पूरी दुनिया में त्योहारों का एक बड़ा महत्व है। लेकिन जब भी कहीं त्योहारों की बात होती है तो भारत का जिक्र जरूर होता है। क्योंकि भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। कोस—कोस पर पानी और डेढ़ कोस पर वाणी बदलने वाले हमारे देश में हर एक जगह की अपनी एक अलग सांस्कृतिक पहचान है और इन संस्कृतियों के अपने त्योहार है। भारत में त्योहार का मतलब सीमित नही है, इसका मतलब है ढेर सारे रंग, अलग—अलग तरह के गाने, डांस फॉर्म और पूजा पद्धतियां। इनमें से हर एक की अपनी एक विरासत है यानि एक पारंपरिक इतिहास है। भारत में बसने वाली यहीं सांस्कृतिक विभिन्नताएं तो इसे पूरी दुनिया के लिए खास बनाती हैं।
भारतीय त्योहारों पर भारत में बसे कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। हर त्योहार के अपने गाने, डांस और इन्हे परफॉर्म करने वाले कलाकार होते हैं। हर त्योहार को हमारे यहां मनाने के कई तरह के अलग—अलग तरीके हैं। भारत की कई ऐसी सांस्कृतिक विरासतों को आज दुनिया भर में स्थान तो मिला है और यह आज भी लोकप्रिय है। लेकिन भारत के गांवो में कई और भी तरह की सांस्कृतिक रंग हैं जो आज दम तोड़ रहे हैं। एक जमाने में पर्व—त्योहारों पर रंग जमाने और लोगों का मनोरंजन करने वाली मंडलियों और इनके कलाकार कहीं गुम से होते जा रहे है। कई हजार सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी आ रही ये परंपराएं अब जैसे किसी जनरेशन गैप का शिकार हो गईं हैं। इनकी लोकप्रियता घटी है।
लेकिन भारत की सांस्कृतिक विरासत ही उसकी पहचान हैं। बिना इन रंगो के हमारे पर्व—त्योहारों की रंगत फीकीं है। लेकिन भारत के राजस्थान में एक गांव ऐसा भी है जहां पर्व त्योहारों पर भारत की विभिन्न संस्कृतियों का जमावड़ा लगता है। यह गांव है यहां की शेखावटी में बसा मोमासर गांव। आज राजस्थान का यह गांव भारत के सांस्कृतिक विरासतों को सहेजने वाले कलाकारों के लिए तीर्थ सा बन गया है। यहां हर पर्व—त्योहार पर हाने वाले उत्सवों में कलाकारों के लिए मंच सजते हैं और लोग भी उन्हें देखने के लिए पहुंचते हैं। हाल ही में आने वाली दीपावली पर भी यहां ‘मोमासर उत्सव’ का आयोजन होने को है। जिसमें हजारों की संख्या में कलाकार जुटेंगे।
Momasar Utsav- आखिर कैसे हुई इस उत्सव की शुरूआत
‘मोमसार उत्सव’ की नींव साल 2011 में विनोद जोशी ने रखी थी। इस महोत्सव की दो सबसे खास बातें हैं, पहला ये कि इसमें स्थानीय और क्षेत्रिये कलाकार जो क्षेत्रिये कलाबाजियों में निपुण होते हैं वो ही बढ़—चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और दूसरा ये कि इस मंच पर ज्यादा प्रसिद्धी पा चुके कलाकारों के बजाए नए कलाकारों को मौका मिलता है। इसके अलावा इस उत्सव में विदेशी कलाकार भी बढ़—चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।
ऐसे ही कई रंग इस बार भी इस उत्सव में दिवाली के मौके पर देखने को मोमासर गांव में मिलेंगे। मोमासर गांव में होने वाले यह उत्सव सिर्फ दीपावली तक ही सीमित नहीं हैं। विनोद अपनी संस्था की मदद से सालभर में 34 उत्सवों का आयोजन विभिन्न त्योंहारों पर करवाते हैं। इससे यहां के स्थानीय कलाकारों को सालभर काम भी मिल पाता है और उनके अंदर एक आत्मविश्वास भी आता है जिससे वे भारत की सांस्कृतिक विरासत को और अच्छे से सहेजने और इसके विकास के लिए कोशिश करते हैं।
Momasar Utsav- लोक परंपरा को बचाने का हर प्रयास कर रहे हैं विनोद
विनोद जोशी जिन्होंने मोमासर उत्सव की शुरूआत की है उनका काम सिर्फ इस उत्सव के आयोजन तक ही सीमित नही हैं। वे कलाकारों का ऑल राउंड डेवलपमेंट भी कराते हैं। वे कलाकारों को बात करने का तरीका, मंच पर जाने और अपने—आप को प्रस्तुत करने का तरीका और अपने काम के लिए लोगों को कितना चार्ज करना है यह तय करने का गुर सिखाते हैं।
विनोद के इस काम से कई स्थानीय कलाकारों को एक पहचान मिली है। उनका सम्मान बढ़ा है। इन कलाकारों को मिल रही पहचान की बदौलत इनके आस—पास के लोगों और कलाकारों में भी एक उत्साह बनता है। इस तरह से इन लोक परंपराओं में आए जेनरेशन गैप खत्म हो रहा है और ये परंपराएं भी मरने से बच रही है।
हमारे पर्व त्योहारों को जो लोक परंपराएं दुनिया भर में हमारी एक अलग पहचान बनाती हैं, वे हमारे गांव-कस्बों में जन्मी हैं। ये सब हमारे देश की जनजातियों, अलग-अलग संस्कृतियों, त्योहारों, पूजा-पाठ के तरीकों और राजमर्रा के कामों से निकली हैं। यह दुनिया को दी गई हमारी खुद की ईज़ाद है जिसके पीछे हमारी सालों की एक परंपरा रही है। आज की पीढ़ी जो आधुनिकता और दुनिया की कॉपी करने के पीछे भाग रही है वहां हमारे खुद के ये इज़ाद विलुप्त होने की कगार पर हैं। विनोद द्वारा किए गए मोमासर उत्सव जैसी पहल इस परंपरा के लिए एक जीवनदान है। ये प्रयास हमें यह भी समझाता है कि ‘बिना हमारी परंपराओं के हमारे त्योहारों की कोई अहमियत नहीं है।