पिछले एक दशक की अगर बात करें तो शायद पानी के भूत से लेकर पानी के भविष्य पर न जानें कितनी रिपोर्ट्स आई न जानें कितने सेमिनार हुए, पानी बचाने की हजारों-लाखों मुहिम की शुरूआत हुई….हजारों किस्मों के नारों से लेकर न जाने कितने ही कोट्स लिखे गए. लेकिन नतीजा क्या निकला है शायद हम सबके सामने है.
हर बार, हर सरकार, हर सेमिनार में कुछ गिने चुने शब्द हैं. जिन्हें हम और आप सुनते हैं, समझते हैं. हालांकि कहने वाले का चेहरा बदल जाता है. लेकिन चेहरे के पीछे से निकलते शब्दों की लय और ताल एक ही रहती है…ये की जल बचाओ कल बचाओ और ऐसे ही न जानें कितने तमाम…
जहां पिछले साल की अगर बात करें तो जहां केरल में बाढ़ आई थी, जिसको पिछले सौ साल में आई सबसे भयावह बाढ़ की संज्ञा दी गई थी. क्योंकि इस बाढ़ ने लगभग पूरे केरल को डुबो दिया था. इस बाढ़ में जहां लगभग पांच सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी तो वहीं हजारों करोड़ों की संपत्ति से लेकर न जानें कितनों के घर, मकान सब ये बाढ़ निगल गई थी.
जाहिर है वक्त के साथ कुछ दिनों में ही बाढ़ का कहर तो समाप्त हो गया, लेकिन उसने कई सवालिया चिह्न ऐसे छोड़ दिए, जो आज भी जस के तस बने हुए हैं. हम सेमिनार से लेकर पानी बचाने, नदी बचाने या फिर गांवों के तलाब तक बचाने की बातें तो करते हैं. हालांकि असल हकीकत में जितना करते हैं शायद वो काफी नहीं है. तभी तो केरल जैसी न सही मगर मानसून के समय में छोटी मोटी बाढ़ पूरे देश में कई हिस्सों में आती है और हम बाढ़ के समय में हाया तौबा करते हैं. लेकिन कभी बैठ कर ये नहीं सोचते की आखिर हम हर साल इस तरह की बाढ़ के शिकार बनते क्यों हैं..? क्यों हर साल मानसून के समय में हजारों लोग अपने घरों से बेघर हो जाते हैं..? क्यों हर साल मानसून के समय में हजारों किसानों की फसलें बर्बाद हो जाती हैं..?

जहां आज हमारे देश में अगर पानी की बात करें तो शायद पानी की समस्या से देश की आबादी का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा पानी की समस्या से जूझ रहा है. पानी की समस्या और गुणवत्ता के चलते हमारे देश में लगभग हर साल 2 लाख मौतें हो जाती हैं. देश के ना जानें कितने ही राज्य और ऐसे हिस्से हैं जो सूखे की समस्या से हर साल जूझते हैं. लेकिन बारिश के समय में हम पानी-पानी हो जाते हैं. इतना पानी की कोई भी इंसान उसमें डूब जाने को काफी होता है. क्योंकि अभी तो मानसून की ठीक से शुरुआत भी नहीं हुई और मुंबई में वो नजारा हम सब देख चुके हैं. जिस तरह महज 3 दिन की बारिश ने पूरी मुंबई को पानी-पानी कर दिया. उसे देखकर समझना आसान है की हम वाकई मानसून के आने के पहले कभी कोई तैयारी नहीं करते. हम ही क्या जिन लोगों को हम सबने यही करने के लिए चुना है वो भी इस पर न तो कुछ काम करते हैं और न ही कोई पहल करते हैं.
तभी तो जब कभी भी मानसून आता है तो चाहे मुंबई हो या दिल्ली हर बार पानी-पानी हो जाती हैं. जो राज्य पानी के लिए पूरे साल तरसते हैं और जब पानी आता है तो हम और वो राज्य उसे सहेज ही नहीं पाते. हर बारिश अरबों खरबों लीटर पानी आसमान से बरसता है और यूं ही तालाबों, सीवरेज और नदियों से होता हुआ समुद्र में मिल जाता है और हम बारिश के समय में चाय की चुस्कियों के साथ घर पर बैठकर टी.वी. देखने में मगर रहते हैं की कहां कितनी बारिश हुई है.

आखिर कब तक हम सब यूं ही हर बारिश पानी-पानी होते रहेंगे. आखिर कब तक हम अपने नदियों का पानी यूं फिजूल ही समुद्र में जाने देंगे, या फिर कब तक हम पानी को यूं ही तरसते रहेंगे.
सोचने वाली बात है न जहां हमारा देश समुद्र से तीन तरफ से घिरा हुआ है, नदियों का जाल पूरे देश में बिछा पड़ा है. वहीं हर साल लाखों लोगों को ठीक से पानी नहीं मिलता और बारिश के समय में हम पानी बचाने की कभी सोचते ही नहीं क्योंकि हम जब भी जरूरत पड़ती है. तब हम मोटर चलाकर पानी निकाल लेते हैं. बिना एक पल सोचे की क्या हमने कभी धरती में मौजूद पानी को रिचार्ज करने की कोशिश की या नहीं और नहीं की…! तभी तो आज के दौर में हम सबको पानी के लिए तरसना पड़ रहा है. फिर मानसून आ चुका है. बादल बरसने लगे हैं. धरती जो पिछले काफी महीनों से सूखकर चट्टान सी हो चली थी. शायद एक बार फिर उसमें नमी दिखाई देने वाली है. लेकिन ये नमी कितने दिनों तक रहेगी ये कहना मुश्किल है. क्योंकि अधर का पानी हम निकाल चुके हैं और आसमान का पानी ज्यादा दिन हम रोक नहीं पाते यही वजह है शायद हम पानी को तो तरसते हैं लेकिन पानी बचाने की सोचते तक नहीं….