ये कहानी है एक ऐसे गांव की, जहां हर घर की पहचान उनकी छत पर बनी पानी की टंकी से होती है। आमतौर पर घरों की छतों पर काली या फिर सफेद पानी की टंकियां ही देखने को मिलती हैं। लेकिन पंजाब के उप्पलां गांव की टंकियां इन सबसे काफी अलग हैं। यहां के मकानों की छतों पर आम वाटर टैंक नहीं हैं, बल्कि कहीं शिप, तो कहीं हवाईजहाज, किसी की छत पर घोड़ा, तो किसी की छत पर गुलाब के आकार की टंकिया बनी हुई है।
दरअसल, इसके पीछे की खास वजह ये है कि, इस गांव के अधिकतर लोग पैसा कमाने लिए विदेशों में रहते है। गांव में खास तौर पर एनआरआईज की कोठियां की छतों पर इस तरह की टंकिया रखी है। जिसके चलते कोठी पर रखी जाने वाली टंकियों से ही उनकी पहचान की जाती हैं।
Uppalan Village- 71 साल पहले तरसेम सिंह के घर से शुरू हुई थी ये परंपरा
नामी परिवार अपने घरों पर तरह-तरह की टंकियां बनवा रहे हैं। कोई गुलाब का फूल बनाकर खुशहाली का संकेत देता है, तो कोई घोड़ा बनाकर रुआबदार परिवार का संदेश देता है। कोई शेर बनाकर अपनी बहादुरी जाहिर करता है और तो और कोई बाज बनाकर अपनी पहचान को दमदार रूप से प्रस्तुत करता है।
लेकिन यहां सबसे पुरानी हैं शिप के आकार में बनी तरसेम सिंह उप्पल के घर की टंकी। दरअसल, 71 साल के तरसेम सिंह जब पहली बार हांगकांग गए थे तो उन्होंने शिप से ही सफर किया था। अपने बेटों को अपनी पहली यात्रा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा था कि हम भी अपने घर पर शिप बनवाएंगे। और बस तभी साल 1995 में उन्होंने अपने घर की छत पर शिप के आकार की टंकी बनवा दी। जिसके बाद तो मानों ये एक परंपरा ही बन गई।
Uppalan Village- हर घर की छत पर बनी टंकी देती हैं कोई ना कोई संकेत
82 साल के गुरदेव सिंह द्वारा बनाया गया बब्बर शेर भी कई सालों तक चर्चा का विषय बना रहा। क्योंकि गुरदेव सिंह ने तो शेर पर खुद की ही मूरत बनाकर बिठा दी थी। क्योंकि गांव वालों का मानना है कि, शेर पर केवल शेरा वाली माता ही बैठ सकती हैं। जिसके चलते इस मूर्ती पर बहुत बवाल भी हुआ और आखिर में शेर के ऊपर से गरूदेव सिंह की मूर्ती को हटा लिया गया।
खैर हमारे देश में पंजाब का उपल्लां गांव इकलौता ऐसा गांव नहीं हैं जहां कुछ अलग और हटकर देखने को मिला हो। वैसे तो भारत खुद में ही एक अनोखा और अलग देश है जिसके बारे में जितनी जानकारी ली जाए उतनी कम है। लेकिन इसके अलावा भी यहां कई गांव और शहर हैं जहां कुछ न कुछ अलग अटपटा और निराला देखने को मिल ही जाता हैं।
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