय बेचकर हासिल किया चार्टेड अकाउंटेंट का पद
उसी तरह 28 साल के सोमनाथ गिरम सदाशिव पेथ ने चाय बेचकर पढ़ाई की और चार्टेड अकाउंटेंट की परीक्षा पास की. जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें अर्न एंड लर्न स्कीम का ब्रांड एंबेसडर कर चुन लिया. हालांकि सदाशिव की यहां तक की जर्नी काफी मुश्किलें से भरी है…क्योंकि जब सदाशिव ने 12वीं की परीक्षा पास की थी तो उनके घर वालों ने उन्हें पढ़ाई छोड़ने के लिए कहा था क्योंकि घर वालों की इतनी हैसियत नहीं थी की वो सोमनाथ को और आगे पढ़ा सकें.
लेकिन सोमनाथ के सिर पर पढ़ाई का जुनून इस कदर था की न तो सोमनाथ ने पढ़ाई छोड़ी और न ही पढ़ने का जुनून. यही वजह रही की सोमनाथ ने अपना गांव छोड़ दिया और पुणे में अपने दोस्त मनोज शेंडे के पास चला गया. मनोज यहां प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी के लिए आया था. पुणे में पहुंचने के बाद सोमनाथ ने पार्टटाइम जॉब ढूंढ़नी शुरु की लेकिन कम पढ़ा लिखा होने के चलते सोमनाथ नौकरी नहीं मिल पाई.
जिसके बाद सोमनाथ के दोस्त मनोज ने उन्हें एक टी-स्टॉल खोलने की सलाह दी और उसी सलाह को मानकर सोमनाथ ने टी-स्टॉल लगाना शुरू किया और कुछ ही दिनों में टी-स्टॉलर लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया. साथ ही सोमनाथ अपनी कमाई का एक हिस्सा अपने परिवार को भेजते थे. उनके टी-स्टॉल पर पढ़े लिखे ग्राहकों की सख्यां काफी ज्यादा हो गई क्योंकि सोमनाथ का रुख इसको लेकर पहले से ही बहुत क्लियर था.
विपरीत परिस्थितिओं में भी नहीं थमा पढ़ाई का सिलसिला
जिसके बाद कुछ लोगों ने उन्हें श्री शाहू मंदिर महाविद्यालय से बी.कॉम करने का सुझाव दिया. सोमनाथ को ये सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने अपना बी.कॉम वहां से पूरा किया. पढ़ाई का सिलसिला थमने न पाए इसलिए उन्होंने एम.कॉम करने का निर्णय लिया. उन्होंने गरवरे कॉलेज में एडमिशन ले लिया.
लेकिन अब उनके लिए पढ़ाई और काम में संतुलन बनाना मुश्किल हो रहा था. इसलिए सोमनाथ ने काम के घंटे कम कर दिए. पूरे दिन मेहनत के बाद वो थक कर चूर हो जाने के बाद देर रात तक पढ़ाई करते थे.
सोमनाथ का कॉलेज भी सोमनाथ की स्थिति से वाकिफ था जिसके चलते उन्हें अटेंडेंस की छूट थी. कॉलेज टाईम में ही एक प्रोफेसर ने सोमनाथ को चार्टेड अकाउंटेंसी फ्रिम के बारे में बताया और शीतल एम साहा से मिलवाया. जिसके बाद पहली बार इस पेशे के बारे में पता चला. इस दौरान शीतल एम साहा ने उन्हें अपनी कंपनी में इंटर्नशिप दी और उन्हें सीए की तैयारी करने के लिए प्रेरित किया.
जिसके बाद लगातार चार बार असफल होने के बाद अंत में सोमनाथ ने वो मुकाम हासिल किया जिसके वो असल हकदार हैं. सोमनाथ अपनी इस सफलता का श्रेय अपने दोस्त मनोज और शीतल एम शाहा को देते हैं. वहीं उनकी सफलता पर उनके घर वालों के रुख की बात करें तो वो कहते हैं घर वालों के सीए का मतलब मालूम नहीं हैं. उन्हें न ही इससे कोई फर्क पड़ता है कि मैं कहां और क्या काम कर रहा हूं. मैं ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाऊं उसी में उनकी खुशी है.
अपनी टी-स्टॉल के बारे में अब सोमनाथ कहते हैं की वो एक जरिए है जिससे मैंने अपनी मंजिल हासिल की इसको मैं बंद नहीं करूंगा. ये मैं गांव के किसी भी जरूरतमंद को दे दूंगा जिसको इसकी जरूरत होगी.
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