भूकंप…एक ऐसा शब्द जिसके सुनने पर अगर हम कल्पना भी करते हैं तो, हमें लगता है की हर तरफ सब कुछ उथल पुथल हो गया है. चीजें बिखर चुकी हैं. टूट चुकी हैं. यहाँ तक की न जानें कितनों को जानें चली जाती हैं. हज़ारों लाखों की संख्या में लोग बेघर हो जाते हैं.
देश में पिछले तीन महीने से चल रहे लॉकडाउन के दौरान, देश की राजधानी दिल्ली में एक महीने के अंदर दिल्लीवालों ने पाँच बार से ज्यादा भूकंप के झटके महसूस किए. इस दौरान कभी भूकंप की तीव्रता नाम मात्र रही तो कभी उससे थोड़ी ज्यादा. हालांकि नुकसान न के मात्र रहा. लेकिन एक महीने के भीतर पाँच बार भूकंप का आना कहीं न कहीं हर इंसान को सख्ते में ड़ालता है. लोगों के साथ सरकारें भी सोचने पर मजबूर हैं.
भूकंप की उत्पत्ति

वैज्ञानिकों की मानें तो, हमारी धरती सात टेक्टोनिक प्लोटों पर टिकी हुई है. इन प्लेटों में जब भी कभी कोई हलचल होती है तो, वो भूकंप का रूप ले लेती है. और सब कुछ हिलने लगता है. या फिर धरती के गर्भ में जब कभी कोई हलचल होती है तो, फिर भूकंप की उत्पत्ति होती है. भारत जिस प्लेट पर टिका हुआ है. उस प्लेट को आस्ट्रेलियन प्लेट कहते हैं. अधिकतर भूकंप की वजह इस प्लेट का यूरेशियन प्लेट से टकराना भी है. या फिर कई बार तो भूकंप की वजह फाल्ट लाइन एडजस्टमेंट भी होती है.
और हाल ही में दिल्ली-एनसीआर में आए भूकंपों की वजह भी फाल्ट लाइन ही रही है. दिल्ली-एनसीआर में जमीन के नीचे मुख्यतया पांच लाइन दिल्ली-मुरादाबाद, दिल्ली-मथुरा, महेंद्रगढ़-देहरादून, दिल्ली सरगौधा रिज और दिल्ली-हरिद्वार मौजूद है. देश में लगे लॉकडाउन के दौरान दिल्ली-एनसीआर में आए भूकंपों का केंद्र इन्हीं फाल्ट-लाइनों के आसपास ही रहा.
भूंकप पर विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं की राय

ज़ाहिर सी बात है, एक महीने के अंदर पांच बार भूकंप का आना किसी भी खतरे का संकेत महसूस होता है. जिसके लिए तैयार होना भी लाज़िमी है. हालांकि प्रकृतिक आपदाओं से बच पाना कभी कभी न के बराबर होता है. ऐसे में सरकार के निर्देशों में हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआइ) ने शोध किया. जिसके बाद उन्होंने बताया कि, आज जल दोहन और धरती के कोख से मानव द्वारा हो रहा जल दोहन इसकी सबसे बड़ी वजह है.
प्राथमिक स्तर पर आई रिपोर्ट में धरती का गिरता जल स्तर हाल ही में आए भूकंपों की वजह रहा है. भू-विज्ञानी के अनुसार भूजल को धरती के भीतर लोड यानि की एक भार के तौर पर देखा माना जाता है. इसी लोड के चलते फाल्ट लाइनों में भी संतुलन बना रहता है. हालांकि दिनों-दिन गिरते जल स्तर और बढ़ते जल दोहन से इसमें अंसुतलन उत्पन्न हो रहा है. यही वजह है कि, दिल्ली-एनसीआर में इस तरह के भूकंप के झटके आ रहे हैं.
यही नहीं, इन भूकंपों की गहराई भी धरती से 18 से 20 किमी के अंदर है. यानि की जहां जल नहीं मिलता.
इसके साथ ही एनजीआरआइ के मुख्य विज्ञानी डॉ. विनीत के. गहलोत की मानें तो, “दिल्ली-एनसीआर में हाल ही में आए भूकंपों पर अध्ययन अभी भी चल रहा है. जिसमें प्राथमिक तौर पर गिरता भू-जल ही जिम्मेदार है. अन्य कारणों का भी अध्ययन किया जा रहा है. चूंकि ऐसी चीजों के अध्ययन में वक्त लगता है. निष्कर्ष आने में अभी भी वक्त है.”
इसके साथ ही एनजीआरआइ के भू-विज्ञानियों ने उन सभी बातों पर भी विराम लगा दिया है. जिसमें लोगों का मानना था कि, छोटे-छोटे भूकंपों को लगातार आना. किसी बड़े भूकंप का अंदेशा है. भू-विज्ञानियों का मानना है कि, इस तरह का कोई भी रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. साथ ही उनका मानना है कि, दिल्ली-एनसीआर में भूकंप मापने का नेटवर्क विस्तार पा रहा है. इसलिए आज के समय में अगर एक दो तीव्रता वाले भूकंप भी आते हैं तो, उन्हें उसके भी बारें में मालूम चल जाता है.
गिरता जलस्तर जिम्मेदार कौन..?

आज दिल्ली-एनसीआर को अगर छोड़ भी दे तो, देश के न जानें कितने ही हिस्से ही हैं. जो हर साल सूखे की मार झेलते हैं. महाराष्ट्र के अनेकों गाँव हर साल इसका शिकार होते हैं. क्योंकि उनके पास मौजूद पानी के स्त्रोंत कम हैं. जबकि धरती की कोख में पानी नहीं है. जल-स्तर इतना नीचे है कि, पानी लाने के लिए महिलाओं के घंटों पैदल चलना पड़ता है. तब जाकर एक गगरी पानी नसीब होता है.
ऐसे में जलस्तर का दिनों दिन गिरना इस बात की ग्वाही देता है कि, आने वाला भविष्य पानी के लिए कितना विकराल होने वाला है. कोई शोधों में तो ये भी कहा गया है कि, आने वाले 2030 तक देश में पानी की सबसे विकराल समस्या पैदा होगी. इसलिए हमारे पूरे तंत्र से लेकर सरकारों को भी इसके प्रति जिम्मेदार होना चाहिए. ताकि कहीं न कहीं इस पानी की समस्या को कुछ वर्षों के लिए रोका जा सके.