6 तारीख की रात कई भारतीय अपने मोबाइल से चिपके थे, 12 बजे के बाद अगला दिन यानि 7 तारीख और समय तय था कि एक बहुत बड़ा काम होने को है। एक ऐसा सपना पूरा होने को था जिसके पिछे 11 सालों की मेहनत लगी थी। सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन आखिर के कुछ मिनटों में कुछ खतरनाक हुआ लगा, जैसे कुछ दिल का बहुत करीबी हमसे हमेशा के लिए दूर चला गया हो।
हम बात चंद्रयान-2 की कर रहे हैं। बाकी दुनिया की नज़र में यह मिशन भारत का एक स्पेश मिशन था। जिसका मकसद चंद्रमा की दक्षिणी ध्रुव पर लेडर और रोवर उतारना था। लेकिन शायद आम भारतीयों की नज़रों से देंखें तो चंद्रयान सिर्फ मिशन भर नहीं था। यह हमारे देश की आन, बान शान था। जो चांद पर भारत का परचम लहराने को उतर रहा था। शायद भारत के लिए चंद्रयान-2 किसी अपने बच्चे से कम नहीं था। जिसे कई वैज्ञानिकों ने पूरी तनमयता से और लगन से बनाया था और जिसे 130 करोड़ भारतीयों ने अपने दिल में जगह दी थी।
चंद्रयान-2: सिर्फ दो किलोमीटर की दूरी
देर रात करीब 1.51 बजे चंद्रमा की सतह से 2.1 किमी दूर इसरो का लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया। यह कुछ कुछ वैसा ही झटका था। जैसा ही हाल ही में वर्ल्ड कप में महेंद्र सिंह धोनी रन आउट हुए थे, तब देश के खेल प्रेमियों को लगा था। यानि फासला सिर्फ दो कदमों का था और मंजिल हमसे दूर हो गई। लेकिन यहां यह बात जानने की बहुत जरूरत है कि यह एक ऐसा मिशन था जिसपर अगर किसी देश के वैज्ञानिको ने काम कर रहे थे तो सिर्फ भारत के।
शायद यही कारण है कि इसरो पहले से ही अंतिम 15 मिनट को बेहद खतरनाक और महत्वपूर्ण मान रखा था। चंद्रयान-2 मिशन को पूरी तरह से फेल नहीं कहा जा सकता है, इसलिए भारत की इस स्पेस एजेंसी के तमाम लोग बधाई के पात्र हैं।
चंद्रयान-2: 15 खतरनाक मिनट जिसका डर था
इसरो ने विक्रम की लैंडिंग को लेकर शुरुआती 15 मिनटों को बेहद खतरनाक माना था। शुरुआत में सब कुछ ठीक रहा वहीं विक्रम की गति को भी काफी हद तक कम कर लिया गया। चारों इंजन भी सही से काम कर रहे थे। लेकिन बाद में अचानक से विक्रम से मिलने वाले डाटा रुक गए, और इसरो वैज्ञानिकों का डर सही साबित हुआ। इसके बाद इसरो चेयरमेन ने अपनी घोषणा में बेहद दुखी मन से कहा कि विक्रम की लैंडिंग जैसी होनी चाहिए थी नहीं हो सकी।
चंद्रयान-2: आखिर हुआ क्या होगा?
विक्रम से संपर्क टूटने और उसकी लैंडिंग की बात जब हो रही है तो सबके मन में एक सवाल है कि आखिर हुआ क्या होगा। आखिर विक्रम आराम से लैडिंग करते समय कैसे अचानक हमारे संपर्क से गायब हो गया? चांद पर विक्रम के संग हुआ क्या होगा? इस सवालों के जवाब तो नहीं हैं लेकिन कयासे बहुत सी लग रही हैं। ऐसा माना जा रहा है कि विक्रम को जिस गति और जिस दिशा की तरफ से चांद की सतह पर उतरना था वह संभव नहीं हो सका हो और वह पथ भटक गया हों। ऐसे में जब वह चांद की सतह पर उतरा होगा तो चांद की सतह से उसको जबरदस्त टक्कर मिली होगी।
इस टक्कर में कारण हीं शायद विक्रम अपने अंदर लगे कंप्यूटर्स से निर्देश पा भी रहा होगा तो भी वह शायद रोवर प्रज्ञान को चांद की सतह पर न उतार सके। दरअसल विक्रम को चांद पर मौजूद दो क्रेटर्स के बीच के मैदान में उतरना था। इसके लिए उसको उतरने से पहले मैपिंग करनी थी और सही जगह चुननी थी। मिशन कंट्रोल रूम में लगे ट्रेक डाटा पर गौर करे तो पता चलता है कि आखिरी समय में विक्रम अपने लैंडिंग पथ से भटक गया था। लैंडिंग पथ से भटक जाने पर मुमकिन है कि विक्रम की लैंडिंग किसी ऐसे क्रेटर में हो गई हो जिसकी वजह से वह खुद को संभाल नहीं पाया हो और कहीं फंस गया हो।
चंद्रयान-2: क्या फेल हो गया मिशन
चंद्रयान-2 की कुल लागत 978 करोड़ रुपये थी। भले ही लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया हो, लेकिन चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अपना काम कर रहा है। दुनिया के कुछ देश मानते हैं कि चंद्रयान-2 फेल हो गया। लेकिन ऐसा नहीं है। चंद्रयान-2 अपने मिशन के अंतिम मोड़ पर भले न पहुंच सका हो लेकिन उसने अपना 95 प्रतिशत काम तो पूरा कर ही दिया है। पूर्व इसरो चेयरमैन जी माधवन नायर की माने तो लैंड न होने के बावजूद चंद्रयान-2 ने अपने 95 प्रतिशत उद्देश्यों को पूरा कर लिया है। माधवन स्पेस डिपार्टमेंट में सचिव और स्पेस कमिशन में चेयरमैन भी रह चुके हैं।
पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी इसरो के वैज्ञानिकों को इससे निराश नहीं होने को कहा है। वहीं देशभर के लोग भी इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दे रहे हैं कि उन्होंने इतने बड़े प्रोजेक्ट को उसके अंजाम के इतने नजदीक तक पहुंचा। देश का हर नागरिक अपने इसरो के वैज्ञानिकों से यहीं कह रहा है कि विक्रम से संपर्क भले ही टूटा हो, लेकिन अभी हमारे सपने जिंदा हैं। इस मिशन में आधी सफलता के बाद भी भारत उन देशों में शामिल हो गया है जिसने चांद और मार्स दोनों की कक्षा में ऑर्बिटर स्थापित किए हैं, इस लिस्ट में तो चीन भी नहीं है।
दुनिया के सारे देश पहले अटेंम्ट में फेल हुए हैं लेकिन भारत का चंद्रयान पहली बार में 95 प्रतिशत सफल हुआ है। यह बहुत बड़ी बात है कि चंद्रयान2 के जरिए इसरों के वैज्ञानिक करीब 3लाख 80 हजार कि.मी का सफर तय कर लेंडर को चंद की सतह से 2 किलोमीटर पहले तक पहुंचा सकें। सबसे बड़ी बात यह है कि हम यहां रुकने वाले नहीं हैं, हम फिर एक नया चंद्रयान लेकर चंद तक पहुंचेंगे और इस बार चांद पर अपना झंडा जरूर गाड़ेगें।