जब भी देश में कहीं भी विरोध की लव धधकती है, तो उसकी चिंगारी देश की राजधानी तक जरूर पहुंचती है और पहुंचे भी क्यों न…! दिल्ली से ही सब कुछ चलता है. शायद यही वजह है कि, जब भी देश के किसी भी हिस्से में सरकार का विरोध करने की कवायद से लेकर किसी भी चीज के वहिष्कार तक में, हम जंतर मंतर तक पहुंच जाते हैं.
क्योंकि जंतर मंतर आज के समय में विरोध का एक ऐसा जरिया बन गया है. जिसने न जानें कितने ही आंदलनों को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है. ऐसे आंदोलन जिन्होंने हकीकत में धरातल पर अलग ही छाप छोड़ी है. चाहे किसी राजनीतिक विरोध की बात हो, चाहे किसी राजनीति के समर्थन की बात या फिर किसी रेप केस से लेकर अपने स्वतंत्रता की बात….हम आज के समय में जंतर मंतर जाना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं. हालांकि ऐसी न जानें कितनी ही आवाज़ें हैं, जो जंतर मंतर पर ही उठती हैं और वहीं दफ्न हो जाती हैं. शायद, उनकी आवाज़ में उतना दम नहीं होता है. जिससे की उनकी आवाज़ सरकार के कानों तक पहुंच सके.
बड़े-बड़े आंदोलनों का साक्षी Jantar Mantar

साल 2011 में हुआ अन्ना हजारे का आंदोलन, OROP आंदोलन, तमिलनाडु किसानों का आंदोलन या फिर निर्भया रेप…. ये कुछ ऐसे किस्सें हैं, जिन्होंने भारत सरकार के साथ-साथ पूरे भारत को भी सोचने पर मजबूर कर दिया था. चाहे किसी राजनैतिक पार्टी के हित की बात हो या खिलाफत की बात, जब भी देश में ऐसा कुछ हुआ है तो उसका असर राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर देखने को जरूर मिला है.
लेकिन क्या आपको मालूम है कि, आखिर जंतर मंतर का इतिहास क्या है और जंतर मंतर किसके लिए बनाया गया था.
Jantar Mantar का इतिहास

दिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थानों की अगर बात करें तो, जंतर मंतर उन्हीं में से एक है. कनॉट प्लेस यानि की दिल्ली के केंद्र में बने जंतर मंतर का निर्माण महाराजा जयसिंह द्वितीय साल 1724 में करवाया था. ऐसा माना जाता है कि, मोहम्मद शाह के शासन के दौरान हिंदू और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थिति को लेकर आपस में बहस छिड़ गई थी. जिसको खत्म करने के लिए ही महाराजा जयसिंह ने जंतर मंतर का निर्माण करवाया था. इस दौरान जयसिंह ने दिल्ली ने के साथ-साथ जयपुर, उज्जैन, वाराणसी और मथुरा में भी जंतर मंतर का निर्माण करवाया था.
फ्रेंच के लेखक हैं, “दे बोइस” जिनकी मानें तो जंतर मंतर के निर्माण के दौरान राजा जयसिंह खुद अपने हाथों से ही यंत्रों के मोम के मॉडलों को तैयार किया करते थे.
पुराने जमाने में जंतर मंतर को एक वेधशाला कहा जाता था, जहां खगोलिय वैज्ञानिक ग्रहों की दिशा और दशा देखा करते थें, जंतर मंतर में कुल 13 खगोलीय यंत्र लगे हुए हैं. दिल्ली में बना जंतर मंतर समरकंद (उज्बेकिस्तान) की वेधशाला से प्रेरित है. कहा जाता है कि, महाराजा जयसिंह ने अपने छोटे से शासन काल में खगोल विज्ञान में जो अमूल्य योगदान दिया है. उसके चलते इतिहास हमेशा हमेशा के लिए उनका ऋणी रहेगा.