‘गोबर’, यह शब्द भले हो लेकिन अपने आप में यह भी एक वाक्य है। अब जैसे किसी को बताना हो कि, तुम तो एकदम बेकार आदमी हो। तो इतना बोलने से अच्छा है कि, सीधे—सीधे बोल दो पूरे गोबर ही हो बे! लेकिन गोबर का मतलब भले ही आज हम बेकार, बिना किसी काम का या गंदी चीज से समझे लेकिन असल में यह बड़े काम की चीज है और उसमें भी गोबर अगर गाय का हो तो फिर आपको कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जो दावा करेंगे कि, इसके चमत्कारी गुणों की जानकारी रखने में उन्होंने पीएचडी की है। वैसे आजकल गाय बहुत ट्रेंड में भी है और साथ में ट्रेंड में है ‘पंचगव्य’। यानि गाय से मिलने वाली विशेष पांच चीजें। जिसमें गोबर भी इंक्लूड है। वैसे हमने और आपने भारतीय संस्कृति में गोबर के कई सांस्कृतिक महत्व के बारे में सुना ही होगा।
जैसे पूजा पाठ में गाय का गोबर, त्योहारों पर गोबर से कच्चे घर की लीपाई—पोताई और बहुत कुछ। इन्हीं संस्कृतियों के कारण ही शायद आपको भी पहली बार कई जगहों के चक्कर लगाने पड़े होंगे या फिर घर पर अगर गाय होगी तो उसके गोबर करने का इंतजार करना पड़ा होगा। वैसे ऐसे हाल में ही गोबर की असल महत्ता समझ आती है। यह वही समय होता है जब न चाहते हुए भी आपने पहली बार हाथ से गोबर उठाया होगा। खैर गोबर का यूज सिर्फ धार्मिक कामों में नहीं है इसका और भी यूज है। जैसे कि उपले बनाना… जिसे कई जगहों पर चीपरी भी कहते हैं। उपले आग जलाने के लिए यूज होते हैं और उसी आग पर खाना बनता है। आमतौर पर गांव की ओर जाते समय आपने सड़कों के किनारे एक स्पेसिफिक साइज और शेप में गोबर की रंग की चीज रखी हुई देखी होगी। यह वहीं उपले होते हैं जिसे सूखने के लिए रखा गया होता है।
वैसे गोबर और उपलों को लेकर हमारे देश में कई अनोखे कल्चर भी देखने को मिलते हैं। इसमें गोबर फाइटिंग से लेकर गोबर बाथ तक का कल्चर है, जो अपने आप में बेहद ही यूनिक हैं। इन कल्चर्स के पीछे कई तरह की धारणाएं और मान्यताएं हैं। जिनमें लोगों का आज भी बहुत गहरा विश्वास है और इसी कारण आज भी ये अनोखी प्रथाएं फॉलों की जा रही हैं। हर साल जब ये प्रथाएं होती हैं तो देशी से लेकर विदेशी मीडिया में इनकी तस्वीरें छाईं रहती हैं।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की गोबर फाइट
उगाडी पर्व के ठीक एक दिन पहले हर साल एक वीडियो वायरल होता है। इस वीडियो को देखने से लगता है कि, दो गुटों के बीच में जमकर लड़ाई हो रही है और शायद दोनों ओर से पत्थरबाजी भी हो रही है। लेकिन असल में यह कोई लड़ाई और दंगा नहीं है। न ही इसमें फेंके जाने वाली कोई भी चीज़ पत्थर है। यह एक पुरानी रिचुअल का हिस्सा है जिसे लोग आज भी फॉलो कर रहे हैं। यह प्रथा आंध्र प्रदेश के कुरनौल डिस्ट्रीक्ट के असपरी मंडल के किरूपल्ला गांव में मनाई जाती है। इस रिचुअल में लोगों के दो गुट बनते हैं और दोनों एक दूसरे पर गोबर के उपले फेंकते हैं। अब सवाल यह होगा कि ऐसा क्यों भला, तो आपको बता दें कि, इसके पीछे एक पौराणिक कहानी बताई जाती है।

दरअसल कहा जाता है कि, यह परंपरा भगवान वीरभद्र के समय से चली आ रही है। कहा जाता है कि, वीरभद्र कालीदेवी से शादी करना चाहते थे। बारात भी पहुंची थी। लेकिन उसी समय एक खबर आई की वीरभद्र शादी नहीं कर सकते क्योंकि बुजुर्ग राजी नहीं थे। ऐसे में बाराती पक्ष और लड़की पक्ष के बीच जमकर झगड़ा हुआ और उस समय दोनों ओर से उपले एक दूसरे पर फेंके गए। हालांकि इसके बाद शांति स्थापित की गई और वीरभद्र की शादी काली देवी से हुई।
तब से यह परंपरा चली आ रही है। लोगों के अंदर विश्वास है कि, इस तरह की गोबर फाइट से भगवान वीरभद्र उनसे खुश होंगे और उनकी मनोकामनाओं को पूरा करेंगे। इसी एक मान्यता के चलते पुपाल्लादोद्डी, चेनमपल्ली, अल्लारूद्दीन, कल्लापरी, वेगालेयादोद्डी, कारूमंशी और बिल्लेक्ल्यू में लोग इस प्रथा को फॉलो करते हैं। इस दौरान लोगों की यह कोशिश रहती है कि, उपलें मंदिर पर जाकर गिरे।
तमिलनाडू का गोबर फेस्टिवल
आंध्र प्रदेश की तरह ही तमिलनाडू में भी गाय के गोबर से जुड़ा एक फेस्टिवल होता है। यहां गाय के गोबर में कूदने और उसे एक दूसरे के शरीर पर मलने का रिवाज है। यह एक तरह की होली ही है जिसमें गोबर का सबसे बड़ा रोल है। वैसे अंग्रेजी के चैनल्स इसके लिए ‘काउडंग बाथ’ शब्द का प्रयोग करते हैं। यहां एक गांव है जिसका नाम है गोमातापुरम। इस गांव में गोबर बाथ का रिचुअल ‘गोरे हब्बा फेस्टिवल’ के दौरान फॉलो किया जाता है। यह त्योहार दिवाली के ठीक पहले आता है और लोग इस दिन गोबर बाथ लेते हैं। उनका मानना है कि, गोबर समृद्धि लेकर आता है।

इस रिचुअल के पीछे एक कहानी भी है। कहा जाता है कि, यहां एक संत हुए थे जिनके मरने के बाद उनके शरीर के अवशेष एक गड्ढ़े में रख दिए गए। माना जाता है कि, वो अवशेष बाद में एक शिवलिंग में बदल गए। जो गायों के गोबर से ढक गया था। ऐसे में यह मान्यता आई कि, गांव के देवता के लिए यह गोबर भी महत्वपूर्ण है। जिसके कारण यह प्रथा शुरू हुई।
इस दिन लोग गोबर में खेलते हैं, इसे अपने शरीर पर मलते हैं। वे कहते हैं कि, गोबर नेचुरल है और इससे कोई बीमारी नहीं होती। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि, अगर इससे बीमारी होगी भी तो हमारे भगवान हमे कुछ नहीं होने देंगे।
बच्चों को गोबर में फेंकते हैं मां—बाप
मां—बाप हमेशा अपने बच्चों के लिए हमेशा अच्छा ही सोचते हैं। लेकिन कभी—कभी वे अच्छा सोचने के वक्त लॉजिक से ज्यादा मान्यताओं को त्तवज्जों देते हैं। जैसे कि, मध्यप्रदेश के छोटे से गांव बेतुल के मां बाप अपने बच्चों के संग करते हैं। वे अपने बच्चों की बेहतरी के लिए, उन्हे निरोगी रखने की कामना से ओर उनकी अच्छी किस्मत के लिए गोबर के ढ़ेर में फेंकते हैं, और उन्हें गोबर पर लेटाते हैं। गाय के गोबर के ये ढ़ेर फूलों से ढ़के हुए होते हैं। यहां पर यह परंपरा बहुत पुरानी है और हर साल दिवाली के अगले दिन लोगों के द्वारा फॉलो की जाती है। यानि गोबर्धन पूजा के दिन। एक के बाद एक हर बच्चे को गोबर पर लोटाया जाता है। लोग बताते हैं कि, ऐसा करने से उनके बच्चों को फायदा हुआ है और इसी कारण यह आज भी फॉलो होता आ रहा है।

बता दें कि, गाय और गोबर का हमारी संस्कृति में एक अहम स्थान है। आज के युग में गाय के प्रोडक्टस को लेकर साइंस भी कई बातों पर मुहर लगा चुका है। लेकिन इस तरह की कई सारी प्रथाएं जो मान्यताओं पर आधारित हैं उनके बारे में कोई दावा नही किया जा सकता। आपको जानकर हैरानी होगी कि, आंध्रा में गोबर फाइट के खेल से गुड लक आए या न आए लेकिन हर साल कई सारे लोग चोटिल जरूर हो जाते हैं। ऐसे में मान्यताओं पर आंख मूंद कर भरोसा करना कितना सही है इसके बारे में हर इंसान को अपने तर्क और बुद्धि से सोचना चाहिए।