19 फरवरी के दिन हर साल देशभर में, खासतौर पर महाराष्ट्र राज्य में भारत के वीर सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाई जाती है। माना जाता है कि, इसी दिन को 1627 या 30 के आसपास उनका जन्म हुआ था। शिवाजी का पूरा नाम शिवाजी भोंसले था। पिता शहाजी भोंसले दक्कन सल्तनत में एक मराठा जनरल थे, जो अक्सर राज के काम में घर से बाहर ही रहा करते थे। ऐसे में शिवाजी की मां जीजाबाई ने उनका पालन—पोषण किया। शिवाजी को भारत में कई लोग हिन्दू हृदय सम्राट मानते हैं तो कई लोग उन्होंने मराठी अस्मीता का सबसे बड़ा रक्षक और मराठा गौरव के रुप में देखते हैं। लेकिन शिवाजी इस सब से बढ़कर थे। वे किसी एक धर्म विशेष के नेता नहीं थे। वे भारत के हर उस व्यक्ति के नेता थे जो मुगलिया शासन के तले दबा हुआ था। शायद यही कारण था कि, उनके स्वराज के नारे ने हिन्दुस्तान के एक बड़े हिस्से के हिन्दू—मुस्लिम को एकजुट किया और इस तरह एक क्रूर मुगल शासन के विरूद्ध देश में मराठा शासन की नीव पड़ी।
मां के दिए संस्कार ने बनाया छत्रपति शिवाजी महाराज
शिवाजी ने जो कुछ भी सीखा अपनी मां से ही सीखा। पिता राजपाठ के कामों में हमेशा घर से बाहर रहा करते थे। ऐसे में जीजाबाई ने ही शिवाजी का पालन—पोषण किया। जीजाबाई सशक्त महिला थीं, उन्होंने शिवाजी को हिन्दू दर्शन, महाभारत, रामायण और धर्म की शिक्षा दी। शस्त्र के संग शास्त्र की शिक्षा दिलवाई। शिवाजी को योद्धा बनाने का पूरा श्रेय जीजाबाई को ही जाता है। माता और पत्नी के अलावा उनके अंदर और भी तमाम गुण थे। लेकिन वे खुद भी एक सक्षम योद्धा और प्रशासक थी। इस लिहाज से शौर्यता शिवाजी की रगों में भरी हुई थी। वह शिवाजी को हमेशा वीरता के किस्से सुनाकर उन्हें प्रेरित करती रहती थीं.

जब भी शिवाजी मुश्किल में होते, जीजाबाई उनकी मदद में खड़ी नज़र आती। पिता के बिना शिवाजी को बड़ा करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी, जिसको उन्होंने बखूबी निभाया। समर्थ गुरु रामदास की मदद से उन्होंने शिवाजी के पालन-पोषण में खुद को पूरी तरह झोंक दिया। साथ ही उनके अंदर वीरता के बीज बोती रहीं। उनकी ही परवरिश का नतीजा है कि, शिवाजी ने बहुत छोटी उम्र में ही मुगलों को चुनौती दी, जिसके कारण उनका नाम पूरे भारत में फेमस हो गया।
हिंद्वी स्वराज की स्थापना के लिए जब निकल पड़े छत्रपति शिवाजी महाराज
शिवाजी महाराज मराठों में पहले ऐसे व्यक्ति थे जिसने मुगल सम्राज्य के समानांतर अपना एक स्वतंत्र राज्य बनाने की ठानी और मराठा राज कायम भी किया। उन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही अपने दोस्तों के संग मिलकर हिंद्वी स्वराज स्थापित करने की प्रतिज्ञा की। बताया जाता है कि, महाराष्ट्र के मावल गांव में शिवाजी का दूसरा घर था। वे यहां के लोगों के बीच रहते, उठते—बैठते और फिर यहीं के अपने दोस्तों संग मिलकर उन्होंने अपनी सेना खड़ी की।
”हिंद्वी स्वराज की कल्पना और इसे मूर्त रुप देने की जहां तक बात रही, तो हिंद्वी का मतलब सिर्फ हिन्दू धर्म से नहीं था। इसमें उस समय के सभी मराठी लोग आते थे फिर चाहे वो हिन्दु हो, मुस्लिम हो या कोई और, हिंद्वी स्वराज मुगलों की मानसिक गुलामी से आजादी दिलाने का एक नारा था और इस राज्य की स्थापना मुगलों की गुलामी से निकले एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की है।”
1646 के आसपास ही अपने स्वराज के झंडे तले शिवाजी ने पुणे और इसके आसपास के किलों को अपने कब्जे में करना शुरू किया। वहीं उन्होंने अपने लिए एक किला भी बनवाना शुरू किया जिसे ‘रायगढ़’ के किले के नाम से आज लोग जानते हैं। उस समय शिवाजी ने दुश्मन से लड़ने के लिए एक टेकनिक विकसित की थी जिसे तैयार करने में उनके पिताजी का भी बहुत बड़ा रोल था। इस तकनीक को कहते हैं ‘गनीमीकावा’। यह एक ऐसी टेकनिक थी जिसमें दुश्मन से लड़ाई करने से पहले ही उसे ऐसी स्थिति में ला दिया जाता था कि, वो जंग हार जाए। शिवाजी बड़े स्तर पर युद्ध करते हुए तब दिखे जब उनके पिता को आदिल शाह ने कैद कर लिया। इसपर शिवाजी ने उस समय मुगल बादशाह शाहजहां को चिट्ठी लिखकर मुगलों के लिए काम करने की बात की। जिसके बाद शहजहां के दबाव के कारण आदिल शाह को शिवाजी के पिता को कैद से छोड़ना पड़ा। लेकिन शिवाजी को सिंह गढ़ का किला बीजापुर को सौंपना पड़ा। वहीं शिवाजी ने 7 सालों तक मुगलों के खिलाफ अपने अभियान को रोक दिया।
1656 में शिवाजी ने अपना रुख बदला और एक रणनीति बनाकर बिना ज्यादा खून खराबें के पुणे के करीब जवली को अपने अधीन कर लिया। इससे उत्साहित शिवाजी ने मुगलों के कब्जेवाले दक्कनी इलाके पर हमला कर दिया। लेकिन यह हमला शिवाजी और आम लोगों के लिए खतरा ले आया। दक्कन में उस समय औरंगजेब बीजापुर के खिलाफ अभियान चला रहा था। उसने आम लोगों और शिवाजी को मारने का फरमान दे दिया। कई गांव उजड़े और आम लोग मरे लेकिन शिवाजी औरंगजेब के हाथ नहीं आए। मानसुन के बाद मुगलों ने उनका पीछा छोड़ दिया। इधर बीजापुर ने मुगलों से समझौता कर लिया और बाद में शिवाजी को भी समझौता करना पड़ा। हालांकि दोनों को कभी एक दूसरे पर विश्वास नहीं हुआ। यही कारण है कि जब औरंगजेब आगरा की गद्दी के लिए तैयारी में लगा हुआ था तब भी उसे शिवाजी की चिंता लगी हुई थी।
अफजल खान और साहिस्ता खान की चुनौती
इधर शिवाजी आदिल खान को चुनौती देने लगे थे। भिवंडी से लेकर महाड़ तक के इलाके पर उनका राज हो गया था। शिवाजी को खत्म करने के लिए आदिल खान ने अफजल खान को भेजा। वो शिवाजी का पीछा करता रहा लेकिन शिवाजी को पकड़ नहीं सका। अंत में शिवाजी ने एक चाल चली और जैसे—तैसे दोनों की मुलाकात हुई। जहां अफजल खान ने शिवाजी पर हमला कर दिया। लेकिन पहले से तैयार शिवाजी बच गए और अफजल खान को उन्होंने मार दिया। इस जीत ने शिवाजी का कद बहुत ऊंचा कर दिया। लेकिन इसके बाद अगली चुनौती मुगल सेनापति साहिस्ता खान की थी जिसने पुणे के उस किले पर कब्जा कर लिया जहां शिवाजी का बचपन बीता था। लेकिन जिसका तीन साल तक इस किले पर कब्जा रहा। लेकिन इसी बीच शिवाजी ने उसके मन में अपने सर्जिकल स्ट्राइक से भय का माहौल बना दिया। एक रात शिवाजी अपने 400 सैनिकों के संग महल में घुसे। इस हमले में साहिस्ता खान ने किसी तरह अपनी जान बचाई लेकिन उसकी तीन उंगलियां कट गईं जो उसे जीवनभर याद रहीं।
साहिस्ता खान के हमले से शिवाजी के लोगों को बहुत नुकसान हुआ। जिसकी भरपाई के लिए शिवाजी ने सूरत पर हमले का प्लान बनाया। उन्होंने पहले तो सूरत के सूबेदार को पत्र लिखकर बस मुआवजा मांगा। लेकिन जब उधर से कोई जवाब नहीं आया तो शिवाजी ने हमला कर दिया। सूरत पर हमला मुगलों को सीधी चुनौती थी। ऐसे में औरंगजेब ने राजा जय सिंह को भारी सेना के संग शिवाजी से लड़ाई के लिए भेजा। दोनों ओर से युद्ध हुआ और आखिरकार यहां शिवाजी को समझौता करना पड़ा। इस समझौते में 23 किले शिवाजी को मुगलों को सौंपने पड़े। इसे पुरंदरपुर की संधि कहा जाता है। इस संधि के कारण ही शिवाजी को मुगलों के लिए बीजापुर से लड़ना पड़ा और इसी बीच औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा आने का न्योता दिया।

औरंगजेब की कैद से निकले और छत्रपति बने
औरंगजेब के बुलावे पर शिवाजी आगरा पहुंचे। लेकिन यहां उन्हें नज़र अंदाज कर दिया गया। दरबार में न सिर्फ उनका अपमान हुआ बल्कि औरंगजेब ने उनकी ओर ध्यान भी नहीं दिया। इस अपमान से लाल हुए शिवाजी भरे दरबार में पीठ दिखाते हुए निकल गए। औरंगजेब अब शिवाजी को कैद करने या मारने की सोचने लगा, लेकिन राम सिंह ने जिम्मेदारी लेकर उसे किसी तरह रोक दिया। इसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा के किले में नज़रबंद करवा दिया। इस दौरान शिवाजी बाहर निकलने के तरीके ढूंढते रहे और आखिरकार उन्हें यह मौका मिल ही गया। एक बिल्कुल नायाब तरीके से वे किले से बाहर निकल आए।
शिवाजी ने बीमारी का बहाना बनाया और कमरे में अकेले रहने लगे। इस बीच उन्होंने बीमारी से बचने के लिए ब्राह्मणों को फलों से भरी टोकरी भिजवानी शुरू कर दी और एक रात वो खुद ही इन टोकरियों में छिपकर किले से बाहर निकल आए। इस दौरान वे प्रयागराज गए वहां गंगा स्नान किया और फिर महाराजगंज पहुंचे। तीन सालों तक वो चुप रहे, लेकिन इसके बाद जो शिवाजी ने किया उससे औरंगजेब आग—बबूला हो गया। शिवाजी ने सूरत समेत अपने सारे 23 किले वापस जीत लिए। अपने आप को एक स्वतंत्र राजा बनवाने के लिए शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करवाया और छत्र धारण करके छत्रपति शिवाजी कहलाए।
शिवाजी का राज सूरत से लेकर पूरे पश्चिमी समुद्री तटो और दक्षिणी तटों से होते हुए जिंजी कर्नाटक तक फैला था। उनके राज में आज के 48 जिले आते थे। शिवाजी ने इसी दौरान भारत की पहली नौसेना तैयार की और इसी कारण से उन्हें फादर ऑफ इंडियन नेवी भी कहा जाता है। उस समय भारत के बाकी के राज्य केवल राज्य थे। लेकिन शिवाजी का राज्य ‘स्वराज’ था, खुद का राज था, इसी धरती के सपूत का राज था। यह उस काल का पहला राज था जो प्रजा के हितो और सेक्युलरिज्म के सिद्धांतो पर बना था। यह वह राज था जहां धर्म के नाम पर किसी से कोई भेद नहीं होता था। महिलाओं का सम्मान होता था। शिवाजी ने तो अपने सैनिकों को सख्त निर्देश दिए थे कि किसी भी धर्म की महिला का पूरा सम्मान होना चाहिए। शिवाजी का राज केवल फौज की बदौलत चलने वाला राज नहीं था यह वह राज था जहां नागरिकों का सम्मान था, धर्म को लेकर समानता थी, भाषा और संस्कृति का सम्मान था और शायद उनके इन्हीं कर्मो के कारण आज भी उन्हें पूरा देश शिवाजी नहीं बल्कि पूरे सम्मान के साथ ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ के नाम से याद करता है।