किस्से, कहानियां या फिर कहावतें, हर कोई सुनना चाहता है। हमने अपने बचपनें में जहां एक तरफ राजा महाराजा की कहानियां अपनी घर में मौजूद दादी, नानी से सुनी, तो वहीं जब स्कूल गए तो हमने किताबों में अपना इतिहास पढ़ा. इतिहास में दर्ज उन किरदारों को पढ़ा तो शायद उसी के अनुरूप ढ़ाल दिए गए। क्योंकि जहां बचपन की किताबों में हमने मुगलों का गौरवशाली इतिहास पढ़ा, वहीं हमारी किताबों में महाराणा प्रताप, झांसी की रानी और छत्रपति शिवाजी जैसे ही किरदार हैं। जिन्हें हमने पढ़ा भी और अपने बुजुर्गों से सुना भी। लेकिन आज के वक्त में इन्हें इतना सीमित कर दिया गया कि शायद ही हमको इन सभी के बारे में पूरी जानकारी होगी।
लेकिन जो लोग भारत को महज लूटने के मकसद से आए और देश को लूटने के साथ ही, हमपर अनेकों तरह के अत्याचार किए। उन्हें हम महान बताते हैं. खैर कहीं न कहीं ये हमारे इतिहासकारों की देन है कि, जिसने जैसा चाहा लिख दिया। वहीं जब 15 शताब्दी की शुरूवात होने को थी, उसी समय एक यूरोपियन भारत आया था। जिसे हमारी किताबों में भारत के खोजकर्ता के तौर पर जाना जाता है। हम बात कर रहे हैं, वास्कोडिगामा की, लेकिन क्या सच में हकीकत यही है. क्या वास्कोडिगामा के चरित्र की जो कहानी हमें हमारी किताबों में पढ़ने को मिलती है, हकीकत में भी वही थी?

बात उस समय की है, जब आज से लगभग 6 शताब्दी पहले एक यूरोपियन भारत के दक्षिणी तट पर कालीकट के क्षेत्र में समुद्र के रास्ते से होकर आया था। मई का महीना था, मौसम भी गर्म था। उस समय इस आदमी ने एक बड़ा सा कोर्ट-पतलून और अपने सिर पर एक बड़ी सी टोपी रखी हुई थी। शायद, उसकी वेशभूषा इस तरह की थी कि, जो भी उसको देखता उसकी हंसी छूट जाती, वहीं जो इंसान समुद्र के रास्ते भारत पहुंचा था। वो उस समय कालीकट के राजा जमोरिन से मिला, इस दौरान वो आगन्तुक भी यहां के लोगों से लेकर दरबारियों की वेशभूषा को देखकर हैरान था।
उसकी हैरानी की सबसे बड़ी बात ये थी कि, जिस सिंहासन पर राजा जमोरिन बैठेकर आगन्तुक से बात कर रहे थे, वो सिंहासन पूरा सोने का था। इस दौरान वो आगन्तुक हाथ जोड़कर राजा जमोरिन के सामने खड़ा था और आज के समय में हम भारत का खोजकर्ता वास्कोडिगामा को बताते हैं।
ये एक ऐसा समय था, जब यूरोप ने भारत का बस नाम भर सुना था, जब उन्हें बस इतना मालूम था कि पूर्व दिशा की तरफ एक देश भारत है जो दुनिया का सबसे उन्नत देश है। साथ ही उनको ये भी मालूम था कि, भारत से ही अरबी व्यापारी जाकर सामान खरीदते हैं और ये सामान हमारे यहां लाकर महंगें दामों पर बेचते हैं।
Vasco Da Gama- व्यापार की चाहत से लेकर गुलामी तक
शायद, यही एक लोभ था कि, हर यूरोपिय व्यापारी को भारत कौन है, कैसा है और कहां है? इन सबमें दिलचस्पी थी। यही वजह थी कि, शायद वास्कोडिगामा के भारत आने से लगभग दो सौ साल पहले यानि की तेरहवीं सदी में दुनिया का पहला यूरोपियन यहाँ आया था। जिसका नाम था, मार्कोपोलो। मार्कोपोलो इटली का रहने वाला था। वो दुनिया का पहला ऐसा व्यापारी था, जो दुनिया को जानने के लिए निकला और कुस्तुनतुनिया के रास्ते से होकर सबसे पहले मंगोलिया और उसके बाद चीन तक पहुंचा था।
इस दौरान मार्कोपोलो ने कोई नया रास्ता नहीं ढूँढ़ा था, बल्कि वो तो शिल्क रूट से होकर चीन पहुंचा था। ये वो रास्ता था, जिस रास्ते होकर उस समय चीनी लोगों का व्यापारा भारत के साथ-साथ अरब एवं यूरोप में फैला हुआ था। ये एक ऐसा दौर था, जिस समय चीन के व्यापारी इसी रास्ते से अपना अनोखा उत्पाद “रेशम” दूसरे देशों तक पहुंचाया करते थे। यही वजह है कि, उन रास्तों को “रेशम मार्ग” या शिल्क रूट कहते हैं। आज के नजरिये से अगर देखें तो, आज इस रास्ते को विश्व की अमूल्य धरोहरों में से एक माना गया है।
ये एक ऐसा दौर था, जिस समय मार्कोपोलो भारत आया और भारत आने के बाद उसने कई राज्यों को देखा। जिसके बाद मार्कोपोलो केरल पहुंचा। यहां के राजाओं की शानो-शौकत से लेकर राजा के सिंहासन, हीरों से बने उनके आभूषण, सोना-चाँदी और खुशहाल प्रजा को देखकर वो वापस अपने देश लौट गया। यही से भारत के बारे में यूरोप वालों को पुख्ता जानकारी मिली। लेकिन इसी बीच, अरब देशों में इस्लाम इतना ताकतवर हो चुका था कि, उसने अपना प्रभुत्व अपने आस-पास के इलाको में पहुँचा दिया था, जिससे न तो भारत और न ही यूरोप अछूता रह सका।
इस दौरान कुस्तुनतुनीया यानि की टर्की पर ईसाई रोमन साम्राज्य का खात्मा हो गया। उसके पतन के बाद जहाँ एक तरफ वहाँ मुस्लिमों का शासन हो गया। यही वजह रही कि, यूरोप के लोगों के लिए एशिया में आना पूरी तरह बंद हो गया। क्योंकि मुस्लिम समुदाय इसाईयों को एशिया में जाने की इजाजत नहीं देता था। इधर एशिया में न घुस पाने कारण परेशान यूरोपिय व्यापारियों में बेचैनी शुरू हो गई और उनका लक्ष्य भारत तक पहुँचने और नया रास्ता ढूँढ़ने का हो गया।
Vasco Da Gama- नए रास्ते की तलाश में खोज लिया नया देश
इसी समय क्रिस्टोफर कोलंबस भी साल 1492 में भारत खोजने के लिए निकला था, लेकिन रास्ता भटकने की वजह से अमेरिका पहुँच गया। अमेरिका पहुँचने के दौरान भी उन्हें यकीन नहीं था कि, यही असली भारत है। क्योंकि यहां के लोगों का रंग गेहुंआ जैसा था। इस दौरान जब कोलबंस वापस अपने देश लौटा और लोगों ने उससे मार्कोपोलो वाले भारत की बात की तो कोलंबस ने इन सभी चीजों से मना कर दिया कहा कि- कुछ नहीं है, सब जंगली हैं वहाँ! यही वजह थी कि, पुर्तगाल के एक नौजवान वास्कोडिगामा ने समुद्र के रास्ते भारत को खोजने का बीड़ा उठाया। अपने कुछ साथियों के साथ वास्कोडिगामा समुद्र में उतरा और कुछ महीनों के बाद वो भारत के दक्षिणी तट के कालीकट पर पहुँचा।
हालांकि अभी भी इटली के नाविक के दिमाग में एक ही बात कचोट रही थी कि, आखिर कोलंबस पहुँचा कहां था। जिसने आकर कहा कि भारत के लोग लाल और जंगली हैं। बस यही वजह रही कि, कोलंबस के बताए रास्ते पर उसने अपना सफर शुरू किया. इसका नाम था अमेरिगो वेस्पुसी। अमेरिगो साल 1501 में अमेरिका पहुँचा और वहाँ पहुंच कर उसने देखा कि, वाकई ये अलग दुनिया है। जब अमेरिगो वापस लौटा तो उसने इसे भारत नहीं कहा, उसने बताया कि, वो भारत नहीं बल्कि कोई दूसरी दुनिया है. एक “नई दुनिया”. यानि की अब दुनिया को एक और दुनिया का पता चल चुका था। लोग अमेरिगो वेस्पुसी की इस खोज की सराहना करने लगे और यही वजह रही कि, इस दुनिया का नाम भी अमेरिका रख दिया गया।
ये एक ऐसा दौर था, जब दुनिया को भारत और अमेरिका का पता समुद्री मार्ग से मिल चुका था. जिस समय वास्कोडिगामा भारत में आकर जैमोरिन राजा से हाथ जोड़कर व्यापार की अनुमति माँग रहा था। उस समय किसी ने शायद सोचा नहीं था कि, इसके बाद भारत गुलामी की जंजीर में जकड़ जाएगा। क्योंकि अनुमति के कुछ समय बाद ही बहुत सारे पुर्तगाली व्यापारी भारत आने लगे, धीरे-धीरे इन्होंने अपनी ताकत बढ़ाई और साम-दाम, दंड की नीतियों पर काम करते हुए भारत के राजा को कमजोर कर दिया और अन्त में राजा इन्हीं पुर्तगालियों के हाथों मारे गए।
लगभग 70-80 साल भारत को पुर्तगालियों ने लूटा, जिसके बाद फ्रांसीसी भारत आए, इन्होंने भी लगभग 80 सालों तक भारत को लूटा और ये लूट का सिलसिला यूँ ही चलता रहा। जिसके बाद डच यानि की हॉलैंड के निवासी भारत पहुँचे। उन्होंने भी भारत को लूटा और आखिर में अंग्रेज भारत पहुँचे और अंग्रेजों ने इस दौरान लूट का सिलसिला बदल दिया। जिसमें सबसे ज्यादाकर साबित हुई अंग्रेजों की नीतियां, क्योंकि इन्होंने पहले भारत को गुलाम बनाया और फिर तसल्ली से इसको लूटा। एक वक्त था, जब 20 मई 1498 को भारत पहुँचा एक पुर्तगाली वास्कोडिगामा, यहाँ के राजा के सामने हाथ जोड़कर खड़ा था. लेकिन उसके बाद उस लुटेरे और उनके साथियों ने भारत का क्या हाल किया, आज वो इतिहास बन गया है।
जहाँ एक तरफ आज हम अपने बचपन से लेकर हमेशा अपनी इतिहास की किताबों में वास्कोडिगामा को भारत का खोजकर्ता कहते थकते नहीं हैं, हकीकत तो बस इतनी सी है कि, इन्होंने बस भारत को लूटा नहीं था, बल्कि इनकी वजह से भारत में कितना रक्तपात हुआ था, इसे झुठलाया नहीं जा सकता।