भारत जैसे देश की अगर बात करें तो, हमारे देश में आस्था के नाम पर लगभग सबकुछ बिकता है. देश में आस्था के ही नाम पर ऐसी न जानें कितनी ही चीजें हैं, जिन पर मुसीबत आ खड़ी हो गई है. चाहे वो नदियों में गंदगी की बात हो या फिर सड़कों और मंदिरों के कोनों में पड़ी टूटी फूटी मूर्तियां…
हालांकि कुछ ऐसी भी चीजें हैं, जो हम आस्था के नाम पर हम यूं ही छोड़ देते हैं. क्योंकि आस्था का कोई मोल नहीं है. लेकिन व्यापार के नजरिए से अगर हम देखें तो, ये एक ऐसा कारोबार होता है. जिसमें लाखों, करोड़ों का व्यापार होता है और हम आस्था में खुद को लेपेटे सोचते हैं कि, हमने अपना दान भगवान को किया है.
कुछ इसी तरह की हिंदू धर्म में परंपरा भी है, जोकि सनातन काल से है. जिसको हम सभी मुंडन के तौर पर जानते हैं. हिंदू धर्म में जब शिशु एक साल का होता है तो परिवार की तरफ से बच्चों का मुंडन कराया जाता है और जब कोई कर्म कांड होता है तो भी मुंडन कराया जाता है, कुछ ऐसी ही पंरपरा दक्षिण के मंदिरों में भी देखने को मिलती है.
बालों की कालाबाजारी की असल हकीकत

आन्ध्र प्रदेश के तिरुमला पहाड़ियों की श्रृखंला में मौजूद भगवान तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में कौन नहीं जानता. तिरुपति बालाजी भारत के उन मंदिरों में से एक माना जाता है. जोकि सबसे ज्यादा अमीर है. ये मंदिर धन और संपत्ति के लिए ही नहीं बल्कि अपनी भौतिक और स्थापत्य कला के लिए भी अपनी अलग पहचान रखता है. साथ ही इस मंदिर में आने वाले श्रृद्धालू अपने बालों को भी यहां आकर दान करते हैं. जिनमें महिलाऐं भी शामिल होता हैं. एक जानकारी की मानें तो तिरुपति बालाजी मंदिर में हर दिन लगभग 20,000 भक्त अपने केश (बाल) उतरवाते हैं, जिसके लिए लगभग 600 नाइयों की कैंची बिना रूके हर रोज काम करती है.
लेकिन सोचने वाली बात है ना, जहां हम अपने केश मंदिर को दान कर देते हैं, वहीं मंदिर परिसर इन बालों का क्या करती है..? मंदिर परिसर इन केशों (बालों) को विदेश की कंपनियों को बेच देती है. ऐसी कंपनियों जो बाल बनाने और लगाने का काम करती हैं.
दक्षिण में ऐसे और भी कई मंदिर हैं, जहां केश उतरवाने के आस्था को सालों से यूं ही निभाया जा रहा है, हालांकि यहां आने वाले भक्तों को ये मालूम नहीं होता कि, आखिर में उनके केशों (बालों) का होगा क्या..? और मंदिर परिसर इन बालों को गुपचुप तरीके से विदेशी कंपनियों को बेच दिया करती है.
किलों के भाव बिकते हैं, आस्था के बाल

बालों की ये कालाबाज़ारी यहीं खत्म नहीं होती. इन बालों से मंदिर परिसर को लाखों और करोड़ों का मुनाफा होता है. क्योंकि दक्षिण में मुंडन कराने की आस्था महज़ बच्चों और पुरूष वर्ग की ही नहीं है, वहां ऐसी अनेकों महिलाएं भी हैं, जो उन्हें मुंडन कराती हैं. ऐसे में इन बालों को इक्ट्ठा कर कंपनियों को दिया जाता है, जहां ये बाल 25,000 से लेकर 30,000 रुपए किलों के बीच बेचा जाता है.
भारत में भी ऐसी तमाम कंपनियां हैं, जो इन बालों को खरीदती हैं और बाल ले जाकर, कंपनियों के वर्कर इन्हें पहले सुलझाते हैं. जिसके बाद, उन्हें धोकर ठीक से कलर किया जाता है. यही नहीं, भारत की कई बड़ी कंपनियां इन बालों को दुनिया के 55 से ज्यादा देशों में निर्यात भी करती हैं. इन्हीं में से एक कंपनी है, राज हेयर इन्टरनेशल जोकि सालाना इन्हीं बाल से 55 करोड़ रुपए से ज्यादा का बिजनेस करती है. हालांकि ये महज़ इकलौती कंपनी नहीं हो, जो मुंडन के बालों का बिजनेस करती है. ऐसी और भी कंपनियां हैं, जो भारत में आस्था के नाम पर उतरने वाले बाल को खरीदती हैं और मंदिर परिसर गुपचुप तरीके से लोगों के बाल मंदिरों को बेच देते हैं.
हालांकि, अधिकतर लोगों को यही मालूम नहीं होता कि, जो लोग अपने बाल आस्था के नाम पर उतरवा रहे हैं. वो वहां किसी भगवान को नहीं बल्कि किसी हेयर कंपनी को दे रहे हैं. इस पूरी प्रक्रिया में मंदिर परिसर के साथ-साथ हेयर कंपनियां भी मिली हुई होती हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि, किसी की श्रद्धा, किसी के लिए करोड़ों की कमाई का जरिया है.
कालाबाजारी के साथ, फायदे की बात भी

जहां एक तरफ आस्था और श्रद्धा के नाम पर लोग अपने बाल मंदिर परिसर में छोड़ आते हैं. वहीं अगर मंदिर परिसर इन्हें किसी कंपनी को न दे तो, मंदिर परिसर को ही इन्हें नष्ट करना पड़ेगा. ऐसे में ये भी कहा जा सकता है कि, कंपनी मंदिर ट्रस्ट को पैसा देती है और कूड़ा ले जाती है. जिसके बाद उनके वर्कर उन बालों पर मेहनत कर उसे दूसरों के लायक बनाते हैं, और मंदिरों को मिलने वाला पैसा ट्रस्ट लोगों की भलाई में, गरीबों को खाना खिलाने और भंड़ारे जैसे आयोजन में लगाती है.
ऐसा भी माना जाता है, दुनिया में सबसे खूबसूरत बाल अगर कहीं हैं तो, वो भारत में ही हैं क्योंकि यहां की महिलाओं के बाल दुनिया में खूबसूरती के तौर पर जाना जाता है. यही वजह है कि, दुनिया इन बालों का यूज हेयर एक्सटेन्शन या फिर बिग बनाने में करती है.