कच्चा मकान और पक्का मकान, इन दोनों में अंतर क्या है ये तो हम सब जानते हैं। कच्चा मकान जो मिट्टी, लकड़ी, घास फूस आदि से बना हो और पक्का मकान जो ईट ,सीमेंट, छड़ बालू से बना हो। आम तौर पर कच्चा मकान को गरीब लोगों से जोड़ा जाता है। भारत में आज भी आपको गांव में कच्चे घर मिल जाएंगे। सरकार की कई स्कीमें चल रहीं हैं लोगों को पक्का मकान मुहैया करने के लिए। लेकिन पक्का मकान कितना सुरक्षित है? अगर सही से बना हो तो पक्का मकान बड़े से बड़े भूकंप को खेल सकता है। लेकिन हाल के दिनों में कुछ प्राकृतिक आपदाएं ऐसी आईं है। जिसने इन घरों को भी असुरक्षित साबित किया है। हाल में आए निसर्ग तूफान की तबाही आपने देखीं हीं होगी, क्या कच्चा और क्या पक्का, सबको नुकसान हुआ। लेकिन हमारे देश में एक गांव ऐसा है जहां एक विशेष तरह के घर हैं, ये घर वैसे तो कच्चे मकान की श्रेणी में आते हैं, लेकिन जब मजबूती कि बात आती है तो ये घर बड़े से बड़े तूफान को भी झेल लेते हैं। ये घर अपनी मजबूती के साथ ही अपने खास वास्तुकला और बंवत के लिए भी प्रसिद्ध है।
आंध्र प्रदेश के चुतिल्लू गोल घर

आंध्र प्रदेश के मछुवारे अपने रहने के लिए एक खास तरह का घर बनाते हैं। जिन्हे चुतिल्लू घर या गोल घर कहा जाता है। ये घर गोल आकृति के होते हैं। आंध्रप्रदेश के ये खास घर यहीं के समुद्री वास्तुकला की अनोखी पहचान है। ये झोपड़ियां इतनी मजबूत होती है कि, इस क्षेत्र में आने वाली चक्रवाती हवाओं को आसानी से झेल लेती हैं। आपको यकीन नहीं है तो आपको बता दें कि 1975 के बाद के बाद से आंध्र प्रदेश ने 1977 के चक्रवात सहित 60 से ज्यादा चक्रवातों का सामना किया है और इस दौरान 10,000 के करीब लोग मरे और कई घर बर्बाद हो गए। लेकिन इन चक्रवातों में ये गोलघर ज्यों के त्यों खड़े रहे और कईयों की जान बचा ली।
जानकार बताते हैं कि चुतिल्लू घरों की अनूठी संरचना तेज हवाओं का सामना करती है और तटीय क्षेत्रों में रहने वाले कई मछुआरों की जिंदगी बचाती है। आयताकार घरों के विपरीत ये घर गोल होते हैं ऐसे बनाए जाते हैं कि हवा घर के अंदर से गुजरती है। आंध्रप्रदेश के विशाखापत्तनम जिले के यालामंचिल्ली प्रखंड के हरीपुरम गांव के लोग आज भी इस घर को बनाने की परंपरा को बनाए हुए हैं।
कैसे तैयार होते हैं चुतिल्लू गोल घर

चुतिल्लू गोल घर कच्चा मकान है यानि ये मुख्य रूप से प्रकृति से मिलने वाली चीजों से बनाए जाते हैं। इन घरों को कोब वाल तकनीक का यूज करके बनाया जाता है। इसके लिए मिट्टी, पुआल और पानी को मिलाकर मोटा घोल तैयार किया जाता है, इस दौरान मिट्टी के गाढ़ेपन का खास ख्याल रखा जाता है। इसके बाद इससे दीवार तैयार होती है। यह मिट्टी की दीवार कई चरणों में बनती है इसलिए इसमें थोड़ा ज्यादा समय लगता है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले 2 फीट की दीवार बनती है। फिर इसे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। अगले दिन दीवाल की दूसरी परत बनती है और इसी तरह बाकी की परते, फिर चूने से इसकी पुताई की जाती है।
आंध्रप्रदेश के तटीय इलाकों में पाए जाने वाले पलमिरा पाम के पेड़ों से रॉफ्टर तैयार होता है। जो इसकी दीवार को खड़ा करने में मदद देते है। चूतिल्लू घर की छत इसी पाम के पत्तों से बनता है। आम तौर पर कच्चे घरों की छतें खपरैल होती है, जबकि चूतिल्लू की छत लटकती हुई दिखती है। ये आमतौर पर जमीन को छूती हैं जिससे खराब मौसम में मिट्टी खराब होने से बच जाती है। इसकी छत 45 डिग्री पर होती है ताकि पानी घर में न घुसे। इसके आलावा अतरिक्त सुरक्षा के लिए घास फूस से इसे ढकने से पहले टिंबर और मिट्टी की एक परत बनाई जाती है।
चुतिल्लू घरों की तकनीक को शहरों तक लाने की जरूरत

चुतिल्लू घरों को दक्षिण चित्र संग्रहालय में जगह प्राप्त है। यह संग्रहालय दक्षिण कला, वास्तुकला, जीवन शैली, शिल्प और यहां की प्रदर्शन कला का केंद्र है। तमिलनाडु के मुथुकादु में स्थित इस संग्रहालय में दक्षिण भारत के 18 विरासत घरों को फिर से जीवंत किया है। हरिपुरम गाँव के निवासियों ने ही यहीं चुतिल्लू घर का निर्माण किया है। बेनी कुरियाकोज उन वास्तुकारों में से एक थे जिन्होंने संग्रहालय को डिजाइन किया था। वे लॉरी बेकर , जिन्हे वास्तुकला का गांधी कहा जाता है के पहले शिष्यों में से एक हैं। लॉरी की तरह ही कुरियाकोज मानते हैं कि मानते हैं कि घरों का निर्माण खास तौर पर तटीय इलाकों में मजबूत और टिकाऊ सामग्रियों से होना चाहिए। और ये सामग्रियां नेचर से ही मिल सकती हैं।
वे मानते हैं कि हमारी समस्याओं का समाधान प्रकृति के पास है। आपदाओं से निपटने के लिए प्रकृति में बेहतर तकनीक उपलब्ध है। चुतिल्लू गोल घर इसका एक बेहतरीन उदहारण है। जो हमें प्रकृति में समाधान ढूंढने और निर्माण के पारंपरिक तरीकों को अपनाने, आजमाने और इसमें शोध करने की प्रेरणा देता है। आज शहरी क्षेत्र अचानक आईं आपदाओं से परेशान हैं ऐसे में विचार और ज्ञान अगर गांव से निकल कर शहरों तक पहुंचे तो बहुत लाभ हो सकता है।