Citizenship Amendment Bill 2019 एक बार फिर से देश भर में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। बिल में कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं जिसके कारण विपक्ष इसकी नीयत पर सवाल उठा रहा है। वहीं संसद से अलग सड़क पर अगर आप निकलते हैं तो दोनों तरह के लोग आपको देखने को मिल जाएंगे। जो इस बिल के सपोर्ट में हैं और जो इस बिल के सपोर्ट में नहीं हैं। बिल में क्या है? जिसके कारण इतना हल्ला मचा है यह तो हम सबको अब तक पता ही है, जो 2016 में था, लगभग वही बात है कि पाकिस्तान, बंग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय जिसमें हिन्दू, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी आते हैं, अगर ये वहां धार्मिक प्रताड़ना का शिकार हुए हैं और भारत में 31 दिसंबर 2014 या इससे पहले शरणार्थी के रूप में आए हैं तो उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी और उनके लिए नागरिकता पाने के प्रोसेस को भी थोड़ा ढीला किया गया है। पहले 1955 के कानून के अनुसार इन लोगों को 12 सालों तक भारत में रहना होता था जिसे बाद में 6 साल कर दिया गया। लेकिन अब अगर यह बिल कानून बन जाता है तो यह अवधि 5 साल की हो जाएगी।

बिल के मुख्य प्रावधानों को सुनने में यह बहुत ही अच्छा बिल मालूम होता है। लेकिन विपक्ष की ओर से जो आशंकाएं जताई जा रही हैं और असम त्रिपुरा में जिस प्रकार से बिल को लेकर विरोध देखने को मिल रहा है उससे बिल को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। विपक्ष के कई नेताओं ने बिल को संविधान की मूल भावना के खिलाफ और इसे धर्म के अधार पर बनाया गया बिल बताया है। उनका मानना है कि, यह बिल संविधान की धारा 14 के खिलाफ हैं जिसके जरिए भारत का संविधान सबको बराबरी का अधिकार देते हैं और धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करने की बात कहता है। वहीं संविधान की प्रस्तावना की मूल भावनाओं के खिलाफ भी इस बिल को माना जा रहा है। इन्हीं सवालों से लोकसभा में जब बिल पास हुआ तो विपक्ष ने जमकर हंगामा मचाया। हालांकि डिबेट के बाद यह बिल सुबह में लोकसभा से 311 पक्ष और 80 विपक्ष वोटों के साथ पास हो गया। अब इस बिल को राज्य सभा में पेश किया जाएगा।
Citizenship Amendment Bill 2019- क्या मुस्लिम विरोधी है ये कानून?
ऐसे में बिल से कई सवाल उठ रहे हैं जैसे कि, क्या अब धर्म के अधार पर लोगों को देश में नागरिकता मिलेगी? क्या धर्म के आधार पर देश में भेदभाव होगा? और क्या यह बिल मुस्लिम विरोधी है? इन सवालों के जवाब में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में दिया था। इस बिल को मुस्लिम विरोधी मानने बताने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि, हाल ही में असम एनआरसी के दौरान कई हजार हिन्दुओं के नाम इसमें शामिल नहीं किए गए।
जिससे ये लोग असम के बाहरी करार हो जाते हैं। वहीं अब अगर नागरिकता का बिल आता है तो इसके हिसाब से जो भी बांग्लादेशी हिन्दू, असम एनआरसी लिस्ट में शामिल नहीं हैं उन्हें असानी से भारतीय नागरिकता नहीं मिलने की बात कही जा रही है। लेकिन जिन मुस्लिमों के नाम इस लिस्ट में नहीं हैं उनके लिए कोई सेफ कॉर्नर नहीं बचेगा। लेकिन गृह मंत्री ने ऐसी किसी भी संभावना को खारिज किया है साथ ही इस बारे में कहा है कि असम, अरूणाचल और त्रिपुरा के साथ ही इनर लाइन परमिट वाले राज्यों जिसमें मिजोरम और नागालैंण्ड आते हैं वहां यह बिल लागू नहीं होगा। वहीं मणिपुर को भी अब इसमें जोड़ा गया है।
ऐसे में इन इलाकों में इस कानून से कोई ऐसी स्थिति नहीं है। ऐसे में असम एनआरसी लिस्ट में शामिल नहीं हुए हिन्दू हो या मुस्लिम हो दोनों को ही अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। वहीं मुस्लिम विरोधी होने का जो आरोप इस कानून पर लग रहा है वो निराधार भी लगता है। क्यों कि बिल सिर्फ धार्मिक प्रताड़ना से तंग आगर भारत आए शरणार्थियों के लिए है घुसपैठियों के लिए नहीं। वहीं संसद में अगृह मंत्री ने यह भी कहा है कि बिल में इस बात का प्रावधान है कि अगर कोई मुस्लिम इन तीनों पड़ोसी देशों में धर्म के आधार पर सताया जाता है तो वो भी भारत में नागरिकता के लिए अप्लाई कर सकता है और उसे भी नागरिकता दी जाएगी।

Citizenship Amendment Bill 2019- क्या संविधान की धारा 14 के खिलाफ है यह बिल?
धारा 14 संविधान के मूल भागों में से है। जो कहता है कि, देश में किसी के साथ भी धर्म, जाति, पंथ मजहब या किसी और चीज के आधार पर कानून भेद नहीं करेगा। कानून के सामने सब लोग एक समान भारतीय नागरिक है। इस धारा के कारण ही हमारा देश दुनिया में सेक्यूलर मुल्क माना जाता है। ऐसे में अगर यह बिल मुस्लिम विरोध के टैग से निकल भी जाती है। तो इस धारा पर आकर फंस जाती है। संसद में भी सभी विपक्षी पार्टियों का यही कहना था। लेकिन इस पर गृह मंत्री ने जो बात कही है वो बहुसंख्यकों के मन में दबी हुई बात जैसी ही है। उन्होंने विपक्ष द्वारा आर्टिकल 14 के इंटरपीटेशन को लेकर कहा कि, अगर इसे मान लें तो ऐसे में भारत में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधान नहीं बनाए जा सकते हैं।
यहां पर समझने वाली बात यह है कि, धारा 14 के बाद ही धारा 16 में इस बात को स्पष्ट किया गया है कि, सरकार अपने हिसाब से समाज के कुछ विशेष तबकों के लिए विशेष कानून बना सकती है, हां यह एक तरह की असमानता है। लेकिन समाज भी अपने आप में समान नहीं है। ऐसे में कुछ वर्गो को धर्म या जाति के हिसाब से रिर्जवेशन या विशेष पैकेज ट्रीटमेंट दिया जा सकता है। और संविधान इस तरह के कानून बनाने की बात कहता है। ऐसे में अगर नागरिकता का कानून तीनों देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए है तो यह संविधान के धारा 14 से विपरीत तो है लेकिन संविधान के खिलाफ नहीं क्योंकि संविधान की धारा 16 इसे इस बात की आजादी देता है।
ऐसे में हम यह कह सकते हैं कि, संविधान की व्याख्या कई लोग अपने हिसाब से अपने फेवर में करते हैं। सरकार का तर्क भी अपनी जगह सही हैं और यह कानून के पक्ष में। बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में जो वादे किए थे उसे वह लागू करवाना चाहती है। अब परीक्षा राज्य सभा और उसके बाद अगर कानून को कोर्ट में चुनौती दी गई तो कोर्ट के फैसले के सामने होगा।