आज हमारा देश शहीदी दिवस मना रहा है। हमारे देश में 5 दिन ऐसे हैं जिन्हें शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। ये दिन हैं 30 जनवरी (गांधीजी की पुण्यतिथि), 23 मार्च (भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी), 21 अक्टूबर (पुलिस शहीदी दिवस), 17 नवंबर (लाला लाजपत राय की पुण्य तिथि), 19 नवंबर (रानी लक्ष्मी बाई की जयंती)। आज हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्य तिथि है। 30 जनवरी के दिन साल 1948 में दिल्ली के बिड़ला हाउस में नाथू राम गोडसे ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी। लेकिन कहते हैं न कि, महान लोगों की यही खासियत होती है की भले उनके शरीर को कोई मिटा दे, लेकिन उनके विचार जो दुनिया के भले के लिए हैं वो कोई कभी नहीं मिटा सकता। वे विचार हमेशा दुनिया में बने रहते हैं और दुनिया को सही रास्ता दिखाते रहते हैं। उनके विचारों पर आने वाली पीढ़ी अपने जीवन को जीने की कोशिश करती है, उस पर रिसर्च करती है और फिर उसमें समय के अनुसार कुछ मोडिफिकेशन भी ले आती है ।
बात महात्मा गांधी और उनके विचारों की आई है तो आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं…. आपको वो दिन तो याद ही होगें जब स्कूलों में हमें गांधी जी के तीन बंदरों की कहानी सुनाई जाती थी। एक बंदर कहता था बुरा मत देखो…. दूसरा कहता था बुरा मत सुनो और तीसरा कहता था कि बुरा मत बोलो। इन तीनों बंदरों के बारे में हमें इसलिए पढ़ाया गया ताकि, हम गांधी के उन विचारों को जाने और इनकी गहराई को समझे। क्योंकि हमें ही तो आगे देश और समाज को चलाना है। गांधी अक्सर इन तीन बंदरों की मूर्तियां अपने पास रखते थे और कई बार लोगों के सवालों के जवाब में इन्हीं बंदरों की ओर ईशारा करके बिना कुछ बोले ही जवाब दे दिया करते थे। लेकिन क्या आपके मन में कभी सवाल आया है कि आखिर ये तीन बंदरों की थ्योरी है क्या…? और गांधी जी को यह थ्योरी कहां से मिली। क्या यह उनकी अपनी फिलॉस्फी थी या उन्होंने कही और से इस फिलॉस्फी को अडॉप्ट किया था?
गांधी के तीन बंदर

जैसा की हम सब जानते थे कि गांधी के विचार मुख्य रूप से सनातन धर्म से लिए हुए होते थे। लेकिन ऐसा नहीं है कि वे दुनिया के किसी अन्य धर्म के बारे में नहीं जानते थे। एक महान आदमी की सबसे बड़ी खासियत यही होती है कि, वो कभी पढ़ना और सीखना नहीं छोड़ता। गांधी भी ऐसे ही थे। ऐसा कहा जा सकता है कि अपनी इस आदत के कारण ही उनको ‘तीन बंदरों’ वाली थ्योरी मिली और उन्होंने इसे अपनी जिंदगी में आत्मसात कर लिया। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि गांधी जी से पहले बंदरों की यह फिलॉस्फी कही नहीं थी। तीन बंदरों की यह थ्योरी पूरे एशिया के कल्चर में देखने को मिलती है।
जापानी और चीनी कल्चर के तीन बंदर

गांधी जिन तीन बंदरों की बात करते थे उनके बारे में सबसे ज्यादा कहीं अगर जिक्र मिलता है तो जपानी कल्चर में मिलता है। जापानी संस्कृति में शिंटो संप्रदाय तीन बंदरों के इन समूहों को काफी पवित्र मानता है। इनकी संस्कृति में इन बंदरों को मिजारू, किकाजारू और इवाजारू नाम से जाना जाता है। लाफकेडियो हर्न ने इन्हें रहस्यवादी बंदर बताया है। ये तीनों बंदर की मूर्तियां जापानी मकाक नाम के बंदरों की हैं जिन्हें स्नो मंकी के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन असल में गांधी जी के तीन बंदरों की फिलॉस्फी मूल रूप से जापान की भी नहीं है। ऐसा माना जाता है कि यह चीन से जापान पहुंची है। बंदरों का यह सिंबल चीन के कन्फ्यूशियस धर्म के आचार संहिता यानी यूनिवर्सल कोड का हिस्सा है। जिसमें बंदरों का उपयोग मनुष्य के लाइफ साइकिल को दिखाने के लिए किया गया है। तेंदाई-बौद्ध लीजेंड के जरिए यह 8वीं शताब्दी में जापान पहुंची थी।
जपानी संस्कृति में इन बंदरों को हिंट शिंटो मंदिरों का संदेशवाहक माना जाता है, जिसका संबंध तेंदाई बौद्ध धर्म से भी है। यहां एक महत्वपूर्ण त्योहार भी है जो बाहर साल में एक बार मनाया जाता है। कुछ अन्य जापानी मान्यताओं के अनुसार ये बंदर सांशी जो हमारे शरीर के अंदर रहने वाले तीन तरह के जीव हैं, उनको बताते हैं कि वे इंसान के बुरे कार्यों : जो उसके देखने, बोलने और सुनने से जुड़ी होती हैं, का एक रिकार्ड तैयार करें। सांसी अच्छे और विशेष रूप से बुरे कर्मों पर नज़र रखते हैं। हर 60 दिनों में, ये संशी शरीर छोड़कर भगवान के पास जाकर आदमी के बुरे कर्मो का डेटा देता है।
कहीं-कहीं इन तीन बंदरों की टोली में वेरिएशन दिखता है। कहीं— कहीं आपको चार बंदर भी देखने को मिल सकते हैं। चौथे बंदर को लेकर दो तरह के वेरिएशन हैं। एक यह कि एक आपको अपने प्राइवेट पार्ट को ढ़कते हुए दिखाई देगा, जिसका मतलब है ‘कुछ भी बुरा न करों…. और दूसरा वाला अपने नाक को कवर किए हुए दिख सकता है। जिसका मतलब होता है कुछ भी बुरा मत सूंघो।
ओशो रजनीश और तीन बंदर

ओशों रजनीश के बारे में कौन नहीं जानता, आज भी उनके फॉलोवर पूरी दुनिया में हैं। तीन बंदरों की इस फिलॉस्फी को लेकर उनकी अपनी एक थ्योरी थी। वे मानते थे कि यह मूल रुप से भारतीय परंपरा से जुड़ी हुई। रजनीश की मानें तो भारतीय संस्कृति में तीन नहीं बल्कि चार बंदरों की बात होती है। चौथा बंदर अपने प्राइवेट पार्ट को ढ़के हुए है। लेकिन बुद्धिस्थ मान्यता से अलग हिन्दू फिलॉस्फी में इसका मतलब कुछ थोड़ा अलग है। रजनीश के अनुसार चौथा बंदर यह बताता है कि अपने अंदर के प्लेज़र को अपने अंदर ही रखना है यानि यह संयम रखने की बात कहता है।
अब यह तीन बंदरों की फिलॉस्फी कहीं से भी आई हो। लेकिन हम भारतीयों के लिए यह फिलॉस्फी महात्मा गांधी की बेसिक फिलॉस्फी में से एक है। हालांकि बदलते जमाने में अब गांधी के तीन बंदर सिर्फ हंसी—मजाक की चीज बनकर रह गए हैं। गांधी के मरने के बाद से उनकी फिलॉस्फी सिर्फ किताबों के पन्नों में दबती गई। लेकिन शायद ही किसी ने उसे अपनी जिंदगी में उतारने की कोशिश की। असल में गांधी के विचार का मरना ही उनकी असल हत्या है जो काम हम 1948 के बाद से हर पल हर दिन करते आ रहे हैं।