जलेबी… नाम सुनते मुंह में पानी तो आ ही गया होगा। जलेबी गर्म हो और साथ में दही या फिर रबड़ी हो तो मजा ही आ जाए। हमारे देश के हर कोने में आप जलेबी का स्वाद चख सकते हैं तभी तो इसे देश की राष्ट्रीय मिठाई भी कहा जाता है। मिठाई की दुकान पर बैठा हलवाई अपने सामने चूल्हें पर कढ़ाई में गरम होते तेल में सूती के कपड़े से जलेबी छानते आपको देश के हर मार्केट में दिख जाएगा। जलेबी की सबसे बड़ी खासियत है इसका रस भरा स्वाद! मतलब उस स्वाद का तो कोई और जवाब ही नहीं है। भारत के कई हिस्सों में दिन की शुरूआत ही जलेबी से होती है। कोई इसे दूध के साथ खाता है तो कोई दही के साथ! वहीं अगर पूर्वांचल के इलाके में चले गए तो सुबह के नाश्ते के तौर में आपको यह पुरी और आलू की सब्जी के साथ हर होटल में खाने को मिलेगा। वहीं दही-चूड़ा के साथ भी जलेबी मिलना Must है।

वहीं देश के कई हिस्सों में इसे कई अलग-अलग चीजों के साथ भी खाया जाता है। जलेबी की सबसे ज्यादा अगर आपको बिक्री देखनी है तो यह आपको इंडिपेंडेंस डे और रिपब्लिक डे के दिन देखने को मिलेगा, देखा ही होगा आपने हर जगह ठेले पर जलेबियां छनते हुए। शायद इस कारण भी इसे राष्ट्रीय मिठाई घोषित कर दिखया गया होगा। इन बातों से यह साफ है कि जिलेबी एक दम देसी है। हालांकि, इसका कोई प्रमाण तो नहीं हैं, क्योंकि, बात अगर इसके इतिहास की करें तो ये इंडियन है या नहीं इस बात को लेकर बहस होती रहती है, और मार्केट में ये हल्ला ज्यादा है कि जिस जलेबी को हम और आप देसी मिठास देने वाली मिठाई मानते हैं और कभी-कभी इसे न पसंद करने वाले को यह तक कह देते हैं कि काहे के भारतीय हो जो जलेबी नहीं खाते… वो ही जलेबी इंडियन नहीं है। एक बार गूगल पर जलेबी लिख कर देखिए भतेरे आर्टिकल आपको पढ़ने को मिल जाएंगे जो यहीं दावा करते हैं। और बड़े-बड़े नामी गिरामी अखबार इन्हीं दावों को सच कहते हैं।
Jalebi देसी है या विदेशी, इसपर छिड़ सकती है जंग
लेकिन जलेबी क्या सच में भारतीय है या बाहरी, जिसे हमने अपने रंग में रंग दिया? तो चलिए आपको इससे भी रूबरू कराते हैं। दरअसल, जलेबी का सबसे पुराना लिंक जोड़ा जाता है अरेबिक शब्द जलाबिया या परसियन शब्द जलेबिया से आया हुआ है। ऐसा माना जाता है कि मेडाइवल पीरियड में अरेबिक या परसियन बोलने वाले तुर्की व्यापारियों के जरिए ही यह भारत में आया। कहा जाता है कि, उस समय वहां जलेबियां रमज़ान के समय बनाई जाती थी और गरीबों में बांटी जाती थी। जब यह भारत आई तो यहां बहुत जल्दी लोगों की पसंद बन गई। वहीं इस बारे में भी कुछ साक्ष्य मिलते हैं कि अफगानिस्तान में इसे मछली के साथ खाया जाता था और मछली की दुकानों पर यह बिका भी करती थी। लेकिन इन सब के बाद भी ऐसा कोई जिक्र नहीं है कि भारत में जलेबी बाहर से आई यह सिर्फ एक शब्द के अधार पर माना जाता है।
ऐसे कई लोग भी है जो इस बात को खारिज करते हैं। अचाया के 1994 के शोध की मानें तो उन्होंने कहा है कि भारत में जलेबी का पहला जिक्र 1450 ईसवी की जैन किताब जिनासूरा में मिलता है। इस किताब में जलेबी बनाने की जो रेसिपी बताई गई है वही आज पूरे भारत में देखने को मिलती है फिर चाहे वो शहर हो या गांव। वहीं पुणे के भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के इंडोलॉजिस्ट पीके गोडे के रिसर्च पेपर की बात करें तो संस्कृत किताब गुनियागुणाबोधिनी में जलेबी के बारे में लिखा गया है। यह किताब 1600 में लिखी गई है। इसमें इसे बनाने की विधि श्लोंको के रूप में बताई गई है और ये सारी विधियां आज के जलेबी बनाने के तरीके के जैसी हैं।

जलेबी को भारतीय मूल का मानने वाले इसे ‘जल-वल्लिका’ कहते हैं। वे मानते हैं कि यही बाद में जलेबी हुई और फिर इससे जलाबियां हुई। रस से परिपूर्ण होने की वजह से इसे संस्कृत में यह नाम मिला हैं। महाराष्ट्र में इसे जिलबी कहा जाता है और बंगाल में इसका उच्चारण जिलपी करते हैं। इस अधार पर कहा जाता है कि जलेबी मूल रूप से भारतीय मिठाई ही है।
Jalebi- जलाबिया और जलेबी बनाने के तरीके में फर्क
दो एक जैसे दिखने वाली चीजों के बीच का फर्क उसके बनाने के तरीके से समझा जा सकता है। बात अगर जलेबी की करें तो भारत में जलेबी कई तरीके से बनती है। हर जगह अलग टाइप की जलेबी मिलेगी। कॉमन रूप से मैदा की जलेबी ज्यादा खाई जाती है। लेकिन इसके अलावा कई वेरिएशन भी हैं जैसे जलेबा(भारी जलेबी) ये देशी घी में बनती है, जनगीरी, जो कि जलेबी से थोड़ी अलग है ये उड़द के दाल से बनती है, ज्यादातर साउथ में इसे लोग खाते हैं, जबकि, ईमर्ती — ये फूल के शेप में होती है।
जलेबी बनाने के लिए प्रयोग होने वाली चीजें भी भारत में अलग—अलग हैं। जैसे काजू की जलेबी, केले की जलेबी कहीं-कहीं पेठे की जलेबी भी बनती है। लेकिन तरीका वही है तेल में तली हुई जलेबी को चीनी की चासनी में डूबोकर फिर बाहर निकालना। कहीं-कहीं चासनी में इलाइची भी डाली जाती है। वहीं बात जलाबिया की करें तो इसमें कुछ हद तक तो प्रोसेस सेम है। लेकिन इसकी चासनी में नमक, लेमन जूस और रोज़वाटर मिलाया जाता है। तो वहीं इसका बैटर बनाने के लिए ईस्ट, सुगर, नमक, मैदा और बेकिंग पाउडर इस्तेमाल होता है।
भारतीय जलेबी का स्वाद एक दम मीठा होता है। चाहे इसे किसी तरह से बनाया जाए। बनाने का तरीका भी हर जगह सेम है। यह बहस तो जारी रहेगी कि, यह इंडियन है या नहीं। लेकिन कई भारतीय परंपरा में जिस तरह से जलेबी का स्वाद रचा बसा है उससे तो यही लगता है कि असल में जलेबी भारतीय उपमहाद्वीप की ही है।