‘साइबर क्राइम’… मतलब वैसा क्राइम जिसमें नेटवर्क, इंटरनेट का इस्तेमाल हुआ हो। इस शब्द को सुनकर ऐसा लगता है कि, इसे कोई टेक्नोलॉजी का अच्छा जानकार ही कर सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है। असल में ये जिस इंसान का दिमाग है ना यह उसे हर चीज के संग खुरापात करने के आइडियाज दे देता है और इसी में इंसान खुद को खुद से ट्रेंड कर लेता है। यह क्राइम भी कुछ ऐसा ही है। अब फ़िशिंग क्राइम को ही देख लीजिए। यह साइबर क्राइम के अंदर आने वाला वो अपराध है जिसे आम दिमाग और कम पढ़े-लिखें लोग भी आसानी से कर लेते हैं। 2016 से लेकर 2017 में इस क्राइम के हजारों मामले सामने आए। दिल्ली, मुंबई से लेकर देश के हर बड़े शहरों के अच्छे—अच्छे लोग इस ठगी का शिकार हुए। इतना तो तय था कि, कोई बड़ा नेटवर्क इसके पीछे है लेकिन यह नहीं पता था कि, इस क्राइम का असल केन्द्र देश की राजधानी दिल्ली से 1300 कि.मी.दूर झारखंड के जामताड़ा में है। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात थी कि, यह काम करमाटांड़-नारायणपुर जैसे ऐसे गांवो से हो रही थे जहां डेवलपमेंट का नामों निशान तक नहीं था।
हैलो.. सर मैं ‘फलाना’ बोल रहा हूं। सर बताना चाहूंगा कि, आपका एटीएम कार्ड ब्लॉक हो गया है। अगर आप अपने कार्ड को एक्टिवेट कराना चाहते हैं तो अपने एटीएम कार्ड का नंबर और सीवीवी बताएं। सर एक कोर्ड आया होगा… वो बताइए, बस इतनी सी बात और लोगों के अकाउंट से एक सेकेंड में हजारों से लेकर लाखों रुपये गायब हो गए। ‘हैलो’ कभी यह आवाज़ यहां के सुनसान इलाकों और जंगलों में बहुत सुनाई देती थी लेकिन पुलिस की सख्ती की वज़ह से अब यह बहुत कम हो गया है। लेकिन 3 से चार सालों के लिए इस जगह ने पूरे देश के लोगों को परेशान किया, जिसके कारण यह जगह देश भर में साइबर क्राइम के गढ़ के नाम से फेमस हो गई। एक और अनोखी बात है इस जगह के बारे में, कि ये देश की पहली ऐसा जगह है जहां पुलिस स्टेशन नहीं साइबर पुलिस स्टेशन है। क्योंकि यहां होने वाले 90 प्रतिशत से ज्यादा क्राइम साइबर से ही जुड़े हैं।

Jamtara और यहां का साइबर क्राइम
झारखंड के संथाल परगाना रीजन में स्थित जामताड़ा (जो 2001 में एक जिला बना) का रिकॉर्ड ऐसा नहीं है कि, कभी क्राइम से नहीं जुड़ा रहा हो। यहां के लोग पहले वैगेन ब्रेक्रिंग के काम में बहुत ज्यादा जुड़े हुए थे। इसके बाद यहां ट्रेन पैसेंजर्स को नशीला पदार्थ खिला कर लूटने की घटनाएं बढ़ी। इसी तरीके से इस इलाके में क्राइम होते रहे हैं। लेकिन 2014 के बाद जिस तरीके से डिजिटल क्रांति हुई है उस हिसाब से यहां का क्राइम भी इवोल्व हुआ और फिर यह जगह साइबर क्राइम का गढ़ बन गया।
जामताड़ा जहां की आबादी करीब 7.91 लाख की है और साक्षरता की दर 64.59% है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि, यहां की 58.71 फीसद की आबादी कुछ नहीं करती और ज्यादात्तर लोग खेती—बाड़ी के काम से जुड़े हुए हैं। लेकिन ये आंकड़े देखकर आप यह मत सोचिएगा कि, यह जगह बहुत पिछड़ी हुई है। असल में यह जगह हाथी के दांतों की तरह है जो बाहर से तो दिखने में एक देहाती इलाके जैसी लगती है। लेकिन जैसे ही आप इसके अंदर जाते हैं आपको बड़े शानदार घर, हवेलियां और हर उस फैसिलिटी को एन्जॉय करते हुए लोग मिल जाएंगे जो आमतौर पर लोगों की कल्पना में सिर्फ शहरों में देखने को मिलते है।
देश में होने वाला 80 पर्सेंट फ़िशिंग क्राइम यहीं से ऑपरेट होता है। इस गांव के फ़िशिंग क्रिमिनल्स ने ‘हैलो’ की आवाज से देशभर के खास और आम आदमी को अपना निशाना बनाया है। सुपर स्टार अमिताभ बच्चन से लेकर न्यायिक पदाधिकारी, आइएएस, आइपीएस, पुलिस के जवान, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी, केन्द्रीय मंत्रियों और आम गरीब के खाते से यहां के शातिरों ने करोड़ों की रकम उड़ाई है। आलम यह रहा है कि, देश भर के राज्यों की पुलिस झारखंड के इस इलाके में रेड मारने पहुंच चुकी है। लेकिन आज भी यह साइबर गैंग जारी है। 2019 में करीब 109 लोगों की गिरफ्तारी जामताड़ा में साइबर क्राइम के मामले में हुई। जिनके पास से पुलिस को 224 मोबाइल, 354 सीमकार्ड, 163 एटीएम कार्ड, 83 पासबुक, 30 मोटरसाइकिल, 12 फोर व्हीलर, 23 चेकबुक और 15,44,000 कैश रुपया बरामद हुआ।
कैसे होता है फ़िशिंग का क्राइम और क्या है पुलिस की मुश्किलें
जामताड़ा में फ़िशिंग का क्राइम इतना फलने—फूलने के पीछे का सबसे बड़ा कारण है इस इलाके की जियोग्राफिकल कंडीशन। यह इलाका मैदानी है और आस—पास घने जंगल हैं। फिशिंग करने वाले ज्यादात्तर कम उम्र के युवा है जो स्कूल ड्रॉप हैं। ज्यादात्तर तो पांचवीं भी पास नहीं हैं। लेकिन इसके बाद भी देश भर में इनके क्राइम के कारण बड़े—बड़े लोग परेशान हुए। पुलिस बताती है कि, 2011 में यहां के युवाओं का एक ग्रुप गांव से बाहर कमाने के लिए गया और वहां से उन्होंने मोबाइल फोन को बिना पैसे दिए रिचार्ज करने की ट्रिक सीखी और वापस आए। जिसके कुछ सालों बाद यहां बैक अकाउंट से पैसे निकाले जाने के मामले सामने आने लगे।
इस मामले में आरोपी दिवाकर मंडल (जिसे पुलिस ने उसके भाई के संग 11 मार्च 2017 को गिरफ्तार किया था) ने बताया था कि, उसने अपने चचेरे भाई मिथुन मंडल के संग नकली सिम कार्ड इकट्ठा किए और इस काम से जुड़ गया। उसने कहा कि, हमारे आस—पास के लोग साइबर क्राइम करके अमीर हो गए। उसने अपने बयान में सिम कार्ड, मोबाइल और बहुत से फर्जी अकाउंट नंबरों के बारे में जानकारी दी थी। दिवाकर केवल 22 साल का था। उसके बयान ने इस क्राइम को लेकर कई सारे पहलुओं को सामने रखा था। इस क्राइम में पहले नॉर्मल काम हाते थे जैसे कि, कहीं से बैंक अकाउंट होल्डर्स के नाम और नंबर अरेंज किए जाते थे, फिर रैंडमली उन्हे कॉल करके उनके अकाउंट के बंद होने या एटीएम/ क्रेडिट कार्ड के ब्लॉक होने की बात कहकर किसी तरह से लोगों से डिटेल लेकर अकाउंट से पैसे उड़ा लिए जाते थे। इस क्राइम को करने वाले लोग गांव के ही दूसरे लोगों को कुछ लालच देकर उनके अकाउंट का इस्तेमाल उड़ाय गए पैसे डालने के लिए करते थे।
लेकिन बाद में बढ़ते डिजिटलाइजेशन के युग में इन लोगों ने खुद को इसके हिसाब से ढ़ाला। पहले अकाउंट तक सीमित रहने वाले ये लोग पेटीएम, फ्रीचार्ज, पे—पल जैसे एप्स के वैलेट से भी पैसे उड़ाने शुरू किए। इसके लिए वे बकायदा ट्रेनिंग लेते हैं इस काम में जो थोड़े पुराने हो गए वे नए लोगों को भर्ती कर उन्हें इस बाबत ट्रेनिंग भी दिया करते। पूरे राज्य में सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां जामताड़ा में ही हुईं हैं। लगभग 406 करमाटांड़ थाने की बात करें तो इस इलाके में कुल 150 गांव हैं, पुलिस के आंकड़ों की मानें तो 100 गांवों के युवा साइबर अपराध से जुड़े हैं। वहीं इस काम में 12 से 25 साल के करीब 80 प्रतिशत युवा इससे जुड़े हैं। पहले तो ये युवा सुनसान इलाकों से इस काम को अंजाम देते थे। लेकिन अब ये अपने घरों में बैठकर या किसी होटल से भी यह काम कर रहे हैं। वही काम होने के बाद ये लोग अपने सारे सबूत मिटा देते हैं। जिससे पुलिस के लिए इन्हें ट्रेस करना काफी मुश्किल हो जाता है।

कभी विद्यासागर की कर्मभूमि रही थी Jamtara
जामताड़ा आज भले ही साइबर क्राइम के गढ़ के नाम से जानी जाती हो। लेकिन कभी यह जगह ईश्वर चंद्र विद्यासागर की कर्मभूमि हुआ करती थी। इसी जगह पर उन्होंने जिंदगी के 18 साल गुजारे थे और समाज सेवा में अपना जीवन लगाया था। आज भी उनसे जुड़े कई सामान यहां हैं। लेकिन बावजूद इसके आज की पीढ़ी के लिए यह जगह किसी टूरिस्ट प्लेस में बदल नहीं सकी न लोगों का ध्यान यहां गया। लेकिन साइबर क्राइम के कारण यह जगह देश भर की पुलिस के यहां पहुंचने का कारण जरूर बन गई।
साइबर क्राइम के इस धंधे ने यहां के युवाओं को बिना मेहनत के ही अधिक पैसा कमाने का मौका दे दिया है। उनकी लाइफस्टाइल भी इसी से बदली है। पैदल चलने वाले लोग अचानक महंगी चमचमाती गाड़ियों में घूमने लगे हैं। फिशिंग के कारण आए इस बदलाव से यहां के परिवार व समाज के लोग भी अपने युवाओं के इस काम को करने का समर्थन करते हैं। यहां के लोग इस बात को अच्छी तरह समझ चुके हैं कि, इंडिया में जहां 29 मिलियन क्रेडिट कार्ड, 828 मिलियन डेबिट कार्ड और 105 बिलियन बैंक अकाउंट है। और तेजी से होते डिजिटलाइजेशन को सेफ बनाने का एक वीक मैकेनिज़्म है वहां फ़िशींग जैसा काम कभी थप्प नही होगा और शायद यही कारण है कि, इस अपराध को यहां का समाज क्राइम नहीं मानता । यहां के लोगो के बीच तो यह मैसेज फैला है कि, बच्चों को बेहतर पढ़ाई कराने से अच्छा है साइबर अपराधी बनाओं।