जैसा की आप सब जानते हैं मजबूर माता-पिता वृद्धाश्रम में चले जाते हैं, मजबूर बच्चे अनाथालय में चले जाते हैं और मजबूर खच्चर न वो कहीं नहीं जाता वो काम ही करता है
उसी तरह मजबूर पति भी कहीं नहीं जाता वो बस अपनी पत्नि के अत्याचार सहता है और काम करता रहता है….
हालांकि आज हम आपको बता आए हैं एक आश्रम के बारे में….ये आश्रम न तो वृद्धाश्रम है न ही साधु संतों का आश्रम है ये आश्रम है पत्नी पीड़ित पतियों वाला आश्रम…जोकि महज उन लोगों के लिए खोला गया है जो अपनी पत्नियों के सताए हैं.
आपको बता दें की ये अनोखा आश्रम महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में खोला गया है. जहां पत्नियों से पीड़ित और प्रताड़ित न जाने कितने पति यहां आकर रह रहे हैं. इसके अलावा अपनी पत्नी से कानूनी लड़ाई लड़ रहे पतियों को ये आश्रम मदद भी करता है. आपको बता दें की इस आश्रम में छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र से लेकर देश के अन्य जगहों से भी लोग कानूनी सलाह लेने के लिए आते हैं.
आज के समय की अगर बात करें तो, इस आश्रम में सलाह लेने वालों की भीड़ दिनों दिन बढ़ती जा रही है. क्योंकि इस आश्रम में अब तक लगभग 500 लोग से ज्यादा सलाह ले चुके हैं. मुंबई-शिरडी हाइवे पर मौजूद देखने में किसी आम घर की तरह दिखने वाला ये आश्रम आज पास से जाकर देखने पर अलग ही अनुभव कराता है.
पत्नी पीड़ित आश्रम में सिखाया जाता है पतियों को, दांव पेंच
जहां इस आश्रम में इंट्री करते ही पहले कमरे में कार्यालय बनाया गया है, जहां पत्नी पीडित पतियों की लड़ाई में कानूनी दांव पेंच सिखाए जाते हैं. इसके अलावा इस कार्यालय में बना में थर्माकोल का बड़ा सा कौआ सबका ध्यान अपनी ओर खींचता है और इस आश्रम में इस कौए की ही पूजा होती है…
अब आप सोच रहे होंगे की आखिर क्यों होती है तो हम आपको बताते हैं. आश्रम में रहने वाले एक पत्नि पीड़ित की मानें तो वो कहते हैं जैसे मादा कौआ घोसलें में अंडा देकर उड़ जाती है लेकिन नर कौआ चूजों का पालन पोषण करता है. यही वजह है की यहां इस कौए की पूजा की जाती है.
आपको बता दें की इस आश्रम में जहां पहले के समय में आस पास के लोग आते थे आज अलग अलग राज्यों से आ रहे हैं और आए भी क्यों न समस्या इतनी गंभीर जो हैं. इस आश्रम के संस्थापक भारत फुलारे यहां के पीड़ितों की फाईलों की संभालते हैं. 1200 स्कवायर फिट की जगह पर बना ये इस रूम की अगर बात करें तो यहां तीन कमरे हैं जिसमें यहां रहने वाले पुरूषों के लिए खिचड़ी, रोटी, सब्जी दाल सबकुछ बनता है और ये लोग खुद ही इसे बनाते हैं. आश्रम में रहने वाले पुरूष सदस्य ही पैसा जमा कर यहां का खर्चा उठाते हैं…क्योंकि यहां कोई टेलर का काम करता है तो कोई गैराज का इसी तरह यहां का खर्चा चलता है.
आश्रम के संस्थापक पर खुद चल रहा है घरेलू हिंसा का केस
आपको बता दें कि आश्रम के संस्थापक भारत फुलारे खुद एक पत्नी पीड़ित होने का दावा करते हैं और कहते हैं की मेरी पत्नी ने मुझ पर घरेलू हिंसा के तहत केस दाखिल किया है और इसी केस के चलते मुझे कुछ महीनों तक इस शहर से बाहर रहना पड़ा था. एक समय था जब कोई भी रिश्तेदार मेरे पास आने से डरता था. कानूनी सलाह भी मिलनी मुश्किल हो गई थी. इसी समय मुझे तुषार बखरे और दूसरे तीन लोग मिले. हम सभी लोग पत्नी पीड़ित थे और हम एक दूसरे का सहारा बने हमने एक दूसरे की कानूनी लड़ाई लड़ने में मदद की और 19 नवंबर 2016 को हमने पुरूष अधिकार दिवस के अवसर पर इस आश्रम की शुरुवात की.
फुलारे बताते हैं की हमने अपने यहां तीन कटैगरी बनाई है…जो ए, बी और सी
जिस व्यक्ति का पत्नी, ससुरालवालों में उत्पीड़न होता है और उन्हें डरा घमका कर रखा जाता है हम उन्हें सी कटैगरी में रखते हैं. जिस व्यक्ति को अपनी पत्नी से शिकायत है लेकिन वो समाज के डर से चुपचाप ये सब कुछ सहन करता है उसको बी ग्रुप में रखते हैं. जबकि ए कैटेगरी में हम उन लोगों को जगह देते हैं जो बिना डरे किसी भी स्थिति में सही चीज सामने रखता है. फिलहाल हमारे पास लगभग तीन समूहों के 500 लोग सलाह लेते हैं.
इतना सब कुछ जानने के बाद चलिए हम आपको इस आश्रम के कायदे कानून भी बता देते हैं.
तो यहां के पहला नियम है की पत्नि की तरफ से कम से कम 20 केस पति पर दाखिल होना जरूरी है या फिर गुजारा भत्ता न चुकाने से जेल में जाकर आया हुआ हो, व्यक्ति यहां पर दाखिला ले सकता है. इसके अलावा यहां उनके लिए भी जगह है. जिनकी नौकरी पत्नि के केस दाखिल करने से चली गई है. लेकिन अगर आप दूसरी शादी करने का विचार अपने मन में बना रहे हैं तो आपको यहां दाखिला नहीं मिलेगा. इसके साथ ही अगर आपको यहां दाखिला मिलता है तो आपको अपनी कौशल और क्षमता के हिसाब से काम करना होगा.
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