सब जानते हैं, हमारे इतिहास में ऐसी न जानें कितनी अनसुलझी कहानियां हैं. जो इतिहास के पन्नों में ही दफ्न हैं, जिन्हें न तो लोग बेहतर तरीके से समझ पाये हैं न ही जान पाए हैं, लेकिन अलग अलग तरह से पेश करते चले आ रहे हैं. इसी तरह अब से कुछ आठ साल पहले मैंने एक कहानी सुनी थी और ये कहानी हमारे गांव के चौपाल पर सुनाई जा रही थी. जहां कुछ बड़े लोग हम गांव के बच्चों को इतिहास से लेकर देश दुनिया से परिचित कराते थे और उस दिन उस कहानी के किरदार थे गुमनामी बाबा.
उन्होंने बताया की अयोध्या के राम भवन में रहने वाले गुमनामी बाबा को साधारण बाबा नहीं थे. वो आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस थे और उनकी बातें सुनकर इतना यकीन करना मुश्किल था की वो जो कुछ कह रहे हैं वो सही है या नहीं इतना तो मालूम नहीं था. लेकिन इतिहास में हमने पढ़ा था की नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत को 1945 में विमान हादसे में हो गई थी. ऐसे में सुभाष चंद्र बोस का गुमनामी बाबा बनकर रहने का कोई मतलब नहीं बनता. जब चीजें समझ में आने लगी तो पढ़ना शुरु किया और पता चला की जिस समय सारा देश अपने वीर सैनिकों और स्वतंत्रता सेनानियों की अमिट कहानियों में उलझा आगे बढ़ रहा था. उस समय उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवनजी का आगमन हुआ था. शुरुवाती समय में भगवनजी अयोध्या की लालकोठी में बतौर किराएदार रहा करते थे और उसके कुछ समय बाद ही वो वहां की बस्ती में जाकर रहने लगे. हालांकि भगवनजी को बस्ती उतनी रास नहीं आई और भगवनजी ने वापस अयोध्या लौटने का फैसला किया और अयोध्या जाकर भगवनजी पंडित रामकिशोर पंडा के घर रहने लगे. लेकिन वहां भी उन्हें रहना पंसद नहीं आया जिसके बाद भगवनजी अयोध्या सब्जी मंडी के बीचो-बीच स्थित लखनऊवा हाता में जाकर रहने लगे.
गुमनामी बाबा को लोग भगवनजी के नाम से भी जानते थे!
भगवनजी को समय-समय पर जगह इसलिए बदलनी पड़ रही थी, क्योंकि जो भी उनसे मिलता था वो उनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस की छाप मानता था. यही वजह थी भगवनजी लोगों से इतना बचने लगे की उन्हें लोग गुमनामी बाबा के नाम से जानने लगे. इस दौरान उनकी एक सेविका सरस्वती देवी जिन्हें वो जगदम्बे के नाम से बुलाया करते थे. उनकी देखभाल करती थी. सरस्वती देवी नेपाल के राजघराने से थी.
इधर वक्त बीतता गया और लोग गुमनामी बाबा को सुभाष चंद्र बोस मानने लगे. इस दौरान गुमनामी बाबा फैजाबाद के राम भवन के पीछे बने दो कमरे के मकान में रहने लगे और लोगों में सुगबुगाहट बढ़ती चली गई की गुमनामी बाबा ही आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं.
हालांकि हमारे इतिहास में नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में चुकी थी. ऐसे में 16 सितंबर 1985 को जब गुमनामी बाबा की मौत की खबर पूरे देश में फैली तो लोगों का जमावड़ा लगना शुरु हो गया. लोगों में सबसे ज्यादा कौतूहल इस बात की थी की गुमनामी बाबा दिखते कैसे हैं. इस दौरान स्थानिय प्रशासन ने भी अपनी सारी तैयारियां कर ली थी और बेहद गुप्त तरीके से गुमनामी बाबा के शरीर का सरयू नदी के किनारे गुप्ता घाट पर चुपचाप अंतिम संस्कार कर दिया गया. लेकिन उसके बाद जो अब तक कयासें गुमनामी बाबा को लेकर लगाई जा रही थी, उन्होंने भी जोर पकड़ना शुरु कर दिया था. क्योंकि गुमनामी बाबा की मौत के बाद जब इनके कमरे से बरामद सामान को करीने से देखा गया तो अधिकरतर लोगों को यकीन हो गया की ये कोई साधारण बाबा नहीं थे.
कमरे में मिली चीज़ों ने बयां की, हकीकत
यही वजह रही की उनके कमरे से बरामद चीजों ने भी जगजाहिर कर दिया की गुमनामी की चादर ओढ़े, गुमनाम जिंदगी जीता ये इंसान कोई साधारण इंसान नहीं था. उनके कमरे से बरामद दुनिया भर के नामचीन अखबार, पत्रिकाएँ, 555 सिगरेट और अंग्रेजीं ब्रान्डेड शराब की बोतलें, इसके अलावा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता के साथ परिवार की निजी तस्वीरें, कलकत्ता में हर साल 23 जनवरी को मनाए जाने वाला सुभाष चंद्र बोस के जन्मोत्सव की तस्वीरें, लीला रॉय की मृत्यु पर हुई शोक सभाओं की तस्वीरें, नेताजी की तरह दर्जनों गोल चश्मे, रोलेक्स की जेब घड़ी, आज़ाद हिंद फ़ौज की यूनिफॉर्म, कलकत्ता के दैनिक ‘आनंद बाज़ार पत्रिका’ में 24 किस्तों में छपी खबर ताइहोकू विमान दुर्घटना की पेपर कटिंग्स इसके साथ-साथ जर्मनी और अंग्रेजी साहित्य की ढ़ेरों किताबें….इसके अलावा इसी तरह न जाने कितना सामान गुमनामी बाबा के कमरों से बरामद हुआ था. हालांकि किसी को ये नहीं मालूम की 1970 में ये गुमनामी बाबा आखिर फैज़ाबाद-बस्ती के इलाके में आए कहां से.
हैंडराइटिंग स्पेशलिस्ट कार्ल बैगगेट ने किया दावा, सभी खत एक ही इंसान के
हाल ही में एक किताब में दावा किया गया की गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे और ये दावा अमेरिका के हैंडराइटिंग स्पेशलिस्ट कार्ल बैगगेट ने किया है. आपको बता दें की कार्ल को डॉक्यूमेंट पहचानने का 40 साल का अनुभव है. अब तक दस्तावेज जांचने के लगभग 5000 से ज्यादा मामलों में उनकी मदद ली जा चुकी है. कार्ल अपनी पहली नजर में हैंडराइटिंग जांच लेते हैं. कार्ल को किताब कमनड्रम: सुभाष चंद्र बोसेज़ लाइफ आफ्टर डेथ से जुड़े दस्तावेजों के दो सेट दिए गए थे. इस दौरान कार्ल को नहीं बताया गया था कि, ये किसकी हैंडराइटिंग है और कार्ल इस दौरान कार्ल ने दोनों सेट की जांच की और पाया कि ये एक ही शख्स की हैंडराइटिंग है. उन्होंने दोनों दस्तावेजों की जांच करने के बाद एक रिपोर्ट भी दी, जिस पर उन्होंने अपना साईन किया और लिखा की गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस कोई दो शख्स नहीं थे, क्योंकि दोनों दस्तावेजों पर एक ही शख्स द्वारा लिखा गया है.
कार्ल को अमेरिकन ब्यूरो ऑफ डॉक्यूमेंट एग्जामिनरर्स ने भी प्रमाणित किया है. कार्ल ने जिन पत्रों की जांच की वो चंद्रचूड़ घोष और अनुज धर की हाल ही में आई किताब कमनड्रम: सुभाष चंद्र बोसेज़ लाइफ आफ्टर डेथ से लिया गया है. आपको बता दूं की गुमनामी बाबा ने 1962 से लेकर 1985 के बीच में अपने सबसे करीबी पवित्र मोहन रॉय को 130 पत्र लिखे. किताब में दावा किया गया है कि रॉय काफी समय तक गुमनामी बाबा के संपर्क में रहे. इस किताब में लगभग हजार पेजों के दस्तावेजों को शामिल किया गया है. ये दस्तावेज किताब के लेखकों को जस्टिस मुखर्जी कमिटी से आरटीआइ के जरिए मिले हैं.
अब हकीकत क्या है इतना इस बारे में खुद से बताना मुश्किल है. लेकिन इन तथ्यों के आधार पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अस्तित्व को नकारा भी नहीं जा सकता