नेविगेशन, अंग्रेजी के इस शब्द का हिन्दी में सीधा सा मतलब होता है मल्लाही, मांझीगरी, जहाजी विद्या या नाविक विद्या। यानि यह समुद्र या पानी से जुड़ा हुआ है। लेकिन यह पुरानी बात हो गई तो नेविगेशन का मतलब थोड़ा ज्यादा है और इसका दायरा जल, जमीन और हवा तीनों जगह फैल गया है। अब हम अपने मोबाइल पर गूगल मैप और जीपीएस सिस्टम के जरिए आसानी से कहीं का भी नक्शा पा सकते हैं और कहीं का भी रास्ता देखकर वहां पहुंच सकते हैं। अपना लोकेशन किसी को भी शेयर कर सकते हैं, या दूसरे का लोकेशन अपने मैसेज बॉक्स में पा सकते हैं, किसी चीज का ऑर्डर किया है तो उसे मोबाइल पर ही देखा जा सकता है और जान सकते हैं कि, वो चीज हमारे पास कितनी देर में पहुंचेगी। यह सब पॉसिबल हुआ है नेविगेशन साइंस में हुई तरक्की से। लेकिन यह तरक्की पूरी दुनिया के देशों में एक जैसी नहीं हुई है। केवल अमेरिका, चीन और रूस ही ऐसे देश हैं जिनके पास अपना सेटेलाइट नेविगेशन सिस्टम है। हमारे देश भारत के पास भी अब तक ऐसा कोई सिस्टम नहीं था लेकिन अब भारत भी इन देशों की सूची में शामिल हो चुका है, क्योंकि अब हमारे पास भी अपना नेविगेशन सिस्टम है जिसका नाम है ‘नाविक’।

भारत को क्यों बनाना पड़ा अपना नेविगेशन सिस्टम?
अमेरिका, रूस और चीन के बाद अब भारत चौथा ऐसा देश है जिसके पास अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम है। लेकिन भारत को इसकी जरूरत क्यों पड़ी, गूगल मैप तो था ही, यह सवाल कई लोग पूछ सकते हैं। लेकिन इस सवाल के जवाब के लिए हमें जाना होगा कुछ साल पीछे। कहा जाता है कि, भारतीय वैज्ञानिकों को यह आइडिया तो 1980 के दशक में ही आ गया था। लेकिन 1999 में भारत के साथ कुछ ऐसा हुआ जिससे लगा कि, अपना नेविगेशन सिस्टम जल्द से जल्द विकसित करना ही होगा। चलिए बतातें है कि, आखिर ऐसा क्या हुआ?
जैसा कि, हम सब जानते हैं कि, 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था। यह लड़ाई पाकिस्तान की ओर से शुरू हुई थी। पाकिस्तान की ओर से कुछ आतंकी भारत में आ गए थे और कारगिल की पहाड़ियों को अपने कब्जे में ले लिया। भारत ने उस समय अमेरिका से उसके नेविगेशन सिस्टम के जरिए इन आतंकियों की एक्जेक्ट लोकेशन शेयर करने की सहायता मांगी थी। लेकिन अमेरिका ने इसमें भारत की सही तरीके से मदद नहीं की। जिसके कारण यह युद्ध कई दिनों तक तो चला ही साथ ही इसमें भारत को बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ा। ऐसे में जब इस पर विश्लेषण किया गया तो इसमें बात सामने आई कि, भारत के पास अपना खुद का नेविगेशन सिस्टम होना चाहिए।
आज हम जो गूगल मैप यूज करते हैं वो अमेरिकी कंपनी है। अगर भविष्य में गूगल ने अपने नेशनल इंट्रेस्ट का हवाला देते हुए भारत के नागरिकों को यह सुविधा देनी बंद कर दी तो उस हालत में हमारे देश को बड़ा नुकसान हो सकता है फिर वो नुकसान आम आदमी के लेवल का हो या फिर बिजनेस लेवल या फिर बात प्राइवेसी की हो या फिर डिफेंस लेवल की। ऐसे में अब जब भारत के पास अपना नेविगेशन सिस्टम है तो हम भविष्य की इन आशंकाओं को लेकर निश्चिंत हो गए हैं।
क्या है स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम है नाविक?
भारत का देसी जीपीएस यानी नाविक(NavIC) जिसे अंग्रेजी में Navigation With Indian Constellation कहते हैं, यह सात सैटेलाइट वाला एक रीजनल नेविगेशन सिस्टम है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान (ISRO) ने विकसित किया है। इस सैटेलाइट समूह की मदद से भारत अपने अंतरिक्ष से भारत और इसके आसपास के 1,500 किलोमीटर के दायरे में स्थित देशों में पोजिशनिंग सर्विस मुहैया करा सकेगा। अब यह सिस्टम हमारे मोबाइल फोनों में गूगल मैप की जगह भी लेने वाला है। आसान भाषा में कहें तो अब सारे एप्स जिनका काम नक्शे की बदौलत होता है, जैसे डिलीवरी, कैब आदि उनके लिए अब भारतीय नेविगेशन सिस्टम यूज होगा। क्योंकि यह जीपीएस से भी ज्यादा सटीकता से काम करेगा और हमें ज्यादा सहीं जानकारी देगा।
हालांकि भारत का यह मिशन बहुत पहले ही पूरा हो जाता लेकिन जिन सात सैटेलाइटों को अंतरिक्ष में भेजा गया था उनमें से एक IRNSS 1A किसी कारण से काम नहीं कर पाया। इसमें लगी परमाणु घड़ियां बेकार हो गई। जिसकी जगह लेने के लिए IRNSS 1A को 2018 में भेजा गया और अब इसरों ने इस सिस्टम के सफलता पूर्वक शुरू होने की बात कही है। इस पूरे सिस्टम को 7 उपग्रहों का एक समूह चलाता है और जमीन पर दो स्टैंण्ड बाई इसकी मदद के लिए लगे हैं। सात सैटेलाइटों में से तीन धरती के जीओ स्टेशनरी आर्बिट और 4 जियो संक्रोनस आर्बिट में स्थापित किए गए हैं।
इससे दो तरह की सर्विस हमें मिल सकेगी पहला स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सर्विस और दूसरा रिस्ट्रिक्टेड सर्विस यानि आर एस। इस पूरे सिस्टम का पूरा रख—रखाव धरती पर IIRNSS अंतरिक्ष यान नियंत्रण सुविधा, इसरो नेविगेशन सिस्टम, IIRNSS रेंज और इंटीग्रिटी मॉनिटरिंग स्टेशन, IIRNSS नेटवर्क टाइंमिंग सेंटर, IIRNSS सीडीएमए रेंजिंग सिस्टम, लेज़र रेंजिंग स्टेशन और IIRNSS डेटा कम्यूनिकेशन नेटवर्क की देख रेख में होता है। इस पूरे नेविगेशन सिस्टम की खासियत यह है कि, इसमें एस और एल बैंड लगे हैं जिससे हमें वायुमंडल में कोई परिवर्तन होने के बाद भी सटीक पोजिशनिंग का पता लगाने में मदद मिल सकेगी।

क्या होगा फायदा ?
‘नाविक’ पूर्ण रूप से स्वदेशी है। इसके संचालन और रखरखाव को देखने के लिए भारत में 18 केन्द्र बनाए जा रहे हैं। इस नेविगेशन सिस्टम से हमें सैन्य और कूतनीतिक तौर पर भी दुनिया में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। इसके अलावा इसकी जीपीएस तकनीक से हमें हिन्दुस्तान के दूर—दराज के इलाकों पर नज़र रखने, सरकारी प्रोजेक्टों की रियल टाइम मैपिंग करने, सड़क, रेल, हवाई और जल यातायात में, ट्रैफिक और लेट चल रही ट्रेनों की रियल टाइम ट्रैकिंग में, लोगों को वैकल्पिक मार्ग की जानकारी देने में और आपदा के समय मलबे में दबे लोगों को बचाने और उन्हें राहत पहुंचाने में मदद मिलेगी।
यह तो बात सिर्फ नागरिकों के यूज से जुड़ी है। लेकिन इस सिस्टम के जरिए भारत अपने आस—पास के देशों को भी इसका लाभ देगा। जिससे हमारे अपने पड़ोसी देशों से कूटनीतिक रिश्ते और ज्यादा मजबूत होंगे। वहीं इन देशों से इस सुविधा के जरिए पैसे भी सरकार कमा सकती है। नाविक के जरिए हम इन देशों को मौसम और मैपिंग की सुविधा के बदले पैसे या कोई अन्य सुविधा ले सकते हैं। इसके अलावा इसका इस्तेमाल हम नक्शे तैयार करने, भूगर्भीय आंकड़े जुटाने, भटक गए विमानों को खोजने, सेना को सामरिक जानकारी पहुंचाने और साथ में उद्योगों और छोटे व्यपारियों की मदद करने में कर सकेंगे।
इस साल से अब ‘नाविक’ हमारे और आपके मोबाइल में आ जाएगा। यानि अब हम स्वदेशी सिस्टम के जरिए पोजिशनिंग की जानकारी जुटा सकेंगे। अमेरिकी चिपमेकर Qualcomm ने भारत में तीन नए चिपसेट्स लॉन्च किए हैं। खास बात ये है कि इनमें इनबिल्ट ISRO Navic का सपोर्ट दिया गया है। कंपनी ने भारत में Snapdragon 720G, 662 और 460 लॉन्च किए हैं। वहीं खबर है कि, शाओमी, भारतीय स्पेस एजेंसी ISRO से बातचीत कर रही है और सबकुछ ठीक रहा तो आने वाले दिनों में भारत में लॉन्च होने वाले स्मार्टफोन्स में ISRO द्वारा विकसित नेविगेशन सिस्टम लगा होगा। यह भारत के लिए खुद में बड़े गौरव की बात है। क्योंकि एक जमाना था जब किसी जगह की जानकारी के लिए हम लोगों का सहारा लेते थे, वो एक अलग इंडियननेस था, लेकिन जब जमाना टेकनोलॉजी का आया तो उसमें हम आगे तो थे लेकिन इंडियननेस वाली बात नहीं थी। लेकिन अब जब अपना स्वदेशी ‘नाविक’ हमे रास्तों की जानकारी देगा तो उसमें इंडियननेस वाली वो फीलिंग होगी जो हमें अंदर से एक भरोसा देगा कि, हां ‘नविक’ ने बताया है तो रास्ता सही है।